दुनिया की नजर अमेरिका के चुनाव पर है। इस सप्ताह के दूसरे दिन यानी मंगलवार को अमेरिका में मतदान है। मतदाताओं का फैसला 'बंद' होने के बाद नतीजे आने में हालांकि कुछ समय लगेगा लेकिन कांटे के 'दंगल' में 'मंगल' किसका होगा कहना कठिन है। करीब चार महीने में दो बार रुख बदल चुका चुनावी मुकाबला अब कांटे की जंग पर आ टिका है। राष्ट्रपति बाइडेन के चुनाव मैदान में रहते जो मुकाबला ट्रम्प की ओर जाता दिख रहा था या दिखाया जा रहा था वह उनके दौड़ से हटते ही उनकी प्रतिनिधि हैरिस के पक्ष में होने लगा था। लेकिन आखिरी चरण तक आते-आते लड़ाई कांटे की हो गई है। हैरिस के चुनाव मैदान में आने के बाद उनके समर्थन में बड़ी बयार चली थी किंतु गुजरते समय के साथ उसका वेग भी थमा है और स्पर्धा बेहद नजदीकी हो चली है। डेमोक्रेटिक उम्मीदवार कमला हैरिस ने बीते बुधवार मतदाताओं से जिस तरह की भावुक अपील की है उससे भी साफ हो जाता है कि मुकाबला एकतरफा कतई नहीं है। आखिरी वक्त में दोनों पक्षों के परस्पर प्रहार भी तीखे हो गये हैं, जिनमें शालीनता को थोड़ा किनारे कर दिया गया है।
जहां तक मतदान की बात है तो अमेरिका के करीब 30 करोड़ मतदाताओं में से 3 करोड़ के आसपास लोग समय पूर्व मतदान प्रक्रिया के तहत अपने मताधिकार का प्रयोग कर चुके हैं। यह प्रक्रिया कई दिनों से चल रही है और सोमवार तक चलेगी। इसी प्रक्रिया के तहत पूर्व राष्ट्रपति ओबामा और वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन अपने मताधिकार का प्रयोग कर चुके हैं। इत्तेफाक से दोनों ही हैरिस समर्थक हैं। समय पूर्व मतदान से जुड़ी एक दिलचस्प बात यह है कि जिन सात राज्यों को स्विंग स्टेट्स कहा जाता है वहां के मतदाताओं ने जल्द वोट करने को लेकर खासा उत्साह दिखाया है। कहा जा रहा है कि यही स्विंग स्टेट इस बार भी विजेता की किस्मत का फैसला करने वाले हैं। हालांकि पिछले दिनों आए कुछ सर्वेक्षणों में हैरिस को ट्रम्प से आग दिखाया गया है लेकिन वह अंतर मामूली है। एक फीसद से लेकर दो तक। ऐसे में एकदम अंत में अपना मन बनाने वाले मतदाता चुनाव नतीजों को किसी भी उम्मीदवार के पास या दूर ले जा सकते हैं। लिहाजा बड़ी और ऐतिहासिक लड़ाई में तमाम मतदाताओं को बार-बार यह एहसास दिलाया जा रहा है कि इस बार उनका वोट कितना कीमती है।
चूंकि डेमोक्रेटिक उम्मीदवार का मूल भारत से भी जुड़ा है इसलिए भारतीय अमेरिकी और यहां तक कि दक्षिण एशियाई मतदाताओं का रुझान स्वाभाविक तौर पर कमला हैरिस की ओर हो सकता है। डेमोक्रेटिक अभियान से जुड़े कई संगठन, समुदाय और स्वतंत्र लोग इस रूझान का दावा करते हैं और लंबे समय से मूल और विरासत की पहचान के आधार पर हैरिस के पक्ष में लामबंदी के लिए लगे हैं। भारत में भी अमेरिका के इस चुनाव को भावनात्मक रूप से 'अपना मानकर' देखा जा रहा है। किंतु ट्रम्प के पक्ष में भी कई भारतीय-अमेरिकी हैं। अपने पिछले कार्यकाल में ट्रम्प भारतीय सत्ता के सदर मोदी से अपनी नजदीकियां खुलकर जाहिर कर चुके हैं। वे नजदीकियां कम हुई होंगी, ऐसा नहीं लगता। लेकिन यह तो माना ही जा सकता है कि उम्मीदवार की छवि मतदाता के फैसले का आंशिक आधार तो होगी। निर्णय अलबत्ता नीति पर ही लिया जाएगा। आधी आबादी अगर हैरिस की ओर जाती है तो बड़ा फर्क हो सकता है। इन तमाम कयासों और सवालों के जवाब तय तो मंगलवार को ही हो जाएंगे... बस नतीजों का पिटारा खुलने के लिए थोड़ा इंतजार करना होगा।
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