82 साल के भारतीय पर्यावरणविद माधव गाडगिल को 2024 का चैंपियंस ऑफ द अर्थ लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड मिला है। ये संयुक्त राष्ट्र का सबसे बड़ा पर्यावरण सम्मान है। हर साल यूनाइटेड नेशंस एनवॉयरमेंट प्रोग्राम (UNEP) उन लोगों और संगठन को मान्यता देता है जो क्लाइमेट चेंज, बायोडायवर्सिटी के नुकसान और प्रदूषण जैसी पर्यावरण से जुड़ी तीन बड़ी समस्याओं से निपटने के लिए नए-नए और टिकाऊ हल निकाल रहे हैं।
ये चैंपियंस आर्थिक परिवर्तन लाते हैं। इनोवेशन को बढ़ावा देते हैं। राजनीतिक कार्रवाई के लिए दबाव बनाते हैं। पर्यावरणीय अन्याय से लड़ते हैं और हमारे प्राकृतिक संसाधनों की हिफाजत करते हैं।
माधव गाडगिल छह दशक से भी ज्यादा समय से काम कर रहे हैं। वह भारत के इकोसिस्टम की हिफाजत करने के साथ ही हाशिये पर रहने वाले समुदायों के अधिकारों की वकालत करने वाले एक अहम शख्सियत रहे हैं।
गाडगिल का काम खास तौर पर 2011 की गाडगिल रिपोर्ट, भारत के वेस्टर्न घाट को हो रहे पर्यावरणीय खतरों की तरफ ध्यान दिलाती है। इस रिपोर्ट में बढ़ते उद्योगों के दबाव के बीच पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील इलाकों को बचाने की बात कही गई थी। उनके रिसर्च ने जैव विविधता अधिनियम और वन अधिकार अधिनियम जैसे कानूनों को प्रभावित करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। ये कानून स्थानीय समुदायों को प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन और संरक्षण करने का अधिकार देते हैं।
माधव गाडगिल समुदायों द्वारा संचालित संरक्षण के अग्रणी व्यक्ति हैं। उन्होंने 1986 में भारत का पहला बायोस्फीयर रिजर्व, नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व स्थापित किया था। उनके प्रयासों से जंगल कटाई और प्राकृतिक आवासों के बिगड़ने से प्रभावित इलाकों में जैव विविधता को बचाने में मदद मिली है। गाडगिल ने ग्रामीण भारत के युवाओं को पर्यावरण संरक्षण के बारे में सिखाया है, जिससे उनकी विरासत और मजबूत हुई है।
जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद गाडगिल भविष्य को लेकर आशावादी हैं। वे कहते हैं, 'समुदाय संगठित हो रहे हैं और हमें उनके साथ मिलकर काम करना चाहिए।' इससे वे समावेशी विकास के महत्व पर जोर देते हैं। उनके योगदान से भारत और दुनिया भर में नई पीढ़ी के पर्यावरण नेताओं को प्रेरणा मिलती रहती है।
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