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भारत-चीन के सस्ते चावल के खिलाफ सीनेट में विधेयक पेश करेंगे रिपब्लिकन सांसद

रिपब्लिकन सांसदों की ओर से पेश इस विधेयक का मकसद अमेरिकी चावल किसानों को बचाना और वैश्विक बाजार में समान प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करना है। विधेयक में एक टास्क फोर्स बनाने का प्रस्ताव है जो इन देशों द्वारा दी जा रही सब्सिडी पर नजर रखेगी और उचित कार्रवाई करेगी।

प्रतीकात्मक तस्वीर / Pexels

रिपब्लिकन सांसदों के एक ग्रुप ने शुक्रवार को ऐलान किया कि वे भारत और चीन जैसे देशों से सस्ते चावल के डंपिंग के खिलाफ सीनेट में एक विधेयक पेश करेंगे। इसका नाम है कि प्रायोरिटाइजिंग ऑफेंसिव एग्रीकल्चरल डिस्प्यूट्स एंड एनफोर्समेंट एक्ट। इसमें अमेरिकी ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव (USTR) की अगुवाई में एक जॉइंट टास्क फोर्स बनाई जाएगी जो खेती-बाड़ी के व्यापार पर नजर रखेगी। मीडिया रिलीज के मुताबिक, ये टास्क फोर्स भारत और चीन की तरफ से मिलने वाली सब्सिडीज (सरकारी मदद) पर पहले से ही नजर रखेगी, न कि सब्सिडी मिलने के बाद एक्शन लेने का इंतजार करेगी। 

सीनेटर्स बिल कैसिडी, सिंडी हाइड-स्मिथ, जॉन बूजमैन, जोनी अर्न्स्ट और टॉमी टुबरविल की ओर से पेश किए गए इस बिल में टास्क फोर्स को कांग्रेस को रिपोर्ट देने का काम दिया गया है। ये रिपोर्ट उन गलत सब्सिडीज (सरकारी मदद) के बारे में होगी जिनका पता टीम को चलेगा। बिल में कहा गया है कि भारत मानता है कि उसके सरकारी दामों पर खरीद के कार्यक्रम (price support programs) वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन (WTO) के नियमों के खिलाफ हैं। लेकिन इन कार्यक्रमों में सुधार करने की बजाय, भारत बार-बार इन पर किसी भी विवाद से छूट (exemption) मांग रहा है। 

इसके अलावा, बिल में कहा गया है कि जब तक उसे इन कार्यक्रमों से विवादों में छूट (permanent exemption from disputes) नहीं मिल जाती, भारत वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन में किसी भी दूसरे अहम कृषि व्यापार मुद्दे पर चर्चा होने से रोकने की कोशिश करता रहा है। बिल में आरोप लगाया गया है कि भारत ने बार-बार अपने न्यूनतम समर्थन मूल्य (minimum price supports) बढ़ाए हैं, जिसका कई कच्चे माल के बाजारों पर बुरा असर पड़ा है। सबसे बड़ी बात यह है कि इससे वैश्विक चावल व्यापार में भारत का दबदबा बढ़ गया है और 2020-21 के मार्केटिंग ईयर से वह वैश्विक बाजार में 40 प्रतिशत हिस्सेदारी रखता है। 

बिल में यह भी कहा गया है कि भारत दालों का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है। इसके अलावा गेहूं, मूंगफली, कपास का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। सीनेटर कैसिडी ने कहा, 'लुइसियाना के लोग अपने ही राज्य में उगाया हुआ चावल खाना चाहते हैं, दुनिया के दूसरे कोने से नहीं। चावल उद्योग लुइसियाना की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। हमें अपने चावल किसानों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने होंगे।'

बूझमैन ने कहा, 'भारत द्वारा अत्यधिक सब्सिडी देने की वजह से अमेरिकी चावल और गेहूं किसानों को लगातार निशाना बनाया जा रहा है। यह विधेयक हमें अपने व्यापारिक भागीदारों द्वारा किए जा रहे अनुचित व्यवहार और बाजार में हेराफेरी से निपटने के लिए आवश्यक उपकरण प्रदान करेगा ताकि समान अवसर सुनिश्चित हो और वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी बढ़त बनी रहे।'

ट्यूबरविल ने कहा, 'अमेरिका का कृषि उद्योग दुनिया में किसी से भी प्रतिस्पर्धा कर सकता है, जब तक कि नियम निष्पक्ष हों। लेकिन अभी, हमारे किसान, पशुपालक और मछुआरे विदेशी देशों द्वारा अपने व्यापारिक दायित्वों का उल्लंघन करने के कारण पीड़ित हैं। हमें अपने घरेलू कृषि उद्योग को मजबूत करने के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने होंगे।'

बता दें कि इस महीने की शुरुआत में दो प्रभावशाली अमेरिकी सांसदों ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से भारत, थाईलैंड, वियतनाम, चीन और पाकिस्तान जैसे पांच देशों से चावल के आयात पर 100 प्रतिशत तक का टैरिफ लगाने का आग्रह किया था। इस महीने की शुरुआत में एक कांग्रेस की सुनवाई के दौरान USA Rice के निदेशक मंडल की सदस्य जेनिफर जेम्स ने सांसदों को बताया कि भारत अपने चावल उत्पादकों को 90 प्रतिशत से अधिक सब्सिडी देता है, जिसके परिणामस्वरूप वह विश्व बाजार में कृत्रिम रूप से कम कीमतों पर चावल उड़ेल रहा है। 

 

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