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बेंलगुरु के कोरमंगला में आयुर्वेदिक उपचार से थायरॉयड की बीमारी का हल

अब कई लोग आयुर्वेदिक चिकित्सा जैसी वैकल्पिक उपचार पद्धतियों की ओर रुख कर रहे हैं।

कोरमंगला में आयुर्वेदिक उपचार /

थायरॉयड ग्रंथि से जुड़ा हाशिमोटो एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसे पश्चिमी चिकित्सा अभी तक पूरी तरह से ठीक नहीं कर पाई है। इस बीमारी से पीड़ित मरीजों को दवाओं के बावजूद लक्षणों से पूरी तरह राहत नहीं मिलती। यही कारण है कि अब कई लोग आयुर्वेदिक चिकित्सा जैसी वैकल्पिक उपचार पद्धतियों की ओर रुख कर रहे हैं।

ब्रिंदा पिछले तीन सालों से अस्पतालों के चक्कर लगा रही थीं। जब वह अपनी 35 वर्षीय बेटी के साथ पंचकर्म उपचार के लिए एक आयुर्वेद केंद्र में गईं, तब उन्होंने वहां थायरॉयड और पाचन तंत्र पर इसके प्रभावों के बारे में जाना।

थायरॉयड के लिए आयुर्वेदिक मसाज
स्वास्थ्य सलाहकारों की सिफारिश पर मैंने कोरमंगला स्थित शतायु आयुर्वेदिक क्लिनिक का रुख किया। वहां डॉक्टर गीता ने नाड़ी परीक्षण करते हुए आयोडीन की कमी और पाचन तंत्र की स्थिति को समझा और उपचार की योजना बनाई। डॉ. गीता ने बताया कि रोजाना मसाज से अंतःस्रावी (एंडोक्राइन) और पाचन तंत्र की कार्यप्रणाली बेहतर हो सकती है।

मसाज से ऊर्जा प्रवाह में सुधार
उन्होंने बताया कि मसाज लसीका प्रणाली (लिम्फैटिक सिस्टम) को उत्तेजित करता है, जिससे शरीर के विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते हैं। इससे थायरॉयड ग्रंथि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और यह बेहतर तरीके से काम करने लगती है।

मध्वी प्रैट, जो अमेरिका के लॉस आल्टोस में रहती हैं, एक दशक से अंतःस्रावी और पाचन तंत्र संबंधी समस्याओं से जूझ रही थीं। उन्होंने कई डॉक्टरों और उपचार विधियों को आजमाया। अब वह पेट मसाज करवा रही हैं और इसे प्रभावी पा रही हैं। "मुझे दो दिन तक कोई रेचक (लैक्सेटिव) नहीं लेना पड़ा," उन्होंने खुशी से बताया।

पंचकर्म – शरीर और मन का संतुलन
डॉ. गीता ने पंचकर्म की व्याख्या करते हुए बताया कि यह आयुर्वेद की एक गहन शुद्धिकरण प्रक्रिया है, जो शरीर को विषमुक्त करके तीनों दोषों—वात, पित्त, और कफ—को संतुलित करती है। मैं सौभाग्यशाली थी कि मेरा पृथ्वी तत्व का असंतुलन अपेक्षाकृत हल्का था, जिसे आयुर्वेदिक मसाज और हर्बल थेरेपी से ठीक किया जा सकता था।

थायरॉयड ग्रंथि को ठीक करने के लिए विशेष जड़ी-बूटियों और तेलों से मालिश की गई, जिससे अतिरिक्त तरल पदार्थ और संकुचन दूर हुए।

मसाज और स्टीम थेरेपी का असर
45 मिनट की यह मसाज एक कसरत की तरह थी—मसाज करने वाली दोनों चिकित्सकों की समानांतर हाथों की गति ने इसे एक लयबद्ध प्रक्रिया बना दिया।

इसके बाद अभ्यंग (तेल मालिश) और 15 मिनट की स्वेदन (हर्बल भाप चिकित्सा) ने रक्त संचार को बढ़ाया और थायरॉयड ग्रंथि को आवश्यक पोषण और ऑक्सीजन प्राप्त करने में मदद की।

किरण बट्टा, जिन्होंने बेंगलुरु के जिंदल नेचरक्योर इंस्टीट्यूट में 15 दिन का आयुर्वेदिक कोर्स किया, ने इस उपचार से 5 किलो वजन कम किया और महसूस किया कि मसाज से रक्त संचार में सुधार हुआ।

यह भी पढ़ेंः आयुर्वेद ने अल्जाइमर के इलाज के लिए दिखाई नई राह, उजागर हुआ भारतीय चिकित्सा का यह पक्ष

थायरॉयड हॉर्मोन संतुलन में मददगार शिरोधारा
शिरोधारा (गर्म तेल को माथे पर लगातार गिराने की प्रक्रिया) को तनाव कम करने और नर्वस सिस्टम को शांत करने के लिए जाना जाता है। यह थायरॉयड हार्मोन के संतुलन में भी मदद करता है।

उपचिकित्सा – नास्य और योग
मेरा पसंदीदा उपचार था नास्य, जिसमें नाक में औषधीय घी डालकर चेहरे की मालिश की जाती है। यह साइनस को साफ करता है, सिर और गर्दन में रक्त संचार बढ़ाता है और थायरॉयड कार्यप्रणाली को बेहतर बनाता है।

डॉ. रुक्मणी नायर (बापू नेचर क्योर हॉस्पिटल की सह-संस्थापक) ने भी बताया कि योग और गर्दन के व्यायाम से थायरॉयड को बिगड़ने से बचाया जा सकता है। उन्होंने "सबक्लिनिकल हाइपोथायरायडिज्म पर योग के प्रभाव" पर क्लिनिकल परीक्षण किए हैं।

आयुर्वेदिक उपचार का प्रभाव
एक सप्ताह के इस उपचार के बाद मैंने महसूस किया कि—
चेहरे की सूजन कम हो गई और इससे वजन कम होने का भ्रम हुआ।
त्वचा अधिक चमकदार और स्वस्थ लग रही थी।
जोड़ों की गतिविधि में सुधार हुआ और शरीर अधिक हल्का महसूस हुआ।
थायरॉयड और पाचन तंत्र की कार्यक्षमता में सकारात्मक परिवर्तन दिखे।

कोरमंगला स्थित शतायु आयुर्वेदिक क्लिनिक, जो एक साधारण-सी इमारत में स्थित है, आयुर्वेद की इस प्राचीन विद्या को जीवित रखे हुए है। यह हमें याद दिलाता है कि स्वास्थ्य केवल दवाओं तक सीमित नहीं, बल्कि संपूर्ण जीवनशैली का संतुलन भी जरूरी है।

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