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मुश्किलों से हार नहीं मानी,  हार्वर्ड की भारतीय मूल की छात्रा मर्लिन दूसरों की करना चाहती हैं मदद

कम संसाधनों वाले परिवार से निकलकर हार्वर्ड पहुंची मर्लिन अपनी कामयाबी का श्रेय मां-पिता की कुर्बानी, कड़ी मेहनत और हार्वर्ड के सहयोग को देती हैं। वो मेडिकल क्षेत्र में काम करके अपने समुदाय के लोगों की सेवा करना चाहती हैं।

मर्लिन डीसूजा / The Harvard Gazette

अमेरिका के एरिजोना राज्य के कासा ग्रांडे शहर की रहने वाली मर्लिन डीसूजा हमेशा से जानती थीं कि पढ़ाई-लिखाई बहुत फायदेमंद है। भारतीय माता-पिता की बेटी होने के नाते, वो बचपन से ही उनकी कुर्बानियों की कहानियां सुनती आई थीं। उनके पिता ने काम करने के लिए स्कूल जल्दी छोड़ दिया था। उनकी मां का हायर एजुकेशन का सपना खेती के काम की वजह से अधूरा रह गया था। लेकिन जब मर्लिन ने हार्वर्ड जाने का मन बनाया, तो उनके माता-पिता ने उनका पूरा साथ दिया।

आज वो हार्वर्ड में सीनियर हैं और ह्यूमन डेवलपमेंटल एंड रीजेनरेटिव बायोलॉजी और ग्लोबल हेल्थ एंड हेल्थ पॉलिसी में पढ़ाई कर रही हैं। कैम्ब्रिज तक का उनका सफर सिर्फ पढ़ाई-लिखाई का नहीं, बल्कि आर्थिक मुश्किलों से भी भरा था। हार्वर्ड की पूरी फाइनेंशियल एड की वजह से वो अपने परिवार पर बोझ डाले बिना पढ़ाई कर पाईं। 

हार्वर्ड गजट के हवाले से मर्लिन ने कहा, 'फीस और मिली हुई स्कॉलरशिप्स बहुत काम आई हैं। मुझे अपने मां-पिता पर बोझ डालने की चिंता नहीं रही। ये मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी। पढ़ाई करते हुए और इतने मुश्किल सब्जेक्ट्स के साथ ये सपोर्ट मिलना बहुत राहत की बात है।'

मर्लिन की मेडिसिन में दिलचस्पी हाई स्कूल में शुरू हुई, जब उसने एक कैरियर टेक्निकल एजुकेशन बायोटेक्नोलॉजी क्लास में आर्टिफिशियल वोम्ब्स के बारे में जाना। इसी से उसे ऐसे कॉलेज ढूंढने की प्रेरणा मिली जहां खास बायोमेडिकल प्रोग्राम्स हों। हार्वर्ड का ह्यूमन डेवलपमेंटल एंड रीजेनरेटिव बायोलॉजी डिपार्टमेंट तुरंत उसकी नजरों में आया।

हार्वर्ड गजेट को दिए इंटरव्यू में मर्लिन बताया, 'वो स्टेम सेल्स पर काम कर रहे थे और मेडिसिन के रीजेनरेटिव पहलू पर फोकस करने वाले प्रोजेक्ट्स कर रहे थे। एक डॉक्टर बनने और टेक्नोलॉजी और डेवलपमेंट में हिस्सा लेने की चाह रखने वाली के लिए ये बहुत एक्साइटिंग था।'

हार्वर्ड में, मर्लिन ने खुद को प्रैक्टिकल रिसर्च में पूरी तरह झोंक दिया। उसने बोस्टन पब्लिक हेल्थ कमीशन के साथ मिलकर मेंटल हेल्थ पर स्टडी की और अपनी रिसर्चिंग को मैसाचुसेट्स एसोसिएशन फॉर मेंटल हेल्थ में प्रेजेंट किया। 

उनकी कमजोर तबकों की मदद करने की चाह लैब से बाहर भी दिखी। अपने माता-पिता के सामने आई मुश्किलों को देखते हुए वो भारत गईं और वहां कम संसाधनों वाले स्कूलों में बच्चों को पढ़ाया। हार्वर्ड गजेट को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा, 'मेडिकल स्कूल जाने की वजह यही है कि मैं उन कम्युनिटीज के लोगों की मदद करना चाहती हूं जहां से मैं आई हूं। मेरे मां-पिता को अच्छे मेडिकल रिसोर्सेज नहीं मिले थे।'

पढ़ाई के अलावा, मर्लिन ने दूसरों की मदद करना भी अपनी जिम्मेदारी समझा है। वो एक पीयर एडवाइसिंग फेलो हैं और नए स्टूडेंट्स को कॉलेज लाइफ में एडजस्ट करने में मदद करती हैं। वो हार्वर्ड स्क्वायर होमलेस शेल्टर में भी वालंटियर करती हैं और बोस्टन चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल में भी समय बिताती हैं। हार्वर्ड गजेट को उन्होंने बताया, 'हमें डायलिसिस करवा रहे बच्चों की मदद करने और उनके साथ खेलने का मौका मिलता है। ये मेरे हफ्ते का सबसे अच्छा हिस्सा होता है।'

हार्वर्ड की आर्थिक मदद ने मेडिकल स्कूल का रास्ता आसान बना दिया। जूनियर ईयर में मिली लॉन्च ग्रांट से उन्होंने मेडिकल कॉलेज एडमिशन टेस्ट (MCAT) की फीस और अप्लाई करने की फीस चुकाईं। उन्हें अन्य फंड्स का भी फायदा मिला जिससे सर्दियों के कोट जैसे खर्चे पूरे हुए।

उन्होंने कहा, 'लोग ये नहीं सोचते कि कितनों को फीस में मदद की जरूरत होती है। फीस की मदद का असर बहुत दूर तक जाता है। मैं ये पढ़ाई कर पा रही हूं और एक ऐसे प्रोफेशन में डिग्री ले पा रही हूं जहां मैं दूसरों की मदद कर सकती हूं। ये एक पूरा चक्र है।'

ग्रेजुएशन के बाद, मर्लिन मेडिकल स्कूल शुरू करने से पहले एक साल का गैप लेने की योजना बना रही हैं ताकि वो पढ़ा सकें या रिसर्च कर सकें। उनका कहना है कि अगर उन पर कर्ज का बोझ होता तो ये मुमकिन नहीं होता।

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