मशहूर वायलिन वादक डॉ. एल. सुब्रमण्यम और गायिका कविता कृष्णमूर्ति अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर के टाउन हॉल में शनिवार, 20 जुलाई को शाम 8:00 बजे 'बॉलीवुड एंड बियॉन्ड' नामक कार्यक्रम में मुख्य कलाकार होंगे। यह कार्यक्रम टाउन हॉल और इंडो-अमेरिकन आर्ट्स काउंसिल (IAAC) द्वारा पेश किया जा रहा है।
भारतीय और पश्चिमी वाद्ययंत्रों से युक्त सात सदस्यीय बैंड 'बॉलीवुड एंड बियॉन्ड' में कविता कृष्णमूर्ति और डॉ. सुब्रमण्यम एक ऐसा कार्यक्रम पेश करेंगे। इनमें विभिन्न प्रकार और शैलियों का संगीत शामिल होगा। इनमें कविता के बॉलीवुड हिट, डॉ. सुब्रमण्यम की भारतीय रागों पर आधारित मूल रचनाएं और फ्यूजन-आधारित युगल गीत शामिल हैं। कार्यक्रम में तबला वादक तन्मय बोस भी शामिल हैं। 'बॉलीवुड एंड बियॉन्ड' भारतीय संगीत को एक्सप्लोर करने का एक दुर्लभ मौका होगा। जिसमें शास्त्रीय परंपरा से लेकर फिल्म संगीत और वैश्विक फ्यूजन तक यह सब दो सबसे बड़े सितारों के साथ होगा।
कविता कृष्णमूर्ति एक भावपूर्ण गायिका हैं। उनकी आवाज बहुत शानदार है। वह बहुत समय से भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में प्लेबैक सिंगर हैं। फिल्मों में जो गाने ऑन-स्क्रीन कलाकार लिप-सिंक करते हैं, वो उन गानों को अपनी आवाज से गाती हैं। ये बहुत मुश्किल काम है, क्योंकि गायिका को फिल्म की पूरी म्यूजिकल कहानी को आगे बढ़ाने वाले हर एक्शन और भावना का ध्यान रखना होता है। उनके पहले बड़े बॉलीवुड हिट 'तुमसे मिलकर ना जाने क्यों' (प्यार झुकता नहीं, 1985) के बाद वो मिस्टर इंडिया (1986) फिल्म के दो बहुत मशहूर गानों के साथ और भी लोकप्रिय हो गई। कई सारी हिट फिल्मों में आवाज देने के बाद 1990 के दशक तक कविता एक बड़ी स्टार बन गईं।
लेकिन प्लेबैक सिंगिंग में कामयाबी उनकी राह नहीं रोक पाई। कविता ने ऑर्केस्ट्रा के साथ भी परफॉर्म किया है। उन्होंने गजलें, भजन और हिंदी पॉप भी गाए हैं। जैज, पॉप और क्लासिकल वेस्टर्न कलाकारों के साथ काम किया है। दुनिया भर के संगीत के फ्यूजन को भी अपनाया है, खास तौर पर अपने पति डॉ. एल. सुब्रमण्यम के साथ।
डॉ. एल. सुब्रमण्यम का जन्म एक संगीत परिवार में हुआ था (उनके माता-पिता दोनों ही कुशल संगीतकार थे)। वो बचपन से ही प्रतिभाशाली थे। उन्होंने अपने पिता (जो एक सम्मानित कर्नाटक वायलिन वादक थे) के नक्शेकदम पर चलते हुए संगीत सीखा। उन्होंने अपने पिता से संगीत की शिक्षा ली और छह साल की उम्र में अपना पहला कॉन्सर्ट दिया था।
उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि 'मेरी मां वीणा बजाती थीं। इसके साथ वो एक शानदार गायिका भी थीं। मेरे पिता का सपना था कि वो वायलिन को आगे लाएं और उसे एक एकल वाद्य यंत्र बनाएं। उस समय तक कर्नाटक दक्षिण भारतीय संगीत में वायलिन मुख्य रूप से संगत के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। मैं उनके जैसा बजाना चाहता था, क्योंकि वो मेरे गुरु, शिक्षक और पिता थे।' संगीत को पूरी तरह से अपनाने के साथ ही सुब्रमण्यम ने डॉक्टर की पढ़ाई पूरी की। उनके पास CalArts से वेस्टर्न क्लासिकल म्यूजिक में मास्टर डिग्री और जैन यूनिवर्सिटी, बैंगलोर से 'राग हार्मनी' पर थीसिस के लिए पीएचडी भी है।
अपने पिता के सपने को पूरा करते हुए डॉ. सुब्रमण्यम ने अपने संगीत करियर की शुरुआत से ही संगीत की सीमाओं को पार किया। वह दक्षिण भारत की कर्नाटक संगीत परंपरा को पश्चिमी शास्त्रीय संगीत में लाए। खासकर दुनिया भर के ऑर्केस्ट्रा के लिए एकल कलाकार और संगीतकार के रूप में। इनमें न्यूयॉर्क फिलहारमोनिक ऑर्केस्ट्रा, ह्यूस्टन सिम्फनी और बर्लिन स्टेट ओपेरा शामिल हैं।
डॉ. सुब्रमण्यम का कहना है कि 'यहां विचार भारतीय संगीत को ऑर्केस्ट्रा द्वारा बजाने का नहीं है। लेकिन कुछ ऐसा बनाने के लिए जहां पश्चिमी और भारतीय संगीतकारों को ऐसा महसूस हो कि वे अपना संगीत बजा रहे हैं। इस बारे में हम कर्नाटक संगीत के तत्वों को पश्चिमी शास्त्रीय संगीत के कुछ हिस्सों के साथ मिलाते हैं, जिससे कुछ पूरी तरह से मूल बनाया जा सके।'
डॉ. सुब्रमण्यम ने सलाम बॉम्बे, मिसिसिपी मसाला, लिटिल बुद्धा और बैले के लिए संगीत लिखा है। उन्होंने पश्चिमी जैज और पॉप संगीतकारों (जिनमें दिवंगत बीटल जॉर्ज हैरिसन, जैज पियानोवादक हर्बी हैंकॉक और गायक-गीतकार स्टीवी वंडर शामिल हैं) के साथ सहयोग किया। उत्तरी भारतीय संगीतकारों के साथ जुगलबंदी और वैश्विक संगीत फ्यूजन पर भी काम किया है।
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