अमेरिका में सत्ता परिवर्तन हो चुका है। नामित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का शपथ समारोह भले ही जनवरी में होगा लेकिन सत्ता के नये सदर ने अपनी दूसरी पारी में फैसले लेने शुरू कर दिये हैं। सत्ता में एक नये युग की शुरुआत के साथ ही अमेरिकावासियों को उम्मीद है कि अब उनके जमीनी हालात में सकारात्मक परिवर्तन होगा। ट्रम्प के फैसलों से दुनिया की राजनीति और स्थितियों में भी यकीनी तौर पर बदलाव आएगा। लेकिन कुछ आशंकाएं भी हैं। और जहां तक भारत का सवाल है तो वहां भी आशंकाएं हैं... पर कुछ उम्मीदें हैं। चिताएं नये राष्ट्रपति की नीतियों से जुड़ी हैं और उम्मीदें उनके भारत के साथ मधुर संबंधों से हैं। ट्रम्प के भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से प्रगाढ़ संबंध हैं। वे मोदी के प्रशंसक भी हैं। चुनाव से कुछ पहले भी वे यह कह चुके हैं। लेकिन 'अमेरिका को दोबारा महान बनाने' का वादा करने वाली जिस सियासी कश्ती पर सवार होकर वे दोबारा सत्ता में लौटे हैं उसके लिए उन्हे कुछ कड़े फैसले लेने होगे। तभी सिद्ध होगा कि वे अपने वायदे के मुताबिक 'अमेरिका फर्स्ट' वाली राह पर चल पड़े हैं। बस, यहीं से भारतीयों की चिंताएं शुरू होती हैं।
दरअसल, राष्ट्रपति ट्रम्प के साथ ही अमेरिकावासियों को भी लगता है कि दूसरे मुल्कों से आने वाले लोग उनके जीवन से जुड़े कई दुखों का कारण हैं। दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश के लोग भी गरीबी, नौकरी के संकट, जीवन-यापन से जुड़े बढ़ते खर्च और संसाधनों के बंटवारे या कमी के लिए 'बाहरी' लोगों को जिम्मेदार मानते हैं। उनको लगता है कि अगर देश में प्रवासियों की संख्या इतनी न बढ़ती या एक हद तक रहती तो जीवन में दुश्वारियां कम होतीं। नामित राष्ट्रपति ट्रम्प तो प्रवासियों को लेकर कई 'जहरीली' बातें सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं। ऐसे में लगता है कि उनके व्हाइट हाउस पहुंचते ही सबसे पहला चाबुक 'बाहरी' जमात के सपनों पर पड़ने वाला है। अमेरिका के आम लोगों को लगता है कि उनके सपने इन लोगों के कारण अपने ही देश में टूट रहे हैं। इसीलिए अमेरिका में आने, रहने, काम करने और बसने की चाहत रखने वाले भारत के लोग कई आशंकाओं से घिरे हुए हैं। अमेरिका में भारतवंशी सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय है। इस समुदाय का लगातार विस्तार हो रहा है। लेकिन उनके प्रतिकूल नीतियां न केवल नए सपनों को तोड़ सकती हैं बल्कि जो लोग यहां रह रहे हैं और स्थायी वास की हसरत संजोये हैं वे भी अनिश्चितता और उम्मीदों में तैर रहे हैं। यह सब स्वाभाविक है।
यह सही है कि डोनाल्ड ट्रम्प के प्रधानमंत्री मोदी से मधुर ताल्लुकात हैं लेकिन अच्छे संबंध और 'अमेरिका फर्स्ट' के बीच संतुलन कायम करना आसान नहीं है। फिर दूसरी पारी में ट्रम्प के सामने कई चुनौतियां हैं। इस बार देश के अंदर से लेकर बाहर तक यानी दुनिया की तस्वीर बदली हुई है। इजराइल-फिलिस्तीन से लेकर रूस-यूक्रेन में जंग जारी है। घरेलू मोर्चे पर महंगाई कम करने, रोजगार सुनिश्चित करने और पैदा करने की कठिन राह है और साथ ही उनके अपने कोर्ट-कचहरी के पचड़े अलग हैं। ऐसे में भारतीयों की चिंताओं पर वे कितना ध्यान दे पाएंगे, उनको कितना खुश कर पाएंगे यह सब भी कसौटी पर है। 5 नवंबर से पहले सब कुछ वादा था लेकिन अब उन वादों को जमीन पर उतारने का वक्त शुरू हो चुका है।
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