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भारत-यूके में मुक्त व्यापार समझौते पर अंतिम दौर की वार्ता पर टिकी नजरें

अधिकारियों ने बताया कि दोनों देशों के अधिकारियों के बीच 13 दौर की लंबी बैठकें पहले ही हो चुकी हैं। कुछ विवादास्पद मामलों को छोड़कर लगभग सभी मामलों को सुलझा लिया गया है। आगामी दौर की बातचीत तकनीकी मुद्दों और संवेदनशीलता की वजह से सबसे मुश्किल होने की संभावना है।

भारत और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री आपसी संबंधों की मजबूती पर काफी जोर देते रहे हैं। / facebook @Narendra Modi


भारत और ब्रिटेन के बीच मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के लिए 14वें दौर की बातचीत आखिरी दौर में है। 10 जनवरी से इस पर अंतिम दौर की वार्ता शुरू होगी। इस दौरान गतिरोध वाले मसलों पर सहमति बनाने पर चर्चा होगी। 

मामले की जानकारी रखने वाले तीन अधिकारियों के हवाले से आई खबरों में कहा गया है कि वार्ता के दौरान व्यापार, स्कॉच व्हिस्की, ऑटोमोबाइल, कृषि उत्पाद, फार्मास्यूटिकल्स के अलावा द्विपक्षीय निवेश पर एक अलग से समझौते पर विचार किया जा सकता है। 

अधिकारियों ने बताया कि दोनों देशों के अधिकारियों के बीच 13 दौर की लंबी बैठकें पहले ही हो चुकी हैं। कुछ विवादास्पद मामलों को छोड़कर लगभग सभी मामलों को सुलझा लिया गया है। आगामी दौर की बातचीत तकनीकी मुद्दों और संवेदनशीलता की वजह से सबसे मुश्किल होने की संभावना है। उम्मीद है कि गतिरोध की स्थिति में दोनों पक्षों के राजनीतिक नेतृत्व हस्तक्षेप करेंगे। 

एक अधिकारी ने बताया कि व्यावसायिक गतिशीलता वार्ता के प्रमुख मुद्दों मे से एक है। भारत ब्रिटेन में अपने पेशेवरों की आसान आवाजाही चाहता है और उदार आव्रजन नियमों की मांग कर रहा है। छोटी अवधि की ये यात्राएं दोनों देशों के बीच व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए है। यह लंबे समय तक प्रवासन से संबंधित नहीं हैं।

यूके चाहता है कि डेयरी उत्पादों, इलेक्ट्रिक वाहनों सहित ऑटोमोबाइल और स्कॉच व्हिस्की जैसी वस्तुओं को भारतीय बाजार में अधिक पहुंच मिले। भारत में ऑटोमोबाइल (100%) और व्हिस्की (150%) पर उच्च आयात शुल्क है। भारतीय उद्योग ने ऑटोमोबाइल और व्हिस्की में टैरिफ काफी हद तक कम करने की इच्छा व्यक्त की है, बशर्ते लंदन भी वैसा ही करे। 

बता दें कि भारत-ब्रिटेन एफटीए वार्ता 13 जनवरी 2022 को शुरू हुई थी। इस दौरान कुल 26 अध्यायों में से 24 पर परस्पर सहमति बन चुकी है। दोनों देश बाकी अध्यायों के भी कई बिंदुओं पर सहमत हैं। 

हालांकि ब्रिटेन में नेतृत्व परिवर्तन और बाद में लंदन व अन्य ब्रिटिश शहरों में खालिस्तानियों के हिंसक विरोध प्रदर्शन को लेकर मतभेद की वजह से बातचीत की गति धीमी हो गई थी। अब दोनों देश एक व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते पर काम कर रहे हैं। 

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