पिछले कुछ वर्षों में शेयर बाजार में निवेश करने वाले आम भारतीयों की संख्या में काफी उछाल आया है। सोमवार को भारतीय वित्त मंत्रालय की संसद में पेश रिपोर्ट में डेरिवेटिव ट्रेडिंग के प्रति खुदरा निवेशकों के इस भारी रुझान के लिए उनमें जुए की बढ़ती प्रवृत्ति को जिम्मेदार बताया गया।
आम बजट से एक दिन पहले संसद में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की तरफ से पेश वार्षिक आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारतीय खुदरा निवेशकों की डेरिवेटिव ट्रेडिंग में तेज उछाल उनकी 'जुआ प्रवृत्ति' से प्रेरित है।
डेरिवेटिव ट्रेडिंग में अचानक मोटा फायदा होने की संभावना रहती है। इंसानों की यही जुआ संभवतः प्रवृत्ति रिटेल कारोबारियों की इसकी तरफ खींच रही है। रिपोर्ट में आगाह करते हुए कहा गया है कि शेयर बाजार में इस प्रवृत्ति में कोई भी बड़ा सुधारात्मक बदलाव युवा निवेशकों को इससे दूर कर सकता है।
बता दें कि मार्च 2020 में कोरोना महामारी के बाद से से बेंचमार्क इक्विटी इंडेक्स 200% से अधिक बढ़ चुका हैं। इसकी मुख्य वजह डेरिवेटिव मार्केट में रिटेल ट्रेडर्स की भारी हिस्सेदारी है।
आंकड़ों के मुताबिक, डेरिवेटिव ट्रेडिंग वॉल्यूम का रिटेल ट्रेडर्स का हिस्सा 2018 में 2% था, जो इस साल बढ़कर 41% हो चुका है। इसकी वजह से मई में भारत के डेरिवेटिव कारोबार का मासिक अनुमानित मूल्य दुनिया भर में 9,504 ट्रिलियन रुपये (113.60 ट्रिलियन डॉलर) के उच्च स्तर पर पहुंच गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर डेरिवेटिव कारोबारियों को अधिकतर नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। भारतीय बाजार में गिरावट की स्थिति में यहां भी खुदरा निवेशकों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
विश्लेषकों का कहना है कि सरकार डेरिवेटिव ट्रेडिंग के प्रति लोगों के बढ़ते रुझान को कम करने के लिए बजट में डेरिवेटिव्स पर लेनदेन टैक्स बढ़ाने पर विचार कर सकती है और इक्विटी निवेश के दीर्घकालिक कर नियमों में भी बदलाव कर सकती है।
आर्थिक सर्वेक्षण में सूचीबद्ध भारतीय कंपनियों के बाजार पूंजीकरण में वृद्धि को लेकर भी आगाह किया गया है। देश के सबसे बड़े एक्सचेंज एनएसई में सूचीबद्ध कंपनियों का बाजार पूंजीकरण 22 जुलाई को 5.29 लाख करोड़ डॉलर था, जो एक साल पहले 3.59 लाख करोड़ डॉलर था।
आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि मार्च में ही जीडीपी के मुकाबले बाजार पूंजीकरण का अनुपात बढ़कर 124 प्रतिशत हो गया था, जो चीन और ब्राजील जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं से कहीं अधिक है।
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