उत्तर भारत के गांवों में सुबह-सुबह घना कोहरा छाया है। ठंडी हवा चल रही है। सब कुछ धुंधला-सा दिख रहा है। लेकिन बारह साल की अशलीन खेला को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अशलीन ऑस्ट्रेलिया की सबसे कम उम्र की भारतीय मूल की लेखिका हैं। वो पंजाब के गरीब बच्चों के लिए काम कर रही हैं।
अपनी दो किताबों, '17 स्टोरीज' और 'जर्नी थ्रू हर जर्सी' से मिली कमाई से वो गरीब बच्चों को लैपटॉप, पैसे, गर्म ट्रैकसूट, मोजे, टोपियां, फल और अपनी किताबें दे रही हैं। जनवरी के महीने में कुछ जगहों पर तापमान दो डिग्री तक गिर जाता है। कई स्कूलों की क्लासरूम फ्रिज से भी ज्यादा ठंडे होते हैं। लेकिन अशलीन की लगन और मेहनत देखकर बच्चों के चेहरे खिल उठते हैं। उनकी बातें सुनकर बच्चों की आंखों में उम्मीद की एक नई किरण जगमगा उठती है।
इस छोटी सी लेखिका का परिवार हर साल भारत आता है ताकि अपने भारतीयपन से जुड़े रह सकें। अशलीन ने अपनी पहली किताब ग्यारह साल की उम्र में लिखी थीं। सात साल की उम्र में भारत आने के दौरान ही उन्हें लिखने का शौक हुआ। कोरोना लॉकडाउन के दौरान इस शौक को और निखारा। लॉकडाउन से पहले के एक दौरे में वो पंजाब के कुछ गरीब बच्चों से मिलीं। यहीं से अशलीन को इन बच्चों की मदद करने की चाहत हुई।
उनकी किताब की कहानियों में से एक कहानी की प्रेरणा उन्हें सात साल की उम्र में भारत के दौरे से मिली थी। अपने परिवार के साथ कार में आनंदपुर साहिब गुरुद्वारे जा रही थीं। इस दौरान रास्ते में उन्होंने कई प्रवासी मजदूरों के बच्चों को सड़क किनारे झुग्गियों में रहते देखा। ये देखकर उन्हें बहुत बुरा लगा और उन्होंने इन बच्चों की मदद करने की ठान ली।
गुरुद्वारा साहिब से वापस आते वक्त उनकी मां और दादी ने उन्हें केले दिए जिससे वो रास्ते के गरीब बच्चों को बांट सकें। सैकड़ों बच्चे झुंड की तरह दौड़ते हुए उनके पास आ गए, हर बच्चे को बस एक केला चाहिए था। उन्हें समझ आया कि दुनिया के कुछ हिस्सों में, खासकर भारत के गांवों में, एक केला भी गरीब बच्चों के लिए बहुत बड़ी बात होती है। अशलीन कहती हैं कि उसी पल उनके मन में गरीब बच्चों की मदद करने का जज्बा पैदा हुआ। उन्होंने इन बच्चों के बारे में लिखने और उनकी मदद करने के लिए कुछ बड़ा करने का फैसला किया।
ऑस्ट्रेलिया वापस जाने के कुछ ही समय बाद कोविड-19 महामारी शुरू हो गई और लॉकडाउन लग गया। लॉकडाउन के दौरान अशलीन ने अपनी कहानियों को लिखने में समय बिताया। पहले उन्होंने पंजाब के गरीब बच्चों से प्रेरणा ली। अपनी रचनात्मकता और कल्पना का इस्तेमाल करके अपनी पहली किताब '17 स्टोरीज' की कहानियां लिखीं।
आशलीन कहती हैं कि सिडनी में अपने घर के पिछवाड़े से लेकर गुफाओं, पहाड़ों और पंजाब के गांवों तक उन्होंने पाठकों को एक कल्पनाशील यात्रा पर आमंत्रित किया। वो सामाजिक अन्याय और अभाव पर विचार करने के लिए प्रेरित करती हैं। खासकर भारत में सड़क किनारे झुग्गियों में रहने वाले गरीब बच्चों के सामने आने वाली चुनौतियों को उजागर करती हैं।
उनकी पहली किताब '17 स्टोरीज' में से एक कहानी, 'एलिसा एंड जोसेफीन', विकसित और विकासशील देशों के बच्चों के जीवनशैली में अंतर दिखाती है। दूसरी कहानी, 'जॉम्बी वायरस डायरी एंट्री', कोविड लॉकडाउन के दौरान उनके निजी अनुभवों को रचनात्मक रूप से पेश करती है। इसमें एक ऑस्ट्रेलियाई स्कूली बच्चे की घर में कैद होने की भावनाओं पर प्रकाश डाला गया है।
अशलीन ने ग्यारह साल की उम्र में अपनी पहली किताब, '17 स्टोरीज', प्रकाशित की। इस किताब से मिली सारी कमाई का इस्तेमाल उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई चैरिटी और विकासशील देशों के बच्चों की मदद करने में किया। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के रिटर्न एंड अर्न प्रोग्राम के जरिए बोतलें और डिब्बे इकट्ठा करके और पौधे बेचकर खुद ही इस किताब को छापने का खर्चा उठाया। उन्होंने कहा, 'मैं अपने माता-पिता से बिना किसी आर्थिक मदद के खुद को सहारा देना और इस काम के लिए पैसे जुटाना चाहती थी।'
उनकी दूसरी किताब, 'जर्नी थ्रू हर जर्सी' पिछले महीने प्रकाशित हुई हैं। यह खेलों में लड़कियों के सामने आने वाली बाधाओं पर चिंतन करती है। इसकी प्रेरणा उनकी छोटी बहन अवलीन से मिली है। अशलीन कहती हैं, 'जब मेरी बहन स्कूल के क्रिकेट क्लब में नहीं जा सकी क्योंकि वो सिर्फ लड़कों के लिए था, तो उन्हें बहुत दुख हुआ। उसी घटना ने मुझे लड़कियों के लिए समान अवसरों की वकालत करने के लिए प्रेरित किया। दुर्भाग्य से, दुनिया में अभी भी लिंग पूर्वाग्रह छिपा हुआ है। यह किताब महिलाओं के उपेक्षित अधिकारों पर प्रकाश डालती है। दुनिया के अमीर और गरीब दोनों हिस्सों में युवा महिलाओं की क्षमताओं पर जोर देती है।' इस किताब के जरिए अशलीन विकासशील देशों के गरीब बच्चों के लिए धन जुटा रही हैं।
उनके पिता अमरजीत ने बताया कि अशलीन ने बच्चों के लिए 3.5 लाख रुपये खर्च किए हैं। इसके अलावा उन्होंने अपनी पहली किताब '17 स्टोरीज' से ऑस्ट्रेलिया के कैंसर काउंसिल और स्टारलाइट चिल्ड्रेन फाउंडेशन के लिए जो पैसा जुटाया था, वो भी शामिल है।
इस छोटी सी लड़की के नेक कामों में सरकारी हाई स्कूल कौलगठ (बलाचौर), जिला एसबीएस नगर को 10,000 रुपये, तीन लैपटॉप और अपनी किताबें शामिल हैं। इसके अलावा सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल सिम्बले माजरा, जिला एसबीएस नगर को 10,000 रुपये, दो लैपटॉप और किताबें। सरकारी प्राथमिक स्कूल सजावलपुर (जिला एसबीएस नवांशहर) को गर्म ट्रैकसूट, टोपियां, मोजे, फल और लैपटॉप। हाई स्कूल कालुवाहार (जिला होशियारपुर) को दो लैपटॉप और किताबें। सरकारी प्राथमिक स्कूल पंडोरी खजूर (जिला होशियारपुर) को एक लैपटॉप, गर्म कपड़े और अपनी किताबें। सरकारी प्राथमिक स्कूल हुसैनपुर गुरु को (जिला होशियारपुर) को एक लैपटॉप, गर्म कपड़े और अपनी किताबें। सरकारी प्राथमिक स्कूल मल्लियां नंगल (जिला होशियारपुर) को एक लैपटॉप, गर्म कपड़े और अपनी किताबें। सरकारी प्राथमिक स्कूल नूरपुर (जिला जालंधर) को तीन लैपटॉप और अपनी किताबें देना शामिल है। अशलीन ने सड़क किनारे झुग्गी में रहने वाले बच्चों को भी गर्म ट्रैकसूट, टोपियां, मोजे, फल और अपनी किताबें दीं। इन बच्चों ने ही कुछ साल पहले होशियारपुर रूपनगर हाईवे पर चंकौया गांव में उन्हें लिखने के लिए प्रेरित किया था।
उनके परिवार ने बताया कि अशलीन देश छोड़ने से पहले कुछ और स्कूलों में जाने और जरूरतमंद बच्चों को और लैपटॉप, गर्म कपड़े और पैसे देने की योजना बना रही है। आशलीन कहती हैं, 'अपनी जड़ों से जुड़कर और अपने माता-पिता के मूल स्थान के लोगों के लिए कुछ करने से मुझे बहुत संतुष्टि मिलती है। मुझे अपने देश ऑस्ट्रेलिया से बहुत प्यार है क्योंकि मैं वहीं पैदा हुई हूं। लेकिन मुझे भारतीय मूल की होने पर भी बहुत गर्व है। उम्र महज एक संख्या है। अगर हम दृढ़निश्चयी और समर्पित हों, तो हम किसी भी क्षेत्र में कभी भी कोई भी लक्ष्य हासिल कर सकते हैं। वापस देने और समाज में योगदान करने की संतुष्टि अद्वितीय है।'
पिछले कुछ हफ्तो में अशलीन ने कई स्कूलों की सभाओं को संबोधित किया और बच्चों को प्रेरित किया कि वे अपने चुने हुए क्षेत्रों में अपना सर्वश्रेष्ठ दें और अपने जुनून या पेशे के माध्यम से समुदाय की सेवा करें।अशलीन की पहली किताब '17 स्टोरीज' ऑस्ट्रेलिया के 300 से अधिक सार्वजनिक पुस्तकालयों के संग्रह का हिस्सा है।
उनके पिता अमरजीत से बताते हैं कि भारत में उन्हें पंजाब विश्वविद्यालय, पंजाब के विभिन्न कला और सांस्कृतिक संघों और एसबीएस नगर के ब्लड बैंक एनजीओ द्वारा सम्मानित किया गया है। ऑस्ट्रेलिया में उनकी उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिए उन्हें 'यंग ऑस्ट्रेलियन सिख ऑफ द ईयर अवार्ड 2024' के लिए फाइनलिस्ट के तौर पर नामांकित किया गया है। महिला मामलों की NSW मंत्री जोडी हैरिसन द्वारा जारी एक विज्ञप्ति के अनुसार, NSW सरकार 6 मार्च, 2025 को सिडनी के इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर में NSW वुमन ऑफ द ईयर अवार्ड्स समारोह 2025 के दौरान अशलीन को राज्य स्तरीय पुरस्कार प्रदान करेगी।
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