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​​​​​​​युग युगीन भारत: विश्वस्तरीय संग्रहालय के लिए भारत-फ्रांस की ऐतिहासिक साझेदारी

फ्रांस की म्यूजियम डेवलपमेंट एजेंसी ब्रिटिश-युग के स्थलों को एक ऐसे संग्रहालय में बदलने के लिए विचारों और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करेगी जो भारत की संस्कृति और इतिहास को दर्शाएगा। विदेश मंत्री एस. जयशंकर के शब्दों में '...भारत के पुनर्निर्माण के लिए एक प्रेरणा' बनेगा। 

सेंट्रल विस्टा परियोजना नई दिल्ली के राजनीतिक केंद्र का कायाकल्प करने के उद्देश्य से एक प्रमुख पहल रही है। / X@DrSJaishankar

भारत के संस्कृति मंत्रालय ने 'युग युगीन भारत राष्ट्रीय संग्रहालय' को विश्व स्तरीय सांस्कृतिक संस्थान और वैश्विक सांस्कृतिक स्थल के रूप में विकसित करने के लिए फ्रांस के साथ एक ऐतिहासिक साझेदारी की घोषणा की है।

यह पहल नई दिल्ली में परिवर्तनकारी सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना का हिस्सा है। इससे नॉर्थ और साउथ ब्लॉक में एक प्रतिष्ठित संग्रहालय का निर्माण होगा। संग्रहालय की प्रेरणा प्रधानमंत्री मोदी के 'पंचप्राण' या पांच संकल्पों के कुछ प्रमुख सिद्धांतों में देखा जा सकता है। इनमें औपनिवेशिक विरासत के चिह्नों को हटाना और राष्ट्रीय इतिहास में गर्व को बढ़ावा देना शामिल है।

फ्रांस की म्यूजियम डेवलपमेंट एजेंसी ब्रिटिश-युग के स्थलों को एक ऐसे संग्रहालय में बदलने के लिए विचारों और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करेगी जो भारत की संस्कृति और इतिहास को दर्शाएगा। विदेश मंत्री एस. जयशंकर के शब्दों में '...भारत के पुनर्निर्माण के लिए एक प्रेरणा' बनेगा। 

फ्रांस की 'ग्रांड्स प्रोजेत्स' पहल फ्रांस के 21वें राष्ट्रपति फ्रांस्वा मिटरैंड के कार्यकाल के दौरान शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य शहर के प्रतिष्ठित वास्तुकला के नवीनीकरण और उन्नयन के माध्यम से फ्रांस की सांस्कृतिक और स्थापत्य विरासत को प्रदर्शित करने के लिए पेरिस का आधुनिकीकरण करना था। इस पहल का शायद सबसे प्रभावशाली परिणाम लौवर संग्रहालय का कायाकल्प और आधुनिकीकरण था। 

सेंट्रल विस्टा परियोजना नई दिल्ली के राजनीतिक केंद्र का कायाकल्प करने के उद्देश्य से एक प्रमुख पहल रही है।इसमें ब्रिटिश औपनिवेशिक-युग के स्मारक और सरकारी भवन जैसे संसद भवन और राष्ट्रपति भवन (जो पहले वायसराय का घर था), साथ ही सचिवालय भवन भी शामिल हैं। नई दिल्ली के इस केंद्रीय प्रशासनिक क्षेत्र को अक्सर ब्रिटिश वास्तुकार एडवर्ड लुटियन्स के नाम पर 'लुटियंस दिल्ली' भी कहा जाता है। उन्होंने 1911 और 1931 के बीच ब्रिटिश राज के लिए कई इमारतें और उद्यान डिजाइन किए थे। 

पेरिस में 'ग्रांड्स प्रोजेत्स' पहल के आसपास के विवादों की तरह ही सेंट्रल विस्टा परियोजना ने कला और वास्तुकला आलोचकों और भारत के विपक्षी दलों ने सवाल उठाए थे। मामला कोर्ट तक जा पहुंचा। नई संसद भवन के निर्माण सहित परियोजना के लिए रास्ता साफ करने के लिए भारत के सर्वोच्च न्यायालय को फैसला देना पड़ा। प्रोजेक्ट के पीछे की मानसिकता प्रगति मैदान परिसर के वास्तुकार के शब्दों में समाहित है कि ...अपने बुनियादी ढांचे को अपग्रेड करने से इतिहास हमें नहीं रोक सकता...'। 

सेंट्रल विस्टा परियोजना का लक्ष्य लुटियंस दिल्ली को एक नया रूप देना है। जिससे भारत को एक नए आत्मविश्वास से ओतप्रोत विश्व शक्ति को स्पष्ट रूप से उजागर किया जा सके। एक ऐसा देश जो अपनी विरासत और इतिहास पर गर्व करता है। यूनानियों, अरबों, तुर्कों, मुगलों सहित विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा शासित होने की सदियों पुरानी छाया से उभर रहा है। यहां तक कि कई ऐतिहासिक सड़कों का नाम बदलना भी यही संदेश देने का इरादा रखता है।

सबसे उल्लेखनीय और प्रतीकात्मक परिवर्तनों में से एक राजपथ का नाम बदलकर 'कर्त्तव्य पथ' करना था। राजपथ एक ऐसा नाम था जो शाब्दिक रूप से ब्रिटिश राज की याद दिलाता था। यह मूल रूप से 1911 के दिल्ली दरबार के दौरान जॉर्ज पंचम के नाम पर 'किंग्सवे' रखा गया था। उस समय ब्रिटिश भारत की राजधानी को कोलकाता से दिल्ली में स्थानांतरित कर दिया गया था।

 

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