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इटली में 25वी वर्ल्ड कांग्रेस ऑफ फिलोसोफी में अक्षर पुरुषोत्तम दर्शन का हार्दिक स्वागत

आठ दिवसीय इस परिषद का आयोजन विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों में से एक और यूरोप के सबसे बड़े विश्वविद्यालय रोम के सापिएंज़ा विश्वविद्यालय में किया गया था।

सम्मेलन के दौरान अक्षर-पुरुषोत्तम दर्शन और आध्यात्मिक पर्यावरणीय दृष्टिकोण पर केंद्रित एक सत्र का भी आयोजन किया गया। / Image: BAPS Swaminarayan Sanstha

BAPS संस्था के महामहोपाध्याय भद्रेशदास स्वामी की अध्यक्षता में यूके, यूएसए और भारत के विद्वानों द्वारा 'अक्षर-पुरुषोत्तम दर्शन और आध्यात्मिक ईकोलॉजी विषयक विशेष सत्र का आयोजन किया गया। 

वर्ल्ड कांग्रेस ऑफ फिलोसोफी के अध्यक्ष प्रोफेसर लुका स्कारंटिनो ने सनातन धर्म की वेदांत प्रस्थानत्रयी पर आधारित अक्षर पुरुषोत्तम दर्शन को प्रस्तुत करते 'स्वामिनारायण भाष्यम' को स्वीकार कर हर्ष व्यक्त किया।

आठ दिवसीय इस परिषद का आयोजन विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों में से एक और यूरोप के सबसे बड़े विश्वविद्यालय रोम के सापिएंज़ा विश्वविद्यालय में किया गया था। 1 से 8 अगस्त के बीच आयोजित इस सम्मेलन में 120 देशों के 89 तात्त्विक विद्याशाखाओं के 5000 से अधिक विद्वान और छात्रों ने हिस्सा लिया था। 

महंत स्वामी महाराज के आशीर्वाद और मार्गदर्शन में स्वामिनारायण संप्रदाय के शास्त्रीय दार्शनिक विचार एवं जीवनशैली अर्थात् अक्षर-पुरुषोत्तम दर्शन का इटली के ऐतिहासिक शहर रोम में 25वें विश्व तत्त्वज्ञान महासम्मेलन में स्वागत किया गया। 

इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ फिलोसोफी (FISP) द्वारा आयोजित इस परिषद ने विश्वभर की 89 दार्शनिक उपशाखाओं के विद्वानों को समकालीन वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने और मानव अस्तित्व की गहन समझ को प्रोत्साहित करने के लिए गहन चर्चा एवं विचारों के आदान-प्रदान का मंच प्रदान किया।

सम्मेलन के दौरान महामहोपाध्याय भद्रेशदास स्वामी की अध्यक्षता में अक्षर-पुरुषोत्तम दर्शन और आध्यात्मिक पर्यावरणीय दृष्टिकोण पर केंद्रित एक रोचक सत्र आयोजित किया गया। इसका उद्देश्य धार्मिक दार्शनिक दृष्टिकोण खासकर अक्षर-पुरुषोत्तम दर्शन के माध्यम से पर्यावरण के प्रति हमारे दृष्टिकोण और विश्वासों का पुनर्मूल्यांकन करना था।   

यूके, यूएसए और भारत के विद्वानों ने अक्षर-पुरुषोत्तम दर्शन के दार्शनिक सिद्धांतों के विषय में अपने अनुसंधान प्रस्तुत किए जो भक्ति, नैतिक जीवन, मानव सेवा एवं पर्यावरण के साथ व्यावहारिक समन्वय साधते हैं। 

दिल्ली विश्वविद्यालय के तत्त्वज्ञान के प्रोफेसर बालगणपति देवारकोंडा ने इस अवसर पर कहा कि अक्षर-पुरुषोत्तम दर्शन को इतने बड़े शैक्षणिक कार्यक्रम में इस तरह से उत्साहपूर्ण स्वीकृति मिलते देखना अत्यंत हर्ष का विषय है। निस्संदेह अक्षर-पुरुषोत्तम वेदांत दर्शन की जड़ें पवित्र सनातन हिंदू शास्त्रों में हैं लेकिन कुछ पश्चिमी तत्त्वज्ञानियों के लिए यह अपरिचित हो सकता है। इसलिए उन्हें इस दर्शन में रुचि लेते और इसे समझते देखना काफी उत्साहजनक रहा। 

औपचारिक सत्रों के अलावा स्वामियों ने इंटेरकटिव वर्कशॉप, परस्पर संवादों और अनौपचारिक बैठकों के माध्यम से विद्वानों के साथ अर्थपूर्ण विमर्श किया। इससे उन्हें दार्शनिक विचारों को साझा करने और खुले शैक्षणिक संवाद एवं परस्पर समृद्धि की भावना में एक-दूसरे से सीखने का अवसर मिला। 

FISP और वर्ल्ड कांग्रेस ऑफ फिलोसोफी के अध्यक्ष प्रोफेसर स्कारंटिनो और भद्रेशदास स्वामी ने व्यक्तिगत बैठक में परिषद के बारे में चर्चा की और उसके भविष्य का मूल्यांकन किया। उन्होंने वर्तमान समाज में तत्त्वज्ञान की प्रासंगिकता, सतत संवाद और अनुसंधान की आवश्यकता पर जोर दिया। प्रोफेसर स्कारंटिनो ने परिषद में अक्षर-पुरुषोत्तम दर्शन प्रस्तुत करने के लिए भद्रेशदास स्वामी का आभार व्यक्त किया। 

दार्शनिक चर्चा के बाद प्रोफेसर लुका स्कारंटिनो ने वेदांत प्रस्थानत्रयी पर स्वामीनारायण परंपरा में अक्षर-पुरुषोत्तम दर्शन के सिद्धांतों को शास्त्रीय रूप से संस्कृत में उजागर करने वाले भाष्य 'स्वामीनारायण भाष्यम' को उसके रचयिता महामहोपाध्याय भद्रेशदास स्वामी से प्राप्त कर प्रसन्नता व्यक्त की। 

जापान के फिलोसोफिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष और आगामी वर्ल्ड कांग्रेस ऑफ फिलोसोफी के आयोजक प्रोफेसर नोबुरु नोटोमी भी इस बैठक में उपस्थित थे। उन्होंने 2028 में टोक्यो में आयोजित होने वाले 26वें वर्ल्ड कांग्रेस ऑफ फिलोसोफी परिषद में अक्षर-पुरुषोत्तम दर्शन को प्रस्तुत करने का निमंत्रण दिया।

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