विश्व के सियासी परिदृश्य में भारत का कद और दबदबा अब बढ़ चुका है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूसरे कार्यकाल से ही यह कहा जाने लगा था कि भारत की विदेश नीति अब अधिक प्रभाव छोड़ने लगी है। प्रधानमंत्री मोदी का व्यक्तित्व अंतरराष्ट्रीय मंचों और विदेश यात्राओं में छा जाने वाला असर छोड़ रहा है। यह असर बीते कई वर्षों से साफ तौर पर दिखाई भी दिया है। खास तौर से परस्पर टकराव वाले देशों के संदर्भ में भारत की कूटनीति ऐसी रही है जिसकी दुनिया ने तारीफ की है। अगर हम सीधे-सीधे रूस-यूक्रेन मामले की ही बात करें तो सारी दुनिया की निगाहें इस समय भारत और विशेष तौर पर प्रधानमंत्री मोदी पर लगी हुई हैं। पीएम मोदी की पार्टी का एक चुनावी नारा यहां सटीक बैठ रहा है। दुनिया को विश्वास हो चला है कि- मोदी है तो मुमकिन है। यानी युद्ध बंद हो सकता है और शांति कायम हो सकती है।
रूस-यूक्रेन युद्ध को ढाई साल बीत चुका है। जंग शुरू होने के बाद से ही भारत-अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों ने इसकी समाप्ति को लेकर आह्वान किया। मगर केवल बातें ही होती रहीं। युद्ध के करीब एक साल बाद अमेरिका मामले में कुछ मुखर हुआ मगर 'बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे' वाले हालात रहे। हालांकि यूक्रेन अपने सहयोगियों के दम पर आत्मरक्षा करते हुए आज भी मैदान में है लेकिन रूस अभी पीछे नहीं हटा है। अलबत्ता इस साल के शुरुआत से इस बात को लेकर आवाजें और आह्वान अधिक स्पष्ट हुए कि युद्ध बंद कराने में भारत अहम भूमिका निभा सकता है। भारत ने अपनी ओर से भी शांति बहाली को लेकर कई बार अपनी भूमिका की पेशकश की। भारत के प्रधानमंत्री ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन से अपनी मुलाकात के दौरान पिछले साल ही कहा था कि 'यह युद्ध का समय नहीं है' और फिर कई बार अलग-अलग मंचों से अलग आयोजनों में यह बात दोहराई।
बीते दो माह में प्रधानमंत्री मोदी यूं तो कई देशों की यात्राओं पर गये हैं लेकिन इसी दरम्यान उनका रूस और यूक्रेन जाना भी हुई। यूक्रेन की यात्रा इस मायने में भी महत्वपर्ण रही कि भारत के किसी प्रधानमंत्री का 45 साल बाद यह दौरा संभव हुआ। खैर, रूस और यूक्रेन की यात्राओं के दौरान परस्पर संबंधों, राजनीति और व्यापार के अलावा कई मसलों पर पीएम मोदी की पुतिन और जेलेंस्की से बात हुई मगर जाहिर तौर पर युद्ध और हालात को लेकर भी विमर्श हुआ। एक बार फिर भारत ने अपनी कूटनीति और पीएम मोदी ने व्यक्तिगत संबंधों के आधार पर युद्ध को समाप्त करने का आह्वान दोनों देशों के प्रमुखों से किया, ऐसा खबरों से स्पष्ट होता है। सुखद बात यह है कि अब हालात कुछ तो हल्के पड़े हैं। अमेरिका ने प्रधानमत्री मोदी की रूस और यूक्रेन यात्रा पर विशेष ध्यान दिया है और शांति की कामना के साथ उनके प्रयासों की सराहना भी की है। दिलचस्प बात यह है कि इस प्रकरण में अमेरिका की विदेश नीति आलोचनाओं के घेरे में है जबकि भारत की विदेश नीति की प्रशंसा की जा रही है। ऐसा इसलिए संभव हुआ क्योंकि भारत ही एक साथ रूस और यूक्रेन से खुलकर संवाद कर पाया। जाहिर है कि दुनिया का कोई अन्य देश इस स्थिति में नहीं था। यही स्थिति भारत की विश्वनीति को स्पष्ट करती है। भारत विश्वगुरु बनने की राह पर चल पड़ा है।
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