टेक्सास यूनिवर्सिटी, ऑस्टिन के कॉकरेल स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग के भारतीय मूल के प्रोफेसर मारुति अकेला ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। उनके नाम पर एक एस्टेरॉइड का नाम रखा गया है। ये नामकरण इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन (IAU) के नियमों के मुताबिक हुआ है, जिसमें नॉमिनेशन और रिव्यू की कठिन प्रक्रिया होती है। मारुति के लिए ये नॉमिनेशन NASA के जेट प्रॉपल्शन लेबोरेटरी में सीनियर साइंटिस्ट और अकेला के पुराने सहकर्मी रयान पार्क ने किया था।
इस एस्टेरॉइड का नाम अब मारुतिअकेला (Maruthiakella) है। ये 1990 में खोजा गया था और बृहस्पति और मंगल ग्रह के बीच के मुख्य एस्टेरॉइड बेल्ट में मौजूद है। ये लगभग 5.5 मील चौड़ा है और सूर्य की परिक्रमा तीन साल और नौ महीने में पूरी करता है।
मारुति ने कहा, 'यह खबर सुनकर मैं अभी भी हैरान और दंग हूं। इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन (IAU) की वर्किंग ग्रुप ने अपने लेटेस्ट बुलेटिन में एक एस्टेरॉइड का नाम मेरे नाम पर रखा है। ये सब एस्ट्रोडायनामिक्स के क्षेत्र में मेरे कई सम्मानित साथियों और मेरे बेहतरीन छात्रों के समर्थन के बिना मुमकिन नहीं था। सबका बहुत-बहुत शुक्रिया। मैं जरूर आगे भी अपना बेहतर देने की कोशिश करूंगा।'
मारुति स्पेस सिस्टम के लिए लर्निंग और कंट्रोल के क्षेत्र में विश्व-प्रसिद्ध विशेषज्ञ हैं। उन्होंने एस्ट्रोडायनामिक्स और अंतरिक्ष खोज में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इन्ट्यूटिव मशीन्स के IM-1 लूनर लैंडर के गाइडेंस सिस्टम में उनकी विशेषज्ञता अहम रही। ये 50 सालों में चांद पर पहुंचने वाला पहला अमेरिकी यान था।
टेक्सास यूनिवर्सिटी के एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख क्लिंट डॉसन ने अकेला की उपलब्धियों की प्रशंसा करते हुए कहा, 'मारुति जैसे प्रोफेसर मिलना हमारे लिए सौभाग्य की बात है। एस्ट्रोडायनामिक्स के क्षेत्र में उनकी विशेषज्ञता को सब मानते हैं। वह इस सम्मान के पूरी तरह से हकदार हैं।'
मारुति अकेला का सफर भारत के छोटे से शहर से शुरू हुआ था। राकेश शर्मा की ऐतिहासिक अंतरिक्ष यात्रा ने उन्हें अंतरिक्ष के प्रति आकर्षित किया था। आठवीं कक्षा से स्कूल की पढ़ाई शुरू करने के बावजूद, उन्होंने पढ़ाई में कामयाबी हासिल की और एयरोस्पेस में अपना जुनून पूरा किया।
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