विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में चुनावी उत्सव अपने अंत से बस एक कदम की दूरी पर है। करीब डेढ़ महीने चली मतदान प्रक्रिया 1 जून को संपन्न हो गई और मंगलवार, 4 जून को नतीजे आने वाले हैं। लोकतंत्र में चुनाव नतीजों का दिन सबसे अहम होता है क्योंकि यही दिन जनादेश को स्वीकार करने का दिन भी होता है। महीनों के वाद-विवाद, आरोप-प्रत्यारोप, पक्ष-विपक्ष और राजनीतिक मनमुटाव का इस दिन एक बार फिर से कुछ समय से लिए अंत हो जाता है। और इसी अंत के साथ शुरू हो जाती है जनादेश की समीक्षा। यानी खोने-पाने की गणना, ईमानदारी से अपने आकलन की पारंपरिक प्रक्रिया और यह मान लेने की राजनीतिक नियति कि जो जनादेश मिला है वही मान लेना है। हार या फिर जीत। क्योंकि लोकतंत्र में जनादेश ईश्वर का आदेश है और वह सर्वोपरि होता है।
भारत में चुनाव के पहले से ही सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी की हवा रही। चुनाव से पहले भी विश्व की इस सबसे बड़ी पार्टी को लेकर देशवासियों में रुख-रुझान था। पार्टी ने भी बड़ी आक्रामकता और सियासी युक्ति के साथ यह दर्शाने की कोशिश की कि वही इस बार भी चुनाव जीतने वाली है। पूरी की पूरी पार्टी अपने नायक नरेन्द्र मोदी के नाम पर उत्साहित होकर चुनाव की तैयारी करती रही और चुनाव लड़ी। कार्यकर्ताओं में भी बस उनके 'विश्वनायक' मोदी की धुन सवार थी और अब भी है। अलबत्ता चुनाव से कुछ पहले विपक्ष की करीब 20 से अधिक छोटी-बड़ी और प्रमुख पार्टियों ने सत्ता-परिवर्तन के लिए इंडिया गठबंधन बनाया। इसका कुछ असर भी दिखा। सत्ताधारी भाजपा में भी, भले ही उसने स्वीकार नहीं किया। अब चूंकि मतदान पूरा हो चुका है और चुनाव के नतीजे 4 जून को आने वाले हैं तो लग रहा है कि इंडिया गठबंधन सीटों की संख्या और हार-जीत के अंतर पर असर तो अवश्य डालेगा। खैर, नतीजों से सब साफ हो जाएगा।
वर्ष 2024 के इस चुनाव की कई खासियतें रही हैं। पहली तो यही कि संभवतः यह भारत का पहला आम चुनाव है जिसमें हिंसा अथवा चुनाव से जुड़ी कोई अप्रिय घटना नहीं हुई। प्राय: हिंसामुक्त रहा यह चुनाव। दूसरी खासियत इसका बहिष्कार मुक्त होना भी है। खासतौर से उत्तर भारत के आतंकग्रस्त राज्य जम्मू-कश्मीर के लिए यह चुनाव ऐतिहासिक रहा है। 2024 का लोकसभा चुनाव जम्मू-कश्मीर के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण भी रहा। अनुच्छेद 370 हटने के बाद पहली बार हुए चुनाव में कई बदलाव सामने आए। मतदान प्रतिशत ने रिकॉर्ड बनाया तो आम तौर पर चुनावी प्रक्रिया से दूर रहने वाले आतंकी परिवारों, अलगाववादियों और प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी के सदस्यों ने भी मतदान में हिस्सा लिया। कहीं भी शून्य वोटिंग नहीं हुई। शांतिपूर्ण चुनाव संपन्न कराने के लिए भारत का चुनाव आयोग साधुवाद का पात्र है।
भारत के आम चुनाव के रंग और चर्चे इस बार सीमाओं के पार भी कुछ अधिक रहे। अमेरिका से लेकर ब्रिटेन तक के समाज में भारत के चुनावी रंग देखे गये। अमेरिका में तो महीनों पहले से सत्ताधारी भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी को तीसरी बार नेतृत्व सौंपने के पक्ष में कई आयोजन हुए, कार रैलियां हुईं। बैनर-पोस्टर और होर्डिंग भी सत्ताधारी पार्टी के पक्ष हवा बना रहे थे। प्रवासी भारतीय 'मोदी की वापसी' और 'अबकी बार 400 पार' के नारों क साथ सड़कों पर दिखे। भारत से लेकर अमेरिका और यूके तक बिखरे चुनावी रंगों ने यकीनन भारतीय लोकतंत्र की जीवंतता का अहसास कराया। वही जीवंतता जिसकी कुछ दिन पहले अमेरिका ने खुले दिल से तारीफ की थी।
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