जब आम के पत्तों और मोगरे की माला की खुशबू हवा में घुल जाती है, तब दुनिया भर में बसे तेलुगू परिवार—चाहे वो न्यूयॉर्क की व्यस्त गलियों में हों, सिडनी के शांत उपनगरों में या दुबई की ऊँची इमारतों में—एक पल के लिए रुककर उगादी का त्योहार मनाते हैं। यह त्योहार तेलुगू नववर्ष का प्रतीक है और अपने साथ घर, परंपराओं और संस्कृति की गहरी स्मृतियाँ लेकर आता है।
सीमाओं से परे एक पर्व
‘उगादी’ शब्द संस्कृत से आया है—‘युग’ (काल) और ‘आदि’ (आरंभ), यानी एक नए युग की शुरुआत। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में यह पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। घरों को आम के पत्तों से सजाया जाता है और विशेष व्यंजन बनाए जाते हैं जो त्योहार की आत्मा को दर्शाते हैं।
विदेश में बसे तेलुगू भारतीयों के लिए उगादी को दोहराना एक भावनात्मक और चुनौतीपूर्ण अनुभव होता है। अनुषा रेड्डी, जो शिकागो में आईटी प्रोफेशनल हैं, कहती हैं, “हर साल मैं वैसे ही सुबह जल्दी उठती हूँ जैसे हैदराबाद में उठती थी और उगादी पचड़ी बनाती हूँ। एक चम्मच लेते ही बचपन की यादें ताज़ा हो जाती हैं—मंदिर जाना, नीम के फूलों की खुशबू और दादी का आशीर्वाद।”
स्वाद में छिपी जीवन की सच्चाई: उगादी पचड़ी
उगादी पचड़ी सिर्फ एक डिश नहीं, बल्कि जीवन के दर्शन का प्रतीक है। इसमें मिलते हैं—गुड़ (मिठास), इमली (खटास), नीम फूल (कड़वाहट), कच्चा आम (तीखापन), नमक (नमकीनपन), और मिर्च (तेज)। ये सभी जीवन की अलग-अलग भावनाओं को दर्शाते हैं।
राम मोहन, लॉस एंजेलिस में एक उद्यमी कहते हैं, “मेरे लिए उगादी पचड़ी यह सिखाती है कि जीवन में हर भाव जरूरी है—खुशी, दुःख, गुस्सा, आश्चर्य। मैं अपने बच्चों को हर सामग्री के पीछे की कहानी बताता हूँ ताकि वो विदेश में रहते हुए भी अपनी जड़ों से जुड़ाव महसूस करें।”
मंदिर, प्रार्थना और पंचांग
त्योहार की आध्यात्मिकता मंदिरों में विशेष रूप से महसूस की जाती है, जहां पुजारी पंचांग (ज्योतिषीय पंचांग) पढ़ते हैं और नए साल का भविष्य बताते हैं। अमेरिका के कई शहरों में तेलुगू समुदाय के लोग विशेष पूजा, सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रवचन के लिए एकत्र होते हैं।
माधवी गोपाल, डलास की सांस्कृतिक संयोजिका बताती हैं, “हमारा तेलुगू एसोसिएशन हर साल पंचांग श्रवणम का आयोजन करता है। बच्चों को श्लोक बोलते, पारंपरिक पोशाक में कोलाटम नृत्य करते देखना बहुत सुखद होता है।”
उगादी की धुनें और नई शुरुआत
उगादी बिना संगीत के अधूरा है। चाहे वह शास्त्रीय कर्नाटक संगीत हो या उगादी पर आधारित फिल्मी गीत, संगीत पीढ़ियों और महाद्वीपों के बीच भावनात्मक सेतु बनाता है।
श्रीधर पल्लि, न्यू जर्सी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर से गायक बने, कहते हैं, “हर उगादी पर मैं ‘उगादी शुभाकांक्षालु’ गाता हूँ। इस गीत के बोल हमें याद दिलाते हैं कि चाहे हम कहीं भी हों, घर की आत्मा कभी फीकी नहीं पड़ती।”
जैसे पश्चिमी नववर्ष में संकल्प लिए जाते हैं, वैसे ही उगादी पर भी लोग नए संकल्प लेते हैं। डॉ. अपर्णा चल्ला, कनाडा में वैज्ञानिक हैं, कहती हैं, “हर साल मैं एक नया प्रण लेती हूँ—फिट रहना, माता-पिता को रोज़ कॉल करना या बच्चों को तेलुगू लोककथा सिखाना।”
परंपरा को जीवित रखना
तेलुगू एनआरआई समुदाय के लिए उगादी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक विरासत है जिसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाना ज़रूरी है। सामुदायिक कार्यक्रम, मंदिर उत्सव और ऑनलाइन आयोजन इस परंपरा को जिंदा रखने में अहम भूमिका निभाते हैं।
प्रदीप वेलमकन्नी, लंदन में व्यवसायी, कहते हैं, “उगादी केवल त्योहार नहीं, एक भावना है। हजारों मील दूर रहकर भी यह हमें एकजुट करता है, यह याद दिलाता है कि हम कहां से आए हैं और कौन हैं।”
जैसे-जैसे तेलुगू परिवार नए साल का स्वागत करते हैं—उम्मीद, मिठास और थोड़ी सी नॉस्टैल्जिया के साथ—उगादी एक बार फिर यह साबित करता है कि तेलुगू संस्कृति का आत्मा आज भी उतनी ही जीवंत है, जितनी अपने मूल स्थान पर थी।
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