भारत में तेजी से बढ़ती क्विक-कॉमर्स कंपनियों Zomato, Swiggy और Zepto के खिलाफ एक एंटीट्रस्ट केस दर्ज किया गया है। उपभोक्ता उत्पाद वितरकों के संगठन All India Consumer Products Distributors Federation (AICPDF) ने इन कंपनियों पर गहरी छूट और अनुचित मूल्य निर्धारण का आरोप लगाया है। भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग इस मामले की समीक्षा कर सकता है और आवश्यक होने पर विस्तृत जांच का आदेश दे सकता है।
भारतीय ई-कॉमर्स सेक्टर पहले भी जांच के दायरे में रहा है। पिछले साल एक एंटीट्रस्ट जांच में Amazon और Flipkart पर चुनिंदा विक्रेताओं को प्राथमिकता देने और शिकारी मूल्य निर्धारण अपनाने का आरोप लगा था। अब, क्विक-कॉमर्स सेक्टर पर भी इसी तरह के आरोप लग रहे हैं, जहां कंपनियां 10 मिनट के भीतर उपभोक्ता उत्पादों की डिलीवरी कर रही हैं, जिससे छोटे खुदरा विक्रेताओं को नुकसान हो रहा है।
फेडरेशन के अनुसार, Blinkit, Swiggy Instamart और Zepto की भारी छूट की रणनीति ने बाजार में असंतुलन पैदा कर दिया है। संगठन ने 25 उत्पादों की ऑनलाइन और ऑफलाइन कीमतों की तुलना की और पाया कि छोटे दुकानदार जिन कीमतों पर सामान खरीदते हैं, उससे भी कम कीमतों पर ये प्लेटफॉर्म ग्राहकों को उत्पाद उपलब्ध करा रहे हैं। उदाहरण के लिए, एक Nescafe कॉफी जार जो खुदरा विक्रेताओं को ₹622 में मिलता है, वही Zepto पर ₹514 में उपलब्ध है।
इस मामले पर Zomato और Swiggy ने कोई टिप्पणी नहीं की, जबकि Zepto ने प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया। यदि आयोग इस शिकायत को स्वीकार करता है, तो यह जांच कई महीनों तक चल सकती है और इन कंपनियों से उनके व्यावसायिक मॉडल पर सफाई मांगी जा सकती है। यदि आरोप सही पाए गए, तो इन कंपनियों के लिए कड़े नियामक बदलाव लागू किए जा सकते हैं।
क्विक-कॉमर्स के बढ़ते प्रभाव के कारण भारत के पारंपरिक खुदरा विक्रेता प्रभावित हो रहे हैं। एक सर्वे के अनुसार, 46% ग्राहकों ने छोटे दुकानों से खरीदारी कम कर दी है, जबकि 36% सुपरमार्केट से शॉपिंग घटा चुके हैं। इस बदलाव को देखते हुए, भारत के सबसे धनी उद्योगपति मुकेश अंबानी भी इस बाजार में प्रवेश करने की तैयारी कर रहे हैं, जबकि Amazon और Flipkart ने भी तेज डिलीवरी सेवाएं शुरू की हैं।
Datum Intelligence के मुताबिक, Blinkit के पास भारतीय क्विक-कॉमर्स मार्केट में 40% हिस्सेदारी है, जबकि Zepto और Swiggy Instamart क्रमशः 29% और 26% बाजार हिस्सेदारी रखते हैं। यह मामला इन कंपनियों के लिए एक बड़ा परीक्षण साबित हो सकता है और आने वाले समय में भारत के ई-कॉमर्स नियमों को प्रभावित कर सकता है।
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