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प्यार की ऐसी कहानी जो आज भी दिलों को तोड़ देती है...

बॉलीवुड की प्रेम कहानियां आइकॉनिक रहीं हैं। खास तौर पर वो जो परवान न चढ़ सकीं। सुरैया और देव आनंद की प्रेम कहानी भी ऐसी ही है जो आज भी दिलों को तोड़ देती है।

कोई 75 साल पहले 24 साल का एक अभिनेता 19 साल की एक किशोरी से मिला। उस समय वह किशोरी मायानगरी में चर्चा का सबब थी। किशोरी थी उभरती सिंगिंग स्टार सुरैया। उस समय गिरीश त्रिवेदी की 'विद्या' के चलते सुरैया सबकी जुबां पर थीं और सब उनके सामने सजदे की स्थिति में थे। सिवाय एक युवक के। उस युवक ने अचानक सुरैया का ध्यान अपनी तरफ खींचा। पूछने पर पता चला कि वह युवक उस फिल्म का 'हीरो' था। लगभग नया और अपनी तीन फ्लॉप फिल्मों हम एक हैं, आगे बढ़ो और मोहन की नाकामी के दौर से गुजरता हुआ।

देव आनंद और सुरैया की असल प्रेम कहानी में धर्म और समाज की कई दीवारें थीं।

लेकिन जब देव और सुरैया ने विद्या की साथ में शूटिंग शुरू की तो उभरती गायिका को जल्द ही अहसास हो गया कि देव न तो मगरूर हैं और न किसी के अपमान के ख्वाहिशमंद। बल्कि वे सुसंस्कृत, पढ़े-लिखे और किसी को भी आकर्षित करने वाले युवा थे। फिल्म विद्या की कहानी भी कुछ ऐसी थी कि नायिका (विद्या यानी सुरैया) को एक गरीब लड़के (देव यानी चंदू) से प्रेम हो जाता है। मगर दोनों के बीच अमीरी गरीबी के अलावा सामाजिक हैसियत की भी दीवार थी। चंदू एक चर्मकार का बेटा जो था। विद्या के पिता नायक-नायिका के मिलन पर राजी न थे।

असल जिंदगी में भी सुरैया बहुत जल्द अपना दिल देव को दे बैठी थीं। देव आनंद सुरैया को उनके पसंदीदा अभिनेता ग्रेगोरी पैक जैसे लगते थे। एक फिल्मी मगर असल वाकये ने दोनों के प्यार में अहसासों के शोले भी भड़का दिये थे। किनारे-किनारे चले जाएंगे बोल वाले एक गाने की शूटिंग झील में चल रही थी कि नाव पलट गई और सुरैया पानी में गिर गईं। देव ने बिना देर किये झील के पानी में गोता लगाया और 'अपनी नायिका' को बचाकर खतरे से बाहर ले आये। ये घटना दिलों को गहराई से जोड़ने वाली थी और दिलों में उतनी ही गहराई से उतरने वाली भी। अभिनेत्री ने बहुत समय बाद एक बात साझा की। सुरैया ने बताया कि जब पानी में गिरने वाली उसे घटना के बाद उन्होंने देव से कहा कि अगर आप मुझे न बचाते तो मैं डूब जाती। इस पर देव ने कुछ यूं कहा था- अगर तुम्हारी मौत हो जाती तो मेरी जिंदगी भी खत्म हो जाती।

इस तरह प्यार की दास्तान आगे बढ़ने लगी। मगर फिल्म विद्या में जिस तरह पिता नायक-नायिका के बीच की दीवार थे असल जीवन में सुरैया की दादी दोनों के बीच मुसीबतों को समंदर बनी हुई थीं। पर प्रेमी कहां मानते हैं। दोनों के बीच प्रेम-पत्रों का सिलसिला भी होता था मगर चिट्ठियां डाली नहीं जाती थीं। इस डर से की कहीं दादी के हाथ न पड़ जाएं। अलबत्ता, सुरैया की सहेलियां दुर्गा खोटे और कामिनी कौशल अपने हाथों खतों का लेना-देना करती थीं।

फिल्म जीत की शूटिंग के दौरान दोनों ने भाग कर शादी करने का फैसला किया। देव ने पैसों का इंतजाम भी कर लिया था और सुरैया के लिए सगाई की एक अंगूठी भी ले आये थे। सुरैया उस अंगूठी को पहनकर सातवें आसमान पर थीं। मगर की नानी को उस अंगूठी के हीरे की चमक खटक रही थी। गुस्साई नानी ने सुरैया की उंगली से अंगूठी उतारी और समंदर में फेंक दी। सुरैया कई दिनों तक रोती रहीं। इस बार नामी के साथ दादी ने फिर समझाया कि देव एक हिंदू है और हम कट्टर मुसलमान। ये मेल नहीं हो सकता। मगर फिर भी दोनों छुपकर मिलते रहे। देव के सिनेमेटोग्राफर दोस्त द्वारका द्रिवेचा ने प्रेमी-प्रेमिका की मुलाकात में कई बार मदद की।

इस बीच सुरैया और देव ने साथ में कई फिल्में कीं। शायर, अफसर, नीली, दो सितारे और 1951 में सनम। अफसर के दौरान सुरैया और देव के इश्क के चर्चे सबकी जुबां पर थे। देव गुपचुप शादी करना चाहते थे मगर सुरैया अंदर से भयभीत थीं। दादी-नानी के ताने और हिदायतों के साथ धर्म की बड़ी दीवारों ने सुरैया को आक्रांत कर रखा था। हालांकि सुरैया की मां मुमताज बेगम को इस प्यार से कोई गुरेज नहीं था। मुमताज तो रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहती थीं मगर वह भी अपनी मां और समाज से तो नहीं लड़ सकती थीं। आखिरकार देव ने अपने भाई चेतन आनंद के कहने पर भारी मन से चार साल के इस प्यार भरे दिल के रिश्ते को खत्म करने की ओर कदम बढ़ा दिये। सुरैया की मां ही दोनों के बीच आखिरी मुलाकात का सहारा बनीं। देव और सुरैया के रास्ते अलग हो गये।

प्रेम की पहली कश्ती डूबने के बाद देव को कल्पना कार्तिक से फिर प्यार हुआ और दोनों ने शादी कर ली।

फिल्म बाजी के दौरान देव का एक और प्यार परवान चढ़ा। देव के जीवन में कल्पना कार्तिक आईं। तीन साल बाद फिल्म टैक्सी ड्राइवर के दौरान देव ने कल्पना से चुपचाप शादी कर ली। कल्पना ने एक ईसाई होते हुए भी वह साहस दिखाया जो सुरैया न दिखा सकीं। देव और कल्पना की शादी ताउम्र चली। लेकिन सुरैया ने कभी शादी नहीं की। अपनी तन्हाइयों के साथ वे तब तक जीती रहीं जब तक कि जनवरी 2004 में उस दुनिया से उन्हे बुलावा न आ गया। कभी बॉलीवुड पर राज करने वाली गायिका-अदाकारा की मौत पर गम जताने के वास्ते बहुत लोग आए भी न थे। देव भी नहीं।

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