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छावा : स्वराज्य के लिए लड़ने वाला एक भूला-बिसरा नायक

यह फिल्म ₹700 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुकी है और अब तक की नौवीं सबसे अधिक कमाई करने वाली हिंदी फिल्म बन गई है।

छावा फिल्म का पोस्टर / bingemoves

'छावा' छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन पर आधारित फिल्म, भारतीय बॉक्स ऑफिस पर धूम मचा रही है। यह फिल्म ₹700 करोड़ (लगभग $8 मिलियन) का आंकड़ा पार कर चुकी है और अब तक की नौवीं सबसे अधिक कमाई करने वाली हिंदी फिल्म बन गई है।

फिल्म की कहानी छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र और उत्तराधिकारी संभाजी महाराज के संघर्ष और बलिदान को दर्शाती है। शिवाजी महाराज ने 1674 में मराठा साम्राज्य की स्थापना की और भारत को पराधीनता से मुक्त करने की राह प्रशस्त की। यह फिल्म दिखाती है कि कैसे उनका बेटा, जिसे ‘छावा’ (शेर का बच्चा) कहा जाता है, स्वतंत्रता की लड़ाई को जीवंत बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

शौर्य और बलिदान की गाथा
फिल्म की शुरुआत 1681 में संभाजी महाराज के नेतृत्व में मुगल गढ़ बुरहानपुर पर हुए अचानक हमले से होती है, जहां मराठा सेना ने मुगलों को चौंका दिया और उनकी तिजोरी लूटकर रायगढ़ वापस लौट आई। फिल्म में कई अन्य घटनाओं को भी दिखाया गया है, जिनमें एक शेर के साथ उनका संघर्ष विशेष रूप से प्रभावशाली है, जिसे बेहतरीन CGI इफेक्ट्स के साथ प्रस्तुत किया गया है।

हालांकि, मराठा शिविर के कुछ गद्दारों की वजह से अंततः संभाजी महाराज को मुगलों ने संगमेश्वर में पकड़ लिया, जहां उनके साथ उनके मंत्री कवि कलश भी थे।

संभाजी महाराज की अडिग प्रतिज्ञा
फिल्म का सबसे मार्मिक हिस्सा अंत में आता है, जब मुगल सम्राट औरंगज़ेब के आदेश पर संभाजी महाराज को भीषण यातनाएं दी जाती हैं और उन्हें इस्लाम स्वीकार करने या मौत का सामना करने का विकल्प दिया जाता है।

फिल्म में एक भावनात्मक संवाद देखने को मिलता है जब छावा गर्व से उत्तर देते हैं— "तू मराठों की तरफ आ जा, और तुझे धर्म भी नहीं बदलना पड़ेगा!" 

यह संवाद भले ही राजनीतिक संतुलन बनाए रखने के लिए गढ़ा गया हो, लेकिन यह इस महत्वपूर्ण संदेश को उजागर करता है कि "हिंदवी स्वराज्य" सभी धर्मों के लिए स्वतंत्रता का विचार था।

संभाजी महाराज की शहादत और मराठा प्रतिशोध
संभाजी महाराज की अडिग निष्ठा और बलिदान ने उन्हें अमर शहीद बना दिया। उनकी निर्दय हत्या के बाद मराठाओं ने अपने आपसी मतभेद भुलाकर एकजुटता से औरंगज़ेब की सत्ता को समाप्त करने का संकल्प लिया।

मराठाओं ने गणिमी कावा (छापामार युद्ध नीति) का कुशलतापूर्वक उपयोग किया। यह रणनीति दक्कन के ऊँचे किलों से तेज़, अचानक हमलों के ज़रिए मैदानी इलाकों में भारी मुगल सेनाओं को भारी नुकसान पहुंचाने पर केंद्रित थी।

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मराठाओं के संघर्ष से मुगलों का पतन
संभाजी महाराज की शहादत के बाद मराठाओं ने औरंगज़ेब को पूरी तरह से थका दिया। औरंगज़ेब ने अपनी अंतिम सांस से पहले अपने बेटे को पत्र में लिखा— "मैं अकेला आया था और अकेला ही जा रहा हूँ... मेरी पूरी सेना मेरी तरह हताश, परेशान और भगवान से दूर हो चुकी है।"

मराठाओं ने अपने असाधारण पराक्रम से मुगल सत्ता को पूरी तरह से जर्जर कर दिया, जिसके चलते अंततः उनका साम्राज्य खत्म हो गया।

मराठा साम्राज्य – भारत की अंतिम अखिल-भारतीय शक्ति
मराठा संघ ने मुगलों के पतन के बाद अखंड भारत में शासन किया। एक समय पर मराठा शक्ति उत्तर में अटक (अब पाकिस्तान में) से लेकर दक्षिण में तंजौर तक फैली हुई थी। हालांकि, अंततः अंग्रेजों के खिलाफ एकता की कमी और 1819 के युद्ध में हार के कारण मराठा सत्ता समाप्त हो गई और ब्रिटिश राज स्थापित हो गया।

'छावा' – वीर शहीद को एक सच्ची श्रद्धांजलि
यह फिल्म एक ऐसे महानायक को सम्मान देती है, जिन्होंने असहनीय यातनाएं सहकर भी स्वराज्य की मशाल जलाए रखी। संभाजी महाराज और मराठा संघ के दृढ़ संकल्प और बलिदान ने स्वतंत्रता के सपने को जीवित रखा, मुगल साम्राज्य को समाप्त किया और अंततः भारत को स्वतंत्रता तक पहुंचाया।

(लेखक शिकागो स्थित स्तंभकार और निवेश विशेषज्ञ हैं। यह लेख उनके व्यक्तिगत विचार हैं)

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