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बांग्लादेश, अमेरिका और भारत

भारत के पड़ोसी और अमेरिका से मीलों दूर बसे बांग्लादेश में हिंसा अभी थमी नहीं है। भारत के लिहाज से बांग्लादेश की हिंसा और सियासी-सामाजिक अराजकता के कई चिंताजनक पहलू हैं।

पिछले दिनों हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन (HAF) के हिंदू समुदाय ने फ़्रेमोंट, कैलिफोर्निया में एक रियासी स्मरण रैली का आयोजन किया। / X.com/@HinduAmerican

बांग्लादेश में व्यवस्था से उपजे असंतोष ने हिंसा और अराजकता का रुख अख्तियार करते हुए तख्तापलट कर दिया और अंतत: प्रधानमंत्री शेख हसीना को सत्ता छोड़कर भागना पड़ा। इस्तीफा देने के बाद फिलहाल हसीना भारत की शरण में हैं और किसी दूसरे मुल्क जाने की फिराक में हैं। भारत के पड़ोसी और अमेरिका से मीलों दूर बसे बांग्लादेश में हिंसा अभी थमी नहीं है। भारत के लिहाज से बांग्लादेश की हिंसा और सियासी-सामाजिक अराजकता के कई चिंताजनक पहलू हैं। गंभीर रूप से चिंता का एक सबब वहां की लक्षित हिंसा में हिंदुओं का मारा जाना है। इस पर भारत के सत्ता और समाज में बड़ी हलचल है। लेकिन बांग्लादेश के हालात के पीछे अमेरिका के हाथ की आशंका दोनों देशों के लिए असहज करने वाली स्थिति है।

इन हालात में भारत के राजनीतिक विश्लेषकों और सेना-रक्षा से जु़ड़े पूर्व अधिकारियों ने अपनी प्रतिक्रिया में बांग्लादेश के हालात के पीछे अमेरिका की भूमिका को अपने तर्कों से आधार दिया है। राजनीति और रक्षा क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि अमेरिका अर्से से बंगाल की खाड़ी में अपनी मौजूदगी बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। कुछ माह पहले ही शेख हसीना ने कहा था कि एक विदेशी ताकत(?) सेंट मार्टिन द्वीप पर सैन्य अड्डा बनाने की मांग कर रही है, ताकि चीन के मुकाबले अपनी स्थिति पुख्ता की जा सके। अब चीन के प्रतिकार के लिए कौन सा देश अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर सकता है। विश्लेषकों का सीधा निशाना अमेरिका पर है। जानकारों का तो यहां तक कहना है कि शेख हसीना अमेरिका के मंसूबों में बाधा बन रही थीं और वह येन-केन प्रकारेण उन्हे सत्ता से बेदखल करना चाहता था।  

खैर, बांग्लादेश के हालात को लेकर अमेरिका ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। अमेरिका का कहना है कि हमारी वहां के हालात पर नजर है। अमेरिका ने हिंसा खत्म करने के साथ ही अंतरिम सरकार के गठन का स्वागत किया है। सियासी जानकार यहां पर अमेरिका की नजर में खोट देखते हैं क्योंकि बांग्लादेश की हसीना सरकार लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई थी। ऐसे में आंतरिक सरकार के गठन के स्वागत के क्या मायने निकाले जाएं? कहा तो यह भी जा रहा है एक तरफ अमेरिका लोकतांत्रिक मूल्यों की दुहाई देता है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन करता है लेकिव जब अमेरिका के विश्वविद्यालयों में छात्र फिलिस्तीन के लिए आवाज उठाते हैं तो उनका दमन किया जाता है। वहीं, जब छात्र और नौकरीपेशा लोग शेख हसीना सरकार की आरक्षण नीतियों का विरोध करने के लिए हिंसक तरीके से अपना पक्ष रखते हैं तो अमेरिका उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बताकर उनके साथ खड़ा हो जाता है। अमेरिका की यह नीति आशंकाओं का बल दे रही है।

जहां तक भारत का ताल्लुक है बांग्लादेश से उसके अच्छे संबंध हैं। बेशक, इसीलिए हसीना ने हालात बेकाबू होते ही भारत का रुख किया। लेकिन चिंता का पहलू भारतीय नागरिकों और हिंदुओं का तख्तापटल हिंसा में निशाना बनाया जाना है। बांग्लादेश की लक्षित हिंसा में हिंदुओं की जान-नाल का भारी नुकसान हुआ है। हालांकि अब वहां आंतरिक सरकार का गठन हो गया है लिहाजा हिंसा की आग शांत होने की उम्मीद की जा सकती है। मगर, कई प्रश्न हैं जो अनुत्तरित हैं। बांग्लादेश के हालात के पीछे यूं तो पाकिस्तान की भूमिका को भी संदेह की नजर से देखा जा रहा है लेकिन बड़ी बात अमेरिका की है। खास तौर से भारत के लिहाज से। 

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