अमेरिका की कॉर्नेल यूनिवर्सिटी ने भारत के सबसे प्रभावशाली उद्योगपतियों और परोपकारी शख्सियतों में से एक रतन टाटा के निधन पर शोक व्यक्त किया है।
रतन टाटा कॉर्नेल के पूर्व ट्रस्टी और विश्वविद्यालय के सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय दानदाताओं में से एक रहे हैं। वह स्कॉलरशिप, अनुसंधान एवं टेक्नोलोजी इनोवेशन में सहयोग के जरिए अपनी विरासत छोड़कर गए हैं। बता दें कि रतन टाटा का 86 वर्ष की आयु में 9 अक्टूबर को मुंबई में निधन हो गया। गुरुवार को राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया।
टाटा संस के मानद चेयरमैन और 1991 से 2012 तक टाटा समूह के मुखिया रतन टाटा ने सार्वजनिक भलाई पर फोकस करते हुए ग्रुप की वैश्विक पहचान बनाई। उनके परोपकारी योगदान खासकर टाटा ट्रस्ट ने भारत में शिक्षा एवं ग्रामीण विकास पर स्थायी प्रभाव छोड़ा है।
रतन टाटा ने भारत ही नहीं दुनिया भर में असाधारण विरासत छोड़ी है। कॉर्नेल भी इससे अछूता नहीं रहा है। यूनिवर्सिटी के अंतरिम प्रेसिडेंट माइकल कोटलिकॉफ ने कहा कि रतन टाटा एक उदार हस्ती थे। वे हमेशा दूसरों की चिंता किया करते थे। उनकी इसी भावना ने छात्रवृत्ति और अनुसंधान को बढ़ावा दिया जिससे भारत और उसके बाहर लाखों विद्यार्थियों की शिक्षा व स्वास्थ्य में सुधार करके कॉर्नेल के वैश्विक प्रभाव को बढ़ाया।
2008 में टाटा ट्रस्ट की ओर से 50 मिलियन डॉलर का योगदान दिया गया था, जिससे टाटा-कॉर्नेल इंस्टीट्यूट फॉर एग्रीकल्चर एंड न्यूट्रिशन तैयार हुआ। 2017 में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज के 50 मिलियन डॉलर निवेश से न्यूयॉर्क शहर में कॉर्नेल टेक के रूजवेल्ट द्वीप कैंपस में टाटा इनोवेशन सेंटर बनाने में मदद मिली थी।
भारत के एक प्रमुख औद्योगिक परिवार में 1937 में जन्मे रतन टाटा ने 1959 में कॉर्नेल में दाखिला लिया था। पहले उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, उसके बाद आर्किटेक्चर में स्विच किया और फिर बिजनेस में अपनी कामयाबी के झंडे गाड़ दिए।
कॉर्नेल कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर में आर्ट एंड प्लानिंग के डीन जे. मीजिन यून ने कहा कि रतन के जीवन को देखते हुए मैं न सिर्फ उनके योगद्वारा के लिए आभारी हूं बल्कि उनकी दयालुता, उदारता के लिए मेरे दिल में गहरा सम्मान है। इसने भारत और दुनिया भर में लोगों की जिंदगी सुधारने में अहम योगदान दिया है।
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