भारत ने अज़रबैजान के बाकू में आयोजित कॉप29 शिखर सम्मेलन में क्लाइमेट फाइनेंस पर उच्च स्तरीय मंत्रिस्तरीय बैठक में समान विचारधारा वाले विकासशील देशों की ओर से बयान देते हुए जलवायु परिवर्तन के प्रति विकसित देशों को उनका वादा याद दिलाया और उसका पालन करने का आह्वान किया।
बाकू में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) शिखर सम्मेलन के कॉप29 में जलवायु वित्त पर उच्च स्तरीय मंत्रिस्तरीय बैठक में समान विचारधारा वाले विकासशील देशों (एलएमडीसी) की ओर से हस्तक्षेप करते हुए भारत ने जोर देकर कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव एक के बाद एक आपदाओं के रूप में तेजी से सामने आ रहे हैं।
भारत के पर्यावरण मंत्रालय की ओर से जारी बयान के मुताबिक, कॉप29 में भारत के प्रमुख वार्ताकार और एएस (एमओईएफसीसी) नरेश पाल गंगवार ने कहा कि चरम मौसम की घटनाएं इतनी ज्यादा हो रही हैं कि इसका असर विशेष रूप से ग्लोबल साउथ के लोगों पर पड़ रहा है। ऐसे में जलवायु कार्रवाई पर महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को बढ़ाने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि हम जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अपनी लड़ाई में इस वक्त एक महत्वपूर्ण मोड़ पर हैं। हम यहां जो निर्णय लेंगे, वह हम सभी को खासकर ग्लोबल साउथ के लोगों को न केवल जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाले दुष्प्रभावों से बचने में सक्षम बनाएगा बल्कि जलवायु परिवर्तन के अनुकूल भी बनाएगा। इस लिहाज से यह सीओपी ऐतिहासिक है।
बयान में कहा गया कि विभिन्न राष्ट्रीय परिस्थितियों, सतत विकास लक्ष्यों और गरीबी उन्मूलन को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। इन सिद्धांतों को कॉप29 में नए सामूहिक लक्ष्य का आधार बनाना चाहिए।
भारत ने दोहराया कि विकसित देशों को अनुदान, रियायती कर्ज और बिना ऋण वाले समर्थन के जरिए साल 2030 तक हर वर्ष कम से कम 1.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर उपलब्ध कराने और जुटाने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए ताकि विकासशील देशों की उभरती जरूरतों और प्राथमिकताओं को पूरा किया जा सके।
जलवायु वित्त पर नए सामूहिक लक्ष्यों (एनसीक्यूजी) के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा गया कि इसे निवेश लक्ष्य में नहीं बदला जा सकता क्योंकि यह विकसित देशों से विकासशील देशों के लिए एकतरफा सहयोग है। पेरिस समझौते में स्पष्ट लिखा है कि जलवायु वित्त किसे देना और जुटाना है। जाहिर है ये विकसित देश ही हैं।
भारत ने ज़ोर देकर कहा कि किसी भी नए लक्ष्य को शामिल करना इस सम्मेलन और पेरिस समझौते के दायरे से बाहर है, इसलिए अस्वीकार्य है। बयान में पेरिस समझौते और उसके प्रावधानों पर फिर से बातचीत की किसी भी गुंजाइश को खारिज कर दिया गया है। भारत ने यह भी कहा कि विकसित देशों का मौजूदा वित्तीय और प्रौद्योगिक प्रतिबद्धताओं को लेकर प्रदर्शन निराशाजनक रहा है।
भारत ने सभी विकासशील देशों की तरफ से विकसित देशों को ध्यान दिलाया कि वे 2020 तक संयुक्त रूप से प्रति वर्ष 100 बिलियन डॉलर जुटाने के लिए प्रतिबद्ध हैं जिसकी समयसीमा 2025 तक बढ़ा दी गई है। लेकिन जुटाई गई राशि उत्साहजनक नहीं रही है। कहा गया कि 100 बिलियन डॉलर का लक्ष्य विकासशील देशों की वास्तविक जरूरतों की पूर्ति करने में पहले से ही अपर्याप्त है।
बयान में कहा गया कि 100 बिलियन डॉलर की प्रतिबद्धता 15 साल पहले यानी 2009 में की गई थी। हर पांच साल में महत्वाकांक्षाओं को व्यक्त करने के लिए हमारे पास समान समयसीमा है। जलवायु वित्त के मामले में भी ऐसी ही ज़रूरत है। हमें पूरी उम्मीद है कि विकसित देश बढ़ी हुई महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने और इस कॉप29 को सफल बनाने की अपनी ज़िम्मेदारी को समझेंगे।
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