भारतीय मूल के बहुत से वैज्ञानिक विदेशों में काम कर रहे हैं और समाज की तरक्की में अपना योगदान दे रहे हैं। अब भारत सरकार ने इन वैज्ञानिकों के जरिए विभिन्न साइंस एंड टेक्नोलोजी प्रोजेक्टों को पूरा करने के लिए फेलोशिप योजना तैयार की है। इस योजना के तहत लगभग 75 वैज्ञानिकों से तीन साल तक भारत में सेवाएं ली जाएंगी।
इन वैज्ञानिकों की घर वापसी वैभव फेलोशिप योजना के तहत हो रही है। इसे भारत सरकार के विज्ञान एवं तकनीकी विभाग (डीएसटी) द्वारा अमल में लाया जा रहा है। करीब 80 करोड़ रुपये की इस योजना के पहले चरण के तहत भारतीय मूल के 22 वैज्ञानिकों के अप्रैल तक भारतीय संस्थान जॉइन करने की संभावना है।
ये वैज्ञानिक आईआईटी जैसे भारत के प्रमुख संस्थान और विश्वविद्यालयों से जुड़कर रिसर्च प्रोजेक्टों पर काम करेंगे। इन्हें तीन साल तक हर साल एक से दो महीने भारत में रहकर सेवाएं देनी होंगी। इसके बदले में उन्हें चार लाख रुपये का अनुदान दिया जाएगा। इसके लिए ऐसे वैज्ञानिकों को चुना गया है, जो कम से कम पांच साल तक विदेश में मान्यता प्राप्त संस्थानों में शोध कार्यों से सक्रिय रूप से जुड़े रहे हैं।
साइंस एंड टेक्नोलोजी विभाग की डॉ. चारू अग्रवाल ने मीडिया को बताया कि पिछले साल वैभव योजना के तहत हमें 302 वैज्ञानिकों की तरफ से प्रस्ताव मिले थे। इनमें से 22 को शॉर्टलिस्ट किया गया है। जल्द ही इन्हें लेटर जारी कर दिए जाएंगे। उम्मीद है कि वे अप्रैल से अपने संस्थान जॉइन कर लेंगे।
उन्होंने बताया कि ये वैज्ञानिक साइंस, टेक्नोलोजी, इंजीनियरिंग, मैथ एंड मेडिसिन (STEMM) से जुड़े क्षेत्रों में शोध कार्यों में अपना योगदान देंगे। इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग और डाटा साइंस पर जोर रहेगा। विभाग वैज्ञानिकों को अनुदान के अलावा विभाग रिसर्च से जुड़े संस्थानों को तीन साल तक पांच-पांच रुपये की वित्तीय सहायता भी प्रदान करेगा।
पहले चरण के लिए चुने गए वैज्ञानिकों में अमेरिका के अलावा स्वीडन, नॉर्वे, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, जापान और यूके के प्रवासी भारतीय शामिल हैं। इस योजना के तहत आवेदन करने वालों में सबसे ज्यादा अमेरिका और कनाडा के साइंटिस्ट शामिल थे। ये फेलोशिप सभी एनआरआई, भारतीय मूल के लोगों (पीओआई) और ओवरसीज सिटिजंस ऑफ इंडिया (ओसीआई) के लिए खुली है।
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