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H-1B में सख्ती का क्या असर, डार्टमाउथ के इकनोमिस्ट ने बताया नया पहलू

सेरडोटे कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय स्नातकों के लिए अमेरिका में नौकरी का रास्ता अब ज्यादा अनिश्चित हो गया है, लेकिन उनके पास कई अन्य विकल्प भी हैं।

एच-1बी वीज़ा प्रोग्राम में बदलावों ने अंतरराष्ट्रीय छात्रों की चिंता बढ़ा दी है। / Image : Unsplash

एच-1बी वीज़ा प्रोग्राम में हालिया बदलावों ने अंतरराष्ट्रीय छात्रों और अमेरिकी विश्वविद्यालयों की चिंता बढ़ा दी है। वर्क वीज़ा के घटते अवसरों के कारण क्या छात्र अब भी उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका को चुनेंगे? अगर नहीं तो अर्थव्यवस्था और नवाचार पर इसका दीर्घकालिक असर क्या होगा? इस मसले पर डार्टमाउथ कॉलेज के प्रोफेसर ब्रूस आई. सेरडोटे से न्यू इंडिया अब्रॉड ने विशेष बातचीत की। 

प्रोफेसर ब्रूस सेरडोटे ने खास इंटरव्यू में एच-1बी वीज़ा प्रतिबंधों के संभावित असर, जन्मसिद्ध नागरिकता पर ट्रंप के कार्यकारी आदेश की अनिश्चितता और विश्वविद्यालयों की संभावित प्रतिक्रिया के बारे में अपने विचार साझा किए।

वीज़ा में बदलाव से अंतरराष्ट्रीय छात्र कैसे प्रभावित हो सकते हैं, इस सवाल पर सेरडोटे ने साफ कहा किअगर एच-1बी वीज़ा में भारी कटौती होती है तो निश्चित रूप से यहां पढ़ाई करने आने वालों की रुचि घट जाएगी। हालांकि सवाल यह है कि कितनी। जब छात्र नए सिस्टम के अभ्यस्त हो जाएंगे तो वे यहां पढ़ने में रुचि बनाए रख सकते हैं, भले ही उनके लिए काम करने के अवसर सीमित हों।

ये भी देखें - H1-B सीज़न शुरू, मगर सुधारों का टारगेट अब भी दूर की कौड़ी

क्या सख्त एच-1बी नीति अमेरिका को कम आकर्षक बना देगी? वर्क ऑप्शन कम होने पर ग्लोबल टैलंट को आकर्षित करने की उसकी क्षमता प्रभावित हो सकती है। सेरडोटे ने इस जोखिम को स्वीकार किया लेकिन यह भी कहा कि नीतिगत बदलाव अभी भी अनिश्चित हैं। उनका कहना था कि अगर ऐसे प्रतिबंध लागू होते हैं, जो कि जरूरी नहीं है तो मेरी प्राथमिकता यही होगी कि अमेरिका दुनिया की सबसे बेहतरीन प्रतिभाओं को आकर्षित करता रहे। हालांकि H-1B वीज़ा को सीमित करने के समर्थन में यह तर्क दिया जा सकता है कि इससे स्थानीय छात्रों के लिए वेतन और अवसर बढ़ सकते हैं।

सेरडोटे कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय स्नातकों के लिए अमेरिका में नौकरी का रास्ता अब ज्यादा अनिश्चित हो गया है, लेकिन उनके पास कई अन्य विकल्प भी हैं। वे अपने मूल देश में काम करने या अन्य OECD देशों में जाने पर विचार कर सकते हैं जहां नीति पहले जैसी है। कई अन्य विकसित देश भी अमेरिका की बदली आप्रवासन नीति का फायदा उठा सकते हैं।

विश्वविद्यालयों के लिए इन बदलावों में खुद को ढालना आसान नहीं होगा। सेरडोटे ने ज़ोर देकर कहा कि वैश्विक प्रतिभाओं को बनाए रखने के लिए वित्तीय सहायता एक महत्वपूर्ण रणनीति बनी रहेगी। डार्टमाउथ बिना किसी भेदभाव के दाखिले देता है और सभी छात्रों की वित्तीय ज़रूरतें पूरी करता है। यह छात्रों को आकर्षित करने का सबसे अच्छा तरीका है। हालांकि शैक्षणिक संस्थानों को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। 

कुछ विश्लेषकों का मानना है कि वीज़ा प्रतिबंध कुछ खास देशों या विषयों, खासकर STEM क्षेत्रों के छात्रों को प्रभावित कर सकते हैं। सेरडोटे ने इस संभावना से इनकार नहीं किया और कहा कि अगर नई नीति में कुछ देशों के लिए एच-1बी आवंटन में बड़ी कटौती की जाती है या कुछ STEM क्षेत्रों को दूसरों की तुलना में अधिक प्राथमिकता दी जाती है तो प्रभाव पड़ सकता है।

इसके अलावा ट्रंप का जन्मसिद्ध नागरिकता खत्म करने का आदेश हालात को और जटिल बना सकता है। एच-1बी वीज़ा धारकों के बच्चों के लिए इसका मतलब होगा कि वे ऑटोमैटिक रूप से अमेरिकी नागरिकता हासिल नहीं कर पाएंगे और इन स्टेट ट्यूशन, छात्रवृत्ति और संघीय सहायता जैसी सुविधाओं से वंचित हो सकते हैं। सेरडोटे ने आगाह किया कि इस बदलाव से एच-1बी धारक यहां अपने करियर और बच्चों की शिक्षा पर कम निवेश करेंगे। वैसे अभी यह साफ नहीं है कि जन्मसिद्ध नागरिकता में बदलाव कानूनी रूप से कायम रहेगा या नहीं। 

दीर्घकालिक प्रभाव अभी स्पष्ट नहीं हैं लेकिन दांव पर बहुत कुछ है। यदि कम कुशल प्रवासी अमेरिका को चुनते हैं तो प्रभाव केवल विश्वविद्यालयों तक ही सीमित नहीं रहेगा बल्कि यह देश की अर्थव्यवस्था और इनोवेशन इकोसिस्टम तक भी फैल सकता है। कुछ लोगों का तर्क है कि ये नीतियां ज्यादा मेरिट आधारित इमिग्रेशन सिस्टम को बढ़ावा दे सकती हैं। वहीं अन्य एक्सपर्ट्स इसे वैश्विक प्रतिभाओं के लिए एक बाधा मानते हैं। 

सेरडोटे का इस पर संतुलित जवाब था कि हम अभी नहीं जानते कि कितने महत्वपूर्ण बदलाव होंगे और वे क्या होंगे। सेरडोटे का कहना था कि फिलहाल अनिश्चितता कायम है लेकिन जैसे-जैसे नीतियां विकसित होंगी, उसी के हिसाब से अंतरराष्ट्रीय छात्र भी अपनी उच्च शिक्षा और करियर के फैसले लेंगे।

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