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बोरचार्जर: सतत जलापूर्ति से किसानों को सशक्त बनाने का साधन

पिछले साल जुलाई में प्रयोग के तौर पर कुरनूल जिले के गांवों और आंध्र प्रदेश के नंदयाल जिले के बेथमचेरला तथा धोन तालुका में 25 बोर चार्जर यूनिट लगाई गई थीं। इनका काफी अच्छा असर देखने को मिला है।

व्हील्स ग्लोबल फाउंडेशन ने आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले और आसपास के कई गांवों में बोर चार्जर लगाए हैं। / Image provided

भारत के गांवों के बहुत से किसान खासकर आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और मध्य भारत के राज्यों में पेयजल और कृषि दोनों के लिए बोरवेल पर काफी निर्भर रहते हैं। ये बोरवेल तेजी से घट रहे जलस्तर की वजह से खतरे में हैं। इसकी प्रमुख वजह बारिश की घटती दर, ग्लोबल वार्मिंग के कारण चरम व अप्रत्याशित मौसम और कृषि उत्पादों की बढ़ती मांग है।

इस चुनौती का समाधान करने के लिए व्हील्स ग्लोबल फाउंडेशन (WGF) अपने पार्टनर और उर्घ्वम एनवायरनमेंटल टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड के इनोवेशन बोरचार्जर (BoreCharger) को सपोर्ट कर रहा है। इसके जरिए बोरवेल को महज एक तिहाई खर्च और एक तिहाई समय में रिचार्ज किया जा सकता है। इसके लिए व्हील्स फाउंडेशन ने उर्घ्वम और ग्रामीण विकास केंद्रम (जीवीके) के साथ साझेदारी की है जिसने अपने लोकल पार्टनर रूरल स्टडीज एंड डेवलपमेंट सोसाइटी (RSDS) के सहयोग से आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के गांवों में बोर चार्जर लगाना शुरू किया है। इस परियोजना का उद्देश्य 5 करोड़ से अधिक जरूरतमंद किसानों को उचित व स्वसंचालित समाधान प्रदान करना है। 

पिछले साल जुलाई में प्रयोग के तौर पर कुरनूल जिले के गांवों और आंध्र प्रदेश के नंदयाल जिले के बेथमचेरला व धोन तालुका में 25 बोर चार्जर यूनिट लगाई गई थीं। व्हील्स और उर्ध्वम का इम्पैक्ट असेसमेंट बताता है कि इस पायलट प्रोजेक्ट की वजह से जल स्तर में 30 फीसदी से लेकर 400 फीसदी तक प्रभावशाली वृद्धि हुई।

इस प्रोजेक्ट में जल संग्रह और भंडारण क्षमताओं को अधिकतम स्तर तक पहुंचाने के लिए उर्ध्वम की पेटेंटेड तकनीक BoreCharger का प्रयोग किया जा रहा है। यह बोरवेल रिचार्ज की एक बेहतरीन तकनीक है। यह स्मार्ट तरीके से पृथ्वी के सबसे ऊपरी हिस्से से बारिश के पानी को इकट्ठा करता है और कृत्रिम रूप से इसे गहरे जल स्रोतों तक ले जाता है जिससे बोरवेल को पर्याप्त पानी मिलने लगता है। बोरवेल को पानी मिलने से थोड़े समय के अंदर ही उससे पानी की आपूर्ति, निकासी और गुणवत्ता काफी बढ़ जाती है। 

लागत और समय बचाने वाली यह तकनीक अपेक्षित नतीजों को प्राप्त करने के लिए कई तकनीकों को मिलाकर इस्तेमाल करती है, जैसे कि फिट की पुष्टि के लिए इलाके की सैटलाइट मैपिंग की जाती है, अंडरवॉटर डिजिटल कैमरे से बोरवेल एंजियोग्राफी की जाती है, हाइड्रो जियोलॉजिकल रूप से उपयुक्त गहराई की पहचान के लिए खासतौर से कस्टमाइज सॉफ्टवेयर का प्रयोग किया जाता है, बोरवेल के केसिंग पाइप में छिद्र बनाने के लिए रोबोटिक टूल का इस्तेमाल किया जाता है।

किसानों पर इस प्रोजेक्ट का बहुआयामी प्रभाव देखा गया है। इसने किसानों के पास सिंचाई लायक जल की उपलब्धता, फूड प्रोडक्शन, खेती की इनकम के साथ ही जीवन की गुणवत्ता और उनकी आजीविका में समग्र सुधार किया है। चूंकि इन उपायों को तेजी से अपनाया जा रहा है, ऐसे में इसके संभावित फायदों में किसानों की आत्महत्याओं और शहरों में पलायन की दर में भी गिरावट की उम्मीद है। यह ग्रामीण इलाकों में आजीविका में वृद्धि का अच्छा संकेत है।

व्हील्स इस तरह के कार्यक्रमों के जरिए भारत को 2047 तक विकसित अर्थव्यवस्था बनने के मिशन को हासिल करने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। उसका उद्देश्य 2030 तक भारत की 20% ग्रामीण-शहरी आबादी यानी 18 करोड़ से अधिक लोगों तक तकनीकी परिवर्तन का लाभ पहुंचाना है। इस बारे में अधिक जानकारी www.wheelsglobal.org पर प्राप्त की जा सकती है।
 

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