भारत में शुरू की गई अनोखी कैप-एंड-ट्रेड योजना से उद्योगों के प्रदूषण को प्रभावी ढंग से घटाने में सफलता हासिल हुई है। इसके साथ ही कारखानों की अनुपालन लागत भी घटी है।
ये जानकारियां येल यूनिवर्सिटी की रोहिणी पांडे और निकोलस रयान के नेतृत्व में की गई एक स्टडी से सामने आई है। ये स्टडी शिकागो यूनिवर्सिटी और वारविक यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर की गई थी।
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कैप-एंड-ट्रेड पायलट प्रोग्राम गुजरात के सूरत शहर में शुरू किया गया था। यह दुनिया की पहली ऐसी ट्रेडिंग स्कीम है जो पार्टिकुलेट मैटर जैसे खतरनाक प्रदूषणकारी तत्वों पर आधारित है जिससे सांस और हृदय से जुड़ी गंभीर बीमारियां होती हैं।
स्टडी के अनुसार, 18 महीनों तक 317 कोयला जलाने वाले इंडस्ट्रियल प्लांटों को खास पॉल्यूशन मॉनिटरिंग डिवाइस लगाने को कहा गया। इनमें से आधे प्लांट्स को एक ट्रेडिंग मार्केट में शामिल किया गया जहां वे अपने एमिशन परमिट आपस में खरीद-बेच सकते थे ताकि कुल प्रदूषण एक तय सीमा से ऊपर न जाए।
इसके नतीजे चौंकाने वाले रहे। ट्रेडिंग स्कीम में शामिल प्लांट्स ने पारंपरिक तरीकों से रेग्युलेट किए गए प्लांट्स की तुलना में 20-30 प्रतिशत कम प्रदूषण किया। सबसे बड़ी बात ये कि उनकी औसत अनुपालन लागत 11 प्रतिशत तक कम रही।
येल यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर रोहिणी पांडे ने कहा कि ये स्कीम सिर्फ प्रदूषण घटाने तक सीमित नहीं है बल्कि ये भी दिखाती है कि सीमित संसाधनों वाले राज्यों में भी ऐसे मार्केट प्रभावशाली हो सकते हैं।
निकोलस रयान ने बताया कि ये रिसर्च गुजरात पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के साथ एक दशक से जारी सहयोग का हिस्सा है। स्टडी में पाया गया कि इस स्कीम के फायदे उसकी लागत से 25 गुना अधिक हैं। प्रदूषण घटाने की लागत कम है जबकि उससे होने वाली बीमारियों का इलाज बेहद महंगा है।
पायलट प्रोजेक्ट की सफलता के बाद गुजरात सरकार ने इसे अहमदाबाद समेत अन्य इलाकों में भी लागू किया है। अब शोधकर्ता महाराष्ट्र में सल्फर डाइऑक्साइड के लिए ऐसा ही मार्केट बनाने में मदद कर रहे हैं। केंद्र सरकार के साथ मिलकर राष्ट्रीय स्तर पर कार्बन मार्केट बनाने की योजना पर भी काम चल रहा है।
शोधकर्ता माइकल ग्रीनस्टोन ने कहा कि हमारी स्टडी ने साबित किया है कि प्रदूषण घटाने के लिए बड़ी लागत की जरूरत नहीं होती। भारत इस क्षेत्र में अन्य विकासशील देशों के लिए एक मिसाल बन सकता है।
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