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ईलम तमिल यूथ ने अपने नेता थिलीपन की याद में टोरंटो में सांकेतिक भूख हड़ताल की

ईलम तमिल यूथ की प्रवक्ता आरती ने श्रीलंका के नए राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके के निर्वाचन के बारे में कहा कि कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि वे सभी एक जैसे  ही हैं।

टोरंटो के क्वींस पार्क में ईलम तमिल यूथ के सदस्यों ने प्रदर्शन किया। / Image : Prabhjot Singh

कनाडा में टोरंटो को क्वींस पार्क में ईलम तमिल यूथ के सदस्यों ने अपने मुक्ति सेनानी रसैया पार्थिपन थिलीपन की 37वीं वर्षगांठ मनाई और इस दौरान 8 घंटे की प्रतीकात्मक भूख हड़ताल करते हुए थिलीपन के बलिदान और तमिल नरसंहार से लोगों को अवगत कराया।

ओंटारियो के प्रांतीय संसद भवन से सटे क्वींस पार्क को प्रदर्शनकारियों का अड्डा माना जाता है। यहां पर विभिन्न देशों के नागरिक अपने मूल देश में आजादी और स्वायत्तता सहित तमाम मांगों के लिए शांतिपूर्ण प्रदर्शन करते रहते हैं। शायद ही कोई सप्ताह गुजरता हो जब पार्क में ऐसा कोई विरोध, प्रदर्शन और प्रार्थना सभा आयोजित नहीं होती।

ईलम तमिल के सदस्यों ने प्रदर्शन से पहले क्वींस पार्क की ओर जाने वाले रास्तों पर बोर्ड लगाए और थिलीपन के बलिदान के बारे में लोगों को बताया। ईलम तमिल यूथ की प्रवक्ता आरती ने बताया कि थिलीपन एक मेडिकल पेशेवर बनना चाहते थे और जाफना विश्वविद्यालय में पढ़ाई के लिए आए थे। हालांकि 1983 में ब्लैक जुलाई पोग्रोम के अत्याचारों को देखने के बाद वह तमिल मुक्ति आंदोलन में शामिल हो गए और लेफ्टिनेंट-कर्नल बने। 

आरती ने बताया कि भूख हड़ताल के 12 दिन बाद 26 सितंबर 1987 को थिलीपन का निधन हो गया। थिलीपन ने अपने लोगों और अपनी धरती के लिए इंसाफ और भारत सरकार से मदद की उम्मीद में भूख हड़ताल शुरू की थी। हालांकि कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली और बिना भोजन पानी के 265 घंटे के उपवास के बाद उनका निधन हो गया।

आरती के अनुसार, 13 सितंबर को थिलीपन ने भारत सरकार के सामने पांच मांगें रखीं और जुलाई 1987 में भारत-श्रीलंका समझौते के बाद तमिल ईलम लोगों से किए गए अपने वादे का सम्मान करने का आग्रह किया। इस समझौते का उद्देश्य प्रांतीय परिषद बनाना और उत्तरी व पूर्वी प्रांतों को मिलाकर एकल प्रशासनिक इकाई बनाना था। यह सब ईलम तमिलों के लक्ष्य के विपरीत था। 

समझौते का उद्देश्य ईलम तमिल लोगों को सुरक्षा और समाधान प्रदान करना था। लेकिन इसने तमिलों के सशस्त्र संघर्ष को कमजोर करने का काम किया। ईलम तमिलों को 72 घंटों के अंदर भारतीय शांति सेना के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए कहा गया। जब समझौता अपने उद्देश्यों से भटकने लगा तो लिट्टे ने 1987 के भारत-लंका समझौते की निंदा करते हुए ऐलान किया कि एक स्वतंत्र राज्य ही तमिलों की आकांक्षाओं को पूरा कर सकता है। 

इसके विरोध में थिलीपन ने भूख हड़ताल शुरू की और भारत सरकार के सामने पांच मांगें रखीं। इनमें आतंकवाद निरोधक अधिनियम के तहत हिरासत में लिए गए सभी तमिलों की रिहाई, पुनर्वास की आड़ में तमिल मातृभूमि पर सिंहलियों द्वारा उपनिवेशीकरण को रोकना, अंतरिम सरकार के गठन तक सभी पुनर्वास को रोकना, श्रीलंका सरकार को उत्तर व पूर्वी प्रांतों में नए पुलिस स्टेशन और सेना के शिविर खोलने से रोकना और श्रीलंकाई सेना व पुलिस को तमिलों के गांवों में हटाना शामिल था। 

आरती ने बताया कि थिलीपन के उसी अधूरे काम की याद दिलाने के लिए यहां टोरंटो में यह प्रदर्शन आयोजित किया जा रहा है। आरती से जब श्रीलंका के नए राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके के चुनाव के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि वे सभी एक जैसे  ही हैं।

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