ब्रिटेन में भारतीय मूल के प्रतिष्ठित डॉक्टर टोनी ढिल्लों आंत के कैंसर मरीजों के लिए आशा का किरण बनकर उभरे हैं। डॉक्टर ढिल्लों ने आंत के कैंसर की एक नई वैक्सीन पर काम करना शुरू किया है। इस वैक्सीन के विकास से आंत के कैंसर के इलाज में एक नया अध्याय खुल सकता है। उनका यह प्रयास न सिर्फ इस बीमारी के इलाज को नई दिशा दे सकता है, बल्कि भविष्य में इस बीमारी के प्रति एक नई सोच भी विकसित कर सकता है।
53 वर्षीय डॉ. ढिल्लों के दादा पंजाब के जालंधर जिले के एक गांव से 1950 के दशक में ब्रिटेन गए थे। उस वक्त उन्होंने एक ब्राइलक्रीम फैक्ट्री में काम किया था। उन्होंने 5 वर्षों तक ऑस्ट्रेलिया के प्रोफेसर टिम प्राइस के साथ मिलकर इस वैक्सीन पर काम किया है। वैक्सीन का ट्रायल दुनियाभर के सिर्फ 44 मरीजों पर होगा।
रॉयल सरे एनएचएस फाउंडेशन ट्रस्ट के कंसल्टेंट मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. टोनी ढिल्लों ने ट्रायल का आइडिया दिया था। डॉक्टर ढिल्लों दुनिया भर में शुरुआती आंत के कैंसर के इलाज के लिए एक वैक्सीन के 'ग्राउंड-ब्रेकिंग' ट्रायल के मुख्य अन्वेषक हैं।
यह ट्रायल ऑस्ट्रेलिया के एडिलेड में रॉयल सरे और साउथेम्पटन विश्वविद्यालय में कैंसर रिसर्च क्लिनिकल ट्रायल यूनिट द्वारा चलाया जाएगा। इस ट्रायल को लेकर डॉक्टर ढिल्लों का कहना है कि यह किसी भी आंत के कैंसर की पहली वैक्सीन है। हमें उम्मीद है कि यह सफल होगी। इससे बहुत सारे रोगियों के अंदर से यह कैंसर पूरी तरह से खत्म हो जाएगा।
उन्होंने कहा कि वैक्सीन शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करेगी। यह जिंदगी को बदलने वाली होगी, क्योंकि इसके बाद रोगियों को सर्जरी कराने की जरूरत नही होगी। उन्होंने कहा कि ऑस्ट्रेलिया में छह और ब्रिटेन में चार स्थानों पर रोगियों पर यह ट्रायल किया जाएगा। अगर ट्रायल सफल होता है तो वैक्सीन को इस्तेमाल के लिए लाइसेंस दिया जाएगा।
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