भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक डॉक्टर इंद्रजीत शर्मा अपनी खोज से कैंसर, टीबी और न्यूरोलॉजिकल बीमारियों के इलाज में क्रांति लाने वाले हैं। इलिनॉय विश्वविद्यालय, शिकागो से पीएचडी करने वाले शर्मा उस रिसर्च का नेतृत्व कर रहे हैं जिसमें दवा के अणुओं में नाइट्रोजन के परमाणु मिलाए जा रहे हैं। इससे दवाएं ज्यादा असरदार तो होंगी ही, साथ ही उनका साइड इफेक्ट भी कम होगा।
नाइट्रोजन जीवन का एक मूलभूत तत्व है। यह डीएनए, आरएनए और प्रोटीन की संरचना के लिए बेहद जरूरी है और FDA द्वारा मंजूर लगभग 80% दवाओं में पाया जाता है। इस नई खोज से दवा बनाने की लागत में करीब 200 गुना तक कमी आ सकती है। इससे इलाज, खासकर भारत जैसे विकासशील देशों में, ज्यादा किफायती हो जाएंगे।
डॉक्टर शर्मा ने 6 जनवरी को नई दिल्ली के प्रेस क्लब में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान यह घोषणा की। इस कॉन्फ्रेंस में वैज्ञानिक और मेडिकल क्षेत्र की कई बड़ी हस्तियां मौजूद थीं। डॉक्टर शर्मा इस वक्त ओकलाहोमा विश्वविद्यालय में केमिस्ट्री के एसोसिएट प्रोफेसर हैं। इसमें शामिल पैनल में एम्स, नई दिल्ली के प्रोफेसर विक्रम सैनी, सीटीयू प्राग के प्रोफेसर रूपेंद्र शर्मा, सीसीएस विश्वविद्यालय के प्रोफेसर संजीव शर्मा और हेल्थकेयर पॉलिसी और इनोवेशन के एक्सपर्ट कविन्द्र ताल्यान शामिल हैं।
'न्यू इंडिया अब्रॉड' को दिए एक खास इंटरव्यू में शर्मा ने कहा, 'नाइट्रोजन डालकर मौजूदा दवा के अणुओं में बदलाव करके हम उनकी ताकत बढ़ा सकते हैं और उनका इस्तेमाल और ज्यादा जगहों पर कर सकते हैं। मिसाल के तौर पर, स्तन कैंसर के लिए बनाई गई दवा को थोड़ा बदलकर दिमागी कैंसर के इलाज में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।'
शर्मा का मकसद सिर्फ नई खोजें करना नहीं है, बल्कि ये भी सुनिश्चित करना है कि ये तरक्की उन तक भी पहुंचे जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। उन्होंने 'न्यू इंडिया अब्रॉड' को अपने देश भारत को कुछ वापस देने की अपनी योजनाओं के बारे में भी बताया।
उन्होंने कहा, 'आईआईटी से ग्रेजुएशन करने के बाद, मैं अपनी पीएचडी के लिए अमेरिका चला गया। कई आईआईटी वालों की तरह, मुझे भी इनोवेशन में यकीन है। लेकिन मेरे लिए यह केयर के साथ इनोवेशन है। मैं भारत के भविष्य के लिए पूरी तरह से समर्पित हूं, खासकर टेक्नोलॉजी और इनोवेशन को किफायती बनाने में।'
शर्मा ने सहयोग के महत्व पर जोर देते हुए कहा, 'मैं एम्स, नई दिल्ली और प्रोफेसर विक्रम सैनी के साथ टीबी के रिसर्च पर काम कर रहा हूं। हमारी नाइट्रोजन-आधारित तकनीक कई दवाओं से प्रतिरोधी रोगाणुओं से निपटने के लिए बहुत उपयुक्त है, खासकर यमुना नदी जैसे प्रदूषित माहौल में पाए जाने वाले रोगाणुओं से।' एम्स के प्रोफेसर विक्रम सैनी ने कहा, 'यह शोध दवा की क्षमता और सुरक्षा को बढ़ाता है। कैंसर और टीबी जैसी बीमारियों के इलाज में महत्वपूर्ण प्रगति को दर्शाता है।'
पैनलिस्टों ने सरकारों, शोध संस्थानों और उद्योग जगत के नेताओं से डॉ. शर्मा जैसे परिवर्तनकारी वैज्ञानिकों का समर्थन करने का आग्रह किया। / Courtesy Photoशर्मा का काम खास तौर पर टीबी के लिए बहुत उम्मीद देने वाला है। एक ऐसी बीमारी जिसमें बहुत ज्यादा दवा की जरूरत होती है और जिसके बहुत गंभीर साइड इफेक्ट्स होते हैं। उनकी नाइट्रोजन-आधारित तकनीक से इन नुकसानदेह असर को कम किया जा सकता है और दवा का असर बरकरार रखा जा सकता है।
डॉक्टर शर्मा की तकनीक में सल्फेनाइलनाइट्रिन का इस्तेमाल किया जाता है, जो एक टिकाऊ रासायनिक यौगिक है। यह उत्पादन को आसान बनाता है और पर्यावरण के अनुकूल दवा बनाने के वैश्विक प्रयासों के साथ मेल खाता है। शर्मा ने जानबूझकर अपनी तकनीक का पेटेंट नहीं कराने का फैसला किया है, जिससे जान बचाने वाले इलाज तुरंत सभी को मिल सकें।
उन्होंने कहा, 'पेटेंट अक्सर इनोवेशन को लोगों तक पहुंचने में देरी करते हैं। मिसाल के तौर पर, 2001 में विकसित दवाएं 2023 तक ही व्यापक रूप से उपलब्ध हुईं। मेरी प्राथमिकता यह सुनिश्चित करना है कि ये तरक्की हर किसी तक पहुंचे। खासकर उन इलाकों में जहां इसकी कीमत एक चुनौती है। एक भारतीय मूल के वैज्ञानिक के तौर पर, मुझे विश्व स्तर पर अपना काम साझा करने में यकीन है। अगर मैंने अमेरिका में इस पर विशेष कानूनी अधिकार हासिल कर लिए होते, तो मेरे अपने देश [भारत] को इस तकनीक तक पहुंचने में वर्षों की देरी हो सकती थी।'
कार्यक्रम का समापन पैनलिस्टों की ओर से एक आह्वान के साथ हुआ, जिसमें उन्होंने सरकारों, शोध संस्थानों और उद्योग जगत के नेताओं से डॉ. शर्मा जैसे परिवर्तनकारी वैज्ञानिकों का समर्थन करने का आग्रह किया।
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