अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट की जज एलिना कागन ने गुरुवार को तहव्वुर राणा की अर्जी ठुकरा दी। तहव्वुर पाकिस्तानी मूल का कनाडाई नागरिक है। उसके खिलाफ 2008 के मुंबई आतंकी हमले के सिलसिले में भारत भेजने की कार्रवाई चल रही है। उसने अमेरिका में ही रहने की गुजारिश की थी, लेकिन जज कागन ने उसकी अपील मानने से इनकार कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार रात ये फैसला सुनाया। कोर्ट की तरफ से जारी किए गए बयान के मुताबिक, 'एप्लीकेशन (24A852) जस्टिस कागन ने रद्द कर दिया'। राणा ने 28 फरवरी को ये अर्जी लगाई थी कि उसे अमेरिका से भारत एक्सट्राडाइट (प्रत्यर्पण) न किया जाए। यानी, उसे अमेरिका में ही रहने दिया जाए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसकी ये गुजारिश मंजूर नहीं की।
इसके तुरंत बाद राणा के वकील टिलमैन जे. फिनले ने गुरुवार रात एक और अर्जी दाखिल की। ये एक तरह की आपातकालीन अर्जी थी, जिसमें उन्होंने 'हैबियस कॉर्पस' याचिका की सुनवाई तक राणा को अमेरिका में ही रहने देने की मांग की। फिनले ने ये अर्जी चीफ जस्टिस रॉबर्ट्स के पास भेजने का अनुरोध किया।
गुरुवार रात, फिनले ने अपनी पुरानी अर्जी फिर से भेज दी और मांग की कि उसे चीफ जस्टिस रॉबर्ट्स के पास भेजा जाए। उनके वकील का कहना है कि 64 साल के राणा की सेहत बहुत खराब है। अगर उसे भारत भेज दिया गया तो 'उसे यातना और मौत का सामना करना पड़ेगा'।
स्टेट डिपार्टमेंट के प्रवक्ता ने बताया, 'विदेश मंत्री ने राणा को भारतीय अधिकारियों को सौंपने के वारंट पर दस्तखत कर दिए हैं। राणा के वकील ने इसके खिलाफ आपातकालीन रोक लगाने की अर्जी दी थी। ये अर्जी अभी अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है।' प्रवक्ता ने कहा, 'न्याय विभाग इस मामले को हेंडल कर रहा है। राणा के भारत को सौंपे जाने की आगे की कार्रवाई के लिए भारत सरकार के साथ तालमेल बनाए हुए है।'
अपनी आपातकालीन अर्जी में, फिनले ने कहा कि राणा ने भारत को प्रत्यर्पण रोकने के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका मांगी है। उन्होंने तर्क दिया, 'लेकिन इस दावे को आगे बढ़ाने के लिए, उसका प्रत्यर्पण रोकना होगा।' हालांकि, विदेश विभाग ने 13 फरवरी को अदालत को सूचित किया कि तहव्वुर को भारत को सौंपने का निर्णय यातना और अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या दंड के खिलाफ कन्वेंशन और इसके कार्यान्वयन अधिनियमों और नियमों के तहत अमेरिका के दायित्वों का पालन करता है।
तहव्वुर इस वक्त लॉस एंजिल्स के मेट्रोपॉलिटन डिटेंशन सेंटर में बंद है। उनके वकीलों ने कहा, 'अब तहव्वुर को ऐसे देश में भेजने का खतरा है जहां उसकी जन्मभूमि (पाकिस्तान), उसका मजहब (मुस्लिम) और उस पर लगे आरोप (166 लोगों की आतंकवादी हत्या) उसे यातना का शिकार बनाने की पूरी आशंका है। अगर वह हिरासत से बच भी गया, तो उसके मुकदमे का नतीजा पहले से तय है। भारत की दंड संहिता की धारा 354(5) के मुताबिक, उसे फांसी दी जा सकती है।'
उन्होंने तर्क दिया कि अगर तहव्वुर को प्रत्यर्पित किया जाता है, तो उसके साथ यातना और ऐसा व्यवहार किया जाएगा जो CAT और इसे लागू करने वाले अमेरिकी कानून का उल्लंघन होगा। वकील ने दावा किया, 'वास्तव में, याचिकाकर्ता की मौजूदा स्वास्थ्य समस्याओं और कैदियों के साथ व्यवहार के बारे में विदेश विभाग के अपने निष्कर्षों को देखते हुए, यह आशंका है कि तहव्वुर भारत में मुकदमे की कार्यवाही तक जीवित नहीं रहेगा।'
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