न्यूयॉर्क स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास में बीते दिनों गुजरात और महाराष्ट्र दिवस की धूम रही। उत्तरी अमेरिका के गुजराती संघों को भारत के महावाणिज्य दूतावास के सहयोग से गुजरात-महाराष्ट्र दिवस के प्रतिष्ठित उत्सव की मेजबानी करने का अवसर मिला। भव्य उत्सव का आयोजन 1960 में दो राज्यों के गठन का जश्न मनाने के लिए परंपरा के तहत किया गया। यह उत्सव समुदायों के बीच भाषाई विविधता के मूल्यों को बनाए रखने की प्रतिबद्धता का भी प्रतीक है।
शाम की शुरुआत एफआईए की महासचिव प्रीति पटेल के गर्मजोशी से स्वागत के साथ हुई। उन्होंने गुजरात और महाराष्ट्र के सांस्कृतिक परिदृश्य के माध्यम से एक अविस्मरणीय यात्रा के लिए मंच तैयार किया। खुद एक गौरवान्वित गुजराती होने के नाते,उन्होंने एक खूबसूरत गुजराती कविता सुनाई जिसका भाव था....गुजरात भारत की एक धड़कन है, यह एक झरने का नाम है और शांति और समृद्धि का पर्याय है। इसी तरह पल्लवी कबाडी ने मराठी में लोगों को संबोधित किया। इससे दोनों राज्यों की संस्कृतियों में तालमेल का बखूबी प्रदर्शन हुआ।
एफआईए के अध्यक्ष डॉ. अविनाश गुप्ता ने उत्साही जनों को संबोधित किया और मेहमानों तथा प्रायोजकों का परिचय दिया। खुद झारखंड से होने के नाते उन्होंने बताया कि कैसे यह कार्यक्रम अपने आप में विविधता में एकता का प्रदर्शन है। जब श्री गुप्ता ने लोगों से पूछा केम छो.... तो उधर से आवाज आई मजा मा। उन्होंने एफआईए अध्यक्ष अंकुर वैद्य को आमंत्रित किया और मिलकर न्यूयॉर्क में भारत के महावाणिज्य दूत बिनया एस प्रधान का स्वागत-सत्कार किया। प्रधान को पारंपरिक रूप से गुजरात-महाराष्ट्र क्षेत्र में पुरुषों द्वारा पहनी जाने वाली पगड़ी पहनाई गई। इस मौके पर प्रधान ने भारत और उसके प्रवासियों के परस्पर संबंधों को रेखांकित किया।
शाम का मुख्य आकर्षण मनमोहक प्रदर्शनों और विचारोत्तेजक भाषणों की श्रृंखला थी जिसने दर्शकों को मुग्ध कर दिया। निर्मिति स्कूल ऑफ डांस और डांसएक्सस्टूडियो के मनमोहक नृत्यों से लेकर कवि अंकित त्रिवेदी, डॉ. केनेथ एक्स. रॉबिंस और डॉ. मैत्री सबनीस के ज्ञानवर्धक संबोधन ने समारोह को अविस्मरणीय बना दिया।
उत्सव का आयोजन उत्तरी अमेरिका के गुजराती संघों, न्यूयॉर्क में भारत के महावाणिज्य दूतावास और फेडरेशन ऑफ इंडियन एसोसिएशन एफआईए-एनवाई-एनवाई-सीटी-एनई, गुजराती सहित उनके सम्मानित भागीदारों के प्रयासों से संभव हुआ जिसमें उत्तरी अमेरिका की साहित्यिक अकादमी (जीएलए) और अल्बानी ढोल ताशा पाठक की भी भागीदारी रही।
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