ADVERTISEMENTs

भारत और अमेरिका में भ्रष्टाचार बढ़ा, ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रैंकिंग में आई गिरावट

यह सूचकांक ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी किया गया है जो 180 देशों को भ्रष्टाचार के स्तर के आधार पर रैंक करता है।

भारत इस लिस्ट में तीन पायदान फिसलकर 96वें स्थान पर आ गया है। / Image : transparency international

साल 2024 के करप्शन परसेप्शन इंडेक्स (CPI) में भारत और अमेरिका दोनों की रैंकिंग में गिरावट आई है। यह इन दोनों बड़े लोकतांत्रिक देशों में शासन और सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकारियों की ईमानदारी को लेकर बढ़ती चिंताओं को दर्शाता है। 

यह सूचकांक ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी किया गया है जो 180 देशों को भ्रष्टाचार के स्तर के आधार पर रैंक करता है। इसमें '0' का मतलब अत्यधिक भ्रष्ट और '100' का मतलब बहुत साफ-सुथरा है।

भारत इस लिस्ट में तीन पायदान फिसलकर 96वें स्थान पर आ गया है। उसका स्कोर 100 में से 38 रहा है जबकि 2023 में यह स्कोर 39 और 2022 में 40 था। पिछले साल भारत 93वें नंबर पर था। रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग में गिरावट का मुख्य कारण राजनीतिक पारदर्शिता की कमी, शासन की चुनौतियां और सार्वजनिक धन के दुरुपयोग बताया गया है।

दक्षिण एशिया में भारत के पड़ोसी देशों की स्थिति भी अच्छी नहीं रही है। पाकिस्तान 135वें, श्रीलंका 121वें और बांग्लादेश 149वें स्थान पर रहे। रिपोर्ट के अनुसार, भ्रष्टाचार आर्थिक विकास, विदेशी निवेश और नीतियों पर प्रभावी तरीके से अमल में बाधा बन रहा है।

अमेरिका भी 24वें स्थान से गिरकर 28वें स्थान पर आ गया है। उसका स्कोर पहले 69 था, जो अब घटकर 65 हो गया है। यह 2012 में इंडेक्स शुरू होने के बाद से अमेरिका का सबसे खराब प्रदर्शन है। अमेरिका बहामास के साथ संयुक्त रूप से 28वें स्थान पर है। 

रिपोर्ट में इसकी वजह अमेरिकी संस्थानों में विश्वास में कमी, राजनीतिक लॉबिंग से जुड़ी चिंता और वित्तीय अनियमितताओं  को बताया गया है। इसके अलावा राजनीति में कॉर्पोरेट प्रभाव, नैतिकता का उल्लंघन और चुनाव संबंधी अनियमितताओं को भी वजह बताया गया है।

साल 2024 की लिस्ट में डेनमार्क ने सबसे कम भ्रष्ट देश का अपना स्थान कायम रखा है। वहीं दक्षिण सूडान और सोमालिया सबसे निचले पायदान पर रहे यानी सबसे भ्रष्टतम देश रहे।

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि भ्रष्टाचार न सिर्फ लोकतंत्र एवं आर्थिक स्थिरता को खतरे में डालता है बल्कि वैश्विक जलवायु नीतियों को भी प्रभावित करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत और अमेरिका को जनता के बीच विश्वास फिर से कायम करने के लिए पारदर्शिता और जवाबदेही को मजबूत करना होगा। 

Comments

ADVERTISEMENT

 

 

 

ADVERTISEMENT

 

 

E Paper

 

 

 

Video

 

Related