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चुनौतियों के बावजूद भारत-अमेरिका संबंधों में अभूतपूर्व मजबूती

भारत अमेरिका के रिश्तों का वक्त वक्त बदल चुका है। आज बयानबाजी की तुलना में सारगर्भित बातें ज्यादा होती हैं और पथप्रदर्शक समझौते गिनाने के बहुत सारे मौके हैं। अब कोई भी पक्ष नहीं चाहता कि इसकी वजह से आपसी संबंध पटरी से उतरें।

सीमा सिरोही

2005 के ऐतिहासिक असैन्य परमाणु समझौते को छोड़ दिया जाए तो एक दौर था जब भारत-अमेरिका के बीच संबंधों में सार से ज्यादा बयानबाजी ज्यादा हुआ करती थी। लेकिन अब वक्त बदल चुका है। आज बयानबाजी की तुलना में सारगर्भित बातें ज्यादा होती हैं और पथप्रदर्शक समझौते गिनाने के बहुत सारे मौके हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यूक्रेन युद्ध जैसे नीतिगत मामलों में असहमति पर सार्वजनिक कटुता दिखाने के बजाय शांति से मैनेज कर लिया जाता है।

इस साल का मुख्य आकर्षण जून में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका की राजकीय यात्रा थी। इस दौरान औपचारिक स्वागत के साथ ही एक लंबा संयुक्त बयान जारी किया गया था, जिसमें अंतरिक्ष से लेकर समुद्र तक मानव विकास के लगभग हर क्षेत्र में सहयोग का विवरण दिया गया था। इस बेहद सफल यात्रा ने साझेदारी के प्रति राष्ट्रपति जो बाइडेन की प्रतिबद्धता को दिखाया था। यात्रा के तीन दिनों में दोनों नेताओं की कई बार मुलाकातें हुई थीं। मोदी कई नई परियोजनाओं को लॉन्च किया था। इस दौरान प्रौद्योगिकी के दिग्गजों को एक साथ लाने के लिए तकनीकी सहयोग बढ़ाने से लेकर स्वास्थ्य एवं शिक्षा के संबंध बनाने के गंभीर प्रयास किए गए।

इसके बाद सितंबर में बाइडेन जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए दिल्ली पहुंचे। उनके उदार रुख की बदौलत भारत साझा बयान पर सहमति बनाने में सफल रहा। यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत का रवैया अलग रहा है, इसके बावजूद अमेरिका और यूरोप दोनों ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की निंदा को लेकर तब नरमी दिखाई।

निस्संदेह, भारत-अमेरिका संबंधों के प्रगाढ़ होने का एक बड़ा कारण चीन है जिसे दोनों देश एक बड़े सुरक्षा खतरे के रूप में देखते हैं। 2020 के गलवान संकट ने चीन को लेकर भारत का रवैया पूरी तरह बदल दिया था, जब सीमा पर झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे। उसी तरह चीन को लेकर अमेरिका की नीतियां राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के कार्यकाल में बदल गईं। चीन ने पिछले कुछ वर्षों में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी सहयोगियों के खिलाफ कई बार हमले किए हैं। इसने चीन को लेकर अमेरिका का शक पूरी तरह से पुख्ता कर दिया कि वह अमेरिका से नंबर-1 का ताज छीनना चाहता है। इस तरह देखें तो चीन का मुकाबला करना भारत और अमेरिका दोनों के साझा हित में है।

साल की शुरुआत अमेरिका और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों जेक सुलिवन और अजीत डोभाल के बीच क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज (आईसीईटी) पर एक दूरगामी पहल के साथ हुई थी। यह एक ऐसा विचार रहा जिसने दोनों देशों के बीच सभी प्रमुख मोर्चों जैसे कि राजनीतिक, रणनीतिक, प्रौद्योगिकी एवं सुरक्षा पर एकजुट कर दिया। आईसीईटी को लेकर संकल्प से कई शाखाएं निकली जिनमें सबसे प्रमुख रक्षा क्षेत्र में सहयोग रहा।

दोनों देशों के संबंधों में कुछ ही महीनों में विश्वास बढ़ने के साथ महत्वपूर्ण प्रगति हुई। पेंटागन आत्मनिर्भरता के लिए भारत की योजना में एक उत्सुक भागीदार बन गया। भारत में जीई जेट इंजनों के सह-उत्पादन के सौदे को अंतिम रूप दे दिया गया। 31 प्रीडेटर ड्रोन खरीदने का एक और सौदा किया गया। भारत-प्रशांत क्षेत्र में मित्र देशों की नौसेनाओं और वायु सेनाओं के साजोसामान के रखरखाव एवं मरम्मत के लिए भारत को रसद केंद्र बनाने के समझौते किए गए। अमेरिकी आपूर्ति श्रृंखलाओं में भारतीय रक्षा कंपनियों को एकीकृत करने के लिए समर्थन बढ़ गया। इसके अलावा प्रतिबंधात्मक अमेरिकी निर्यात नियंत्रणों से भी निपटाने की कोशिशें हो रही हैं।

भारत और अमेरिका ने अंतरिक्ष क्षेत्र में भी लंबी छलांग लगाई। भारत ने अमेरिका के नेतृत्व वाले आर्टेमिस समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो अंतरिक्ष अन्वेषण का रास्ता साफ करता है। इसके अलावा, नासा 2024 में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के संयुक्त मिशन के लिए इसरो के अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षित करने पर राजी हो गया। इससे अमेरिकी कंपनियों द्वारा भारत के अंतरिक्ष स्टार्टअप्स में रुचि को भी बढ़ावा मिलेगा।

व्यापार के मोर्चे पर देखें तो एक आश्चर्यजनक कदम के रूप में दोनों देशों ने आपसी समझौतों और समायोजन से विश्व व्यापार संगठन में सभी सात बकाया व्यापार विवादों को सुलझा लिया। इस बीच अमेरिका 2022 में 191 बिलियन के दो-तरफा व्यापार के साथ भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया। 2023 के डेटा आने पर इसके और भी आगे निकलने की उम्मीद है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी उस स्तर तक परिपक्व हो गई है, जहां गंभीर चुनौतियों को शांति एवं विचार विमर्श के साथ निपटाया जाता है। अगर 2023 ने कई मोर्चों पर अभूतपूर्व प्रगति दर्ज की तो रास्ते में एक बड़ा रोड़ा भी आया। अमेरिकी न्याय विभाग ने भारतीय नागरिक निखिल गुप्ता पर आरोप लगाया कि उसने न्यूयॉर्क स्थित खालिस्तानी नेता की हत्या की कथित साजिश रचने के लिए भारत सरकार के एक अधिकारी के साथ मिलकर काम किया था। इस साजिश को तो नाकाम कर दिया गया लेकिन इस खुलासे की वजह से वाशिंगटन और नई दिल्ली के बीच आपसी विश्वास को नुकसान पहुंचाया खासकर खुफिया तंत्र के मामले में।

अमेरिका ने यह आरोप 18 जून को सरे में कनाडा के खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के कुछ महीने बाद लगाया। इस बारे में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो भारतीय अधिकारियों के शामिल होने के कथित 'विश्वसनीय सबूतों' के बारे में संसद में बयान दे चुके हैं. लेकिन ट्रूडो के सार्वजनिक हमले के उलट अमेरिकी अधिकारियों ने शीर्ष भारतीय अधिकारियों के साथ बंद दरवाजों के पीछे जानकारी साझा की और जवाबदेही पर जोर दिया।

व्हाइट हाउस ने द्विपक्षीय एजेंडे को जारी रखते हुए सार्वजनिक दिखावे के बिना अमेरिकी खुफिया विभाग के लिए काम करने वाले एक मुखबिर द्वारा नाकाम की गई कथित साजिश के मामले से निपटने की समझदारी दिखाई। बाइडेन ने खुद मोदी के समक्ष यह मुद्दा उठाया और सीआईए के निदेशक विलियम बर्न्स और राष्ट्रीय खुफिया निदेशक एवरिल हेन्स समेत कई उच्चस्तरीय अधिकारियों को दिल्ली भेजा। एनएसए सुलिवन ने अगस्त में सऊदी अरब में भारतीय समकक्ष डोभाल के साथ इस मुद्दे को उठाया था और मुद्दे की गंभीरता से अवगत कराया था।

अमेरिका ने भारत से कहा है कि वह इस कथित साजिश के जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराए और यह आश्वासन दे कि ऐसा दोबारा नहीं होगा। भारत ने पूरे मामले की जांच के लिए एक समिति बना दी है। दोनों पक्षों के बीच स्वीकार्य समाधान कैसे तैयार होगा, यह समय के साथ स्पष्ट होगा। हालांकि इतना साफ है कि कोई भी पक्ष नहीं चाहता कि इसकी वजह से आपसी संबंध पटरी से उतरें। दोनों ही चाहते हैं कि साझेदारी आगे भी जारी रहे।

(लेखक स्तंभकार हैं और 'फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स : द इंडिया-यूएस स्टोरी' की लेखक हैं)

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