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अमेरिका से भारतीयों का निर्वासन संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन? जानें क्या कहते हैं नियम

अमेरिका से हथकड़ियां बांधकर निकाले गए भारतीय अवैध प्रवासियों को लेकर संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन का आरोप सामने आया है।

प्रतीकात्मक तस्वीर। / istock

साईं श्रीनिवास रेड्डी

अमेरिका से 100 से अधिक भारतीय नागरिकों को सैन्य विमानों से देश से बाहर भेजा गया, जो राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की निर्वासन नीति का हिस्सा था। इनमें से दो लोगों को निर्वासन के दौरान हथकड़ी पहनाई गई, जिससे कानून प्रवर्तन एजेंसियों की सख्ती को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। सभी 104 निर्वासित भारतीयों ने अपने संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया है। उन्होंने दावा किया कि अमेरिकी बिल ऑफ राइट्स के तहत दिए गए कई अधिकारों, जैसे अत्यधिक कठोर सजा से सुरक्षा, वकील तक पहुंच और आत्म-अभियोग से सुरक्षा का उल्लंघन हुआ है।

क्या है कानूनी पेच?
अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने निर्वासन को आपराधिक सजा के बजाय नागरिक प्रशासनिक प्रक्रिया माना है। 1893 में Fong Yue Ting v. United States केस में कोर्ट ने कहा था, "निर्वासन किसी अपराध की सजा नहीं है, बल्कि एक प्रशासनिक कार्रवाई है।" हालांकि, निर्वासन के प्रभाव आपराधिक सजा से भी अधिक गंभीर हो सकते हैं। 1922 के Ng Fung Ho v. White केस में जस्टिस लुई ब्रैंडिस ने कहा था कि निर्वासन के कारण व्यक्ति "अपनी संपत्ति, जीवन और सम्मान" सब कुछ खो सकता है।

संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन?
क्योंकि निर्वासन एक नागरिक (सिविल) प्रक्रिया माना जाता है, इसलिए इसमें कई संवैधानिक सुरक्षा नहीं मिलतीं जो कि आपराधिक मामलों में मिलती हैं:

निःशुल्क वकील नहीं दिया जाता – अपराधियों को सरकार द्वारा वकील मुहैया कराया जाता है (Gideon v. Wainwright, 1963), लेकिन निर्वासित लोगों को खुद की कानूनी रक्षा करनी होती है।


पिछली तारीख से लागू होने वाले कानून (Retroactive Laws) लागू होते हैं – आपराधिक कानूनों को पीछे की तारीख से लागू नहीं किया जा सकता, लेकिन निर्वासन मामलों में यह प्रतिबंध नहीं है (Galvan v. Press, 1954)।


मिरांडा चेतावनी नहीं दी जाती – अमेरिका में आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी के वक्त आरोपी को उसके अधिकारों की जानकारी दी जाती है (Miranda v. Arizona, 1966), लेकिन निर्वासित लोगों को यह सुविधा नहीं मिलती।


तेजी से सुनवाई (Speedy Trial) का अधिकार नहीं – आपराधिक मामलों में कोर्ट को फैसला जल्द देना होता है, लेकिन निर्वासन मामलों में लंबा इंतजार करना पड़ता है।


गैर-कानूनी रूप से हासिल सबूत भी स्वीकार किए जाते हैं – आपराधिक मामलों में अवैध रूप से जुटाए गए सबूत खारिज कर दिए जाते हैं, लेकिन निर्वासन मामलों में ऐसा नहीं है (INS v. Lopez-Mendoza, 1984)।

निर्वासन के गंभीर प्रभाव और सुधार की जरूरत
निर्वासन का प्रभाव आजीवन कारावास या अन्य आपराधिक सजा से भी अधिक हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने Solem v. Helm (1983) केस में कहा था कि गैर-हिंसक अपराधों के लिए आजीवन कारावास "क्रूर और असामान्य सजा" हो सकती है। लेकिन निर्वासन कानून इस सिद्धांत का पालन नहीं करता।

इसलिए आव्रजन कानून में सुधार की सिफारिशें
निःशुल्क कानूनी सहायता उपलब्ध कराई जाए – खासतौर पर बच्चों और मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों को वकील मुहैया कराया जाए।
पिछली तारीख से लागू किए जाने वाले निर्वासन कानूनों को खत्म किया जाए – निर्वासन के नियमों को न्यायसंगत बनाया जाए।
मिरांडा चेतावनी और उचित कानूनी प्रक्रिया दी जाए – ताकि निर्वासित लोग अपने अधिकारों को जान सकें।
अदालतों की दक्षता बढ़ाई जाए – केसों का तेजी से निपटारा करने के लिए न्यायिक स्टाफ बढ़ाया जाए।
गैर-कानूनी सबूतों को खारिज किया जाए – जैसे कि आपराधिक मामलों में होता है।

क्या अमेरिका की निर्वासन नीति न्यायसंगत है?
निर्वासन को नागरिक मामला मानने से आपराधिक कानून के कई संवैधानिक अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है। यह कई लोगों के लिए परिवार से बिछड़ने, रोजगार छिनने और जीवन के लिए खतरे की स्थिति पैदा कर सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि संविधानिक सुरक्षा उपायों को निर्वासन मामलों में भी लागू किया जाए, ताकि यह प्रक्रिया अधिक न्यायसंगत और मानवीय हो।

(इस लेख में व्यक्त विचार और राय लेखक के अपने हैं और जरूरी नहीं कि वे न्यू इंडिया अब्रॉड की आधिकारिक नीति या स्थिति को प्रतिबिंबित करते हों।)
 

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