अमेरिकी कांग्रेस के सदस्य एवं टॉम लैंटोस मानवाधिकार आयोग के सह-अध्यक्ष जॉर्ज मैकगवर्न ने कहा है कि अगर भारत ने अपने यहां होने वाली मानवाधिकार हनन की घटनाओं पर ध्यान नहीं दिया तो विभिन्न समाजों में पनप रहा तनाव खतरनाक संघर्षों में बदल सकता है और देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए खतरा बन सकता है।
मणिपुर में हाल की झड़पों का उदाहरण देते हुए जॉर्ज ने कहा कि अमेरिकी संसद को भारत सरकार से अनुरोध करना चाहिए कि वह आतंकवाद निरोधक कानून समेत अन्य ऐसी नीतियों और कानूनों पर पुनर्विचार करे जो मानवाधिकार संधियों के तहत मिले दायित्वों के अनुरूप नहीं हैं। जॉर्ज की इन भावनाओं का समर्थन 21 मार्च को आयोग की कार्यवाही में हिस्सा लेने वाले उनके सहयोगियों ने भी किया है।
जॉर्ज ने कहा कि 19 अप्रैल से भारत में आम चुनाव शुरू होने जा रहे हैं, जो अगले पांच वर्षों के लिए देश की राजनीतिक दशा-दिशा निर्धारित करेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरे कार्यकाल के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। मैं उन लोगों में से एक हूं जो सोचते हैं कि एक दोस्त ही दूसरे दोस्त को सच्ची बात बोल सकता है, भले ही वह कठोर क्यों न हो। भारत हमारा मित्र देश है और अमेरिका भी चाहता है कि वह समृद्ध बने।
एक अन्य कांग्रेस सदस्य क्रिस स्मिथ ने कहा कि अमेरिका चुप रहकर अन्याय को बढ़ावा देने का काम कर रहा है। अगर भारत को मानवाधिकार के मामले में चिंताजनक देश कहा जाए, तो इसमें कुछ गलत नहीं होगा। उन्होंने कहा कि जब हम सीपीसी (विशेष चिंता वाले देशों) का नाम लेते हैं और भारत जैसे देश को उससे बाहर रख देते हैं तो हम सूची में शामिल अन्य देशों को क्या जवाब देंगे? वे हमें पाखंडी समझते हैं और यह अच्छी बात नहीं है।
ह्यूमन राइट्स वॉच के एशिया एडवोकेसी मामलों के निदेशक जॉन सिफ्टन ने कहा कि राष्ट्रपति जो बाइडेन को इन चिंताओं के बारे में सीधे प्रधानमंत्री मोदी से बात करनी चाहिए क्योंकि उनके पास सरकार और पार्टी को जहरीली बयानबाजी और अपमानजनक कानूनों व नीतियों के बारे में निर्देश देने के अधिकार हैं।
एक अन्य पैनलिस्ट एमनेस्टी इंटरनेशनल यूएसए की कैरोलिन नैश ने आरोपों में कहा कि भारत सरकार ने कनाडा में दमनकारी गतिविधियों को अंजाम दिया है, अमेरिका में भी उसने ऐसे प्रयास किए हैं। अगर जरूरत पड़े तो मैं और मेरे सह-पैनलिस्ट नफरत को घृणा को हथियार बनाने और असहिष्णुता बढ़ाने संबंधी सरकार के प्रयासों के दस्तावेजी सबूत दे सकते हैं।
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
Comments
Start the conversation
Become a member of New India Abroad to start commenting.
Sign Up Now
Already have an account? Login