डेमोक्रेटिक पार्टी के दो प्रभावशाली सांसदों ने यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) द्वारा भारत में वोटर टर्नआउट के लिए दिए गए 21 मिलियन डॉलर की कथित राशि को लेकर डोनाल्ड ट्रंप सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है।
हाउस की फॉरेन अफेयर्स कमेटी के रैंकिंग मेंबर ग्रेगरी डब्ल्यू मिक्स और दक्षिण व मध्य एशिया पर सबकमेटी की रैंकिंग मेंबर सिडनी कैमलागर डव ने अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो को इस सिलसिले में पत्र लिखा है।
उन्होंने अपने पत्र में कहा है कि USAID की इस फंडिंग ने भारत में राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया है और बिना ठोस आधार के संस्था की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा कर दिया है।
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सांसदों ने विदेश मंत्री से 21 मिलियन डॉलर के इस अनुदान का पूरा विवरण मांगा है जिसमें फंड आवंटन की तारीखें, अनुबंध की जानकारी, क्रियान्वयन भागीदार, प्रस्तावित गतिविधियां और उनकी समय-सीमा शामिल है। इसके अलावा कांग्रेस से नोटिफिकेशन की तारीख और नंबर भी देने का अनुरोध किया है।
पत्र में राष्ट्रपति ट्रंप और डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी (DOGE) के दावों पर भी सवाल उठाए गए है, जिनमें कहा गया कि USAID ने भारत में मतदाता टर्नआउट के नाम पर 21 मिलियन डॉलर खर्च किए।
सांसदों ने यह स्पष्ट करने की मांग की है कि DOGE ने इन कार्यक्रमों को किस प्रक्रिया के तहत रद्द किया। इसकी जानकारी संबंधित पक्षकारों और कार्यान्वयन भागीदारों तक किस तरह और कब पहुंचाई गई।
राष्ट्रपति ट्रंप ने हाल ही में आरोप लगाया था कि बाइडेन प्रशासन ने इस फंड का उपयोग किसी पार्टी और को जिताने के लिए किया था। इसके बाद भारत में जबरदस्त राजनीतिक हंगामा हो गया। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में इसे अमेरिकी हस्तक्षेप के प्रमाण के रूप में तौर पर पेश किया गया है।
USAID ने भारत में आईआईटी कानपुर जैसे संस्थानों की स्थापना, सार्वजनिक स्वास्थ्य पहल और छोटे पैमाने पर विकास परियोजनाओं में ऐतिहासिक योगदान दिया है। लेकिन सांसदों ने पत्र में चेताया कि कुछ भ्रामक बयानों से USAID की दशकों पुराने इमेज पर शक पैदा हुआ है। इससे अमेरिका-भारत साझेदारी भी खतरे में पड़ सकती है।
पत्र में यह भी कहा गया कि अमेरिका की विदेशी मदद के बारे में गलत जानकारी फैलने से देश की विश्वसनीयता प्रभावित होती है। अंतरराष्ट्रीय कार्यक्षमता बाधित होती है और हमारे प्रमुख रणनीतिक साझेदारों के साथ संबंधों को खतरा पैदा होता है। भारत चूंकि एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार है, ऐसे में इस मसले पर राजनयिक सतर्कता और स्पष्ट संवाद की आवश्यकता है।
बताते हैं कि सांसदों ने 19, 21 और 24 फरवरी को इस फंडिंग पर स्पष्टीकरण मांगा था लेकिन खबर लिखे जाने तक विदेश विभाग से कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि DOGE के दावों और राष्ट्रपति के बयानों को देखते हुए विदेश विभाग और USAID को इस विषय पर सटीक जानकारी तुरंत उपलब्ध करानी चाहिए।
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