यह जुलाई 2009 की बात है। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह चुनाव प्रचार के लिए फिरोजपुर जिले के जलालाबाद आये हुए थे। मुझे उनकी रैली को कवर करने का काम सौंपा गया था। चूंकि मैं उनके साथ लंबे समय से बातचीत कर रहा था, इसलिए मैंने आयोजकों से उनके साथ एक इंटरव्यू के लिए अनुरोध किया था। अनुरोध स्वीकार कर लिया गया।
इससे पहले कि वह रैली को संबोधित करने जाते मुझे मुख्य मंच के एक तरफ एक अस्थायी तंबू में ले जाया गया जहां साक्षात्कार की सुविधा के लिए कुछ कुर्सियों और एक मेज की व्यवस्था की गई थी। जब डॉ. मनमोहन सिंह आये तो मैं पहले से ही तंबू में बैठा हुआ था। अंदर आते ही उनके पहले शब्द थे- हैलो प्रभजोत, कैसे हैं आप?
जिस तरह से उन्होंने मेरा स्वागत किया उससे मुझे सुखद आश्चर्य हुआ। डॉ. सिंह से अपना नाम सुनकर मैं अभिभूत हो गया क्योंकि उन्हें तब भी मेरा नाम याद रहा। वर्ष 2004 में उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद मैं उनसे नहीं मिला था। एक जमीन से जुड़े व्यक्ति, उनकी सादगी और दूसरों के प्रति उनके सम्मान ने मुझे हमेशा प्रभावित किया। खैर मैंने कहा- सर, मैं ठीक हूं। और पूछा- आप कैसे हैं, आपके हृदय की अभी-अभी सर्जरी हुई है।
डॉ. सिंह ने कहा- बहुत अच्छा हुआ। मैं ठीक हूँ। मिस्टर दुआ कैसे हैं? द ट्रिब्यून कैसा काम कर रहा है? इंटरव्यू शुरू होने से पहले उनके ये अगले प्रश्न थे। श्री एच के दुआ उस समय द ट्रिब्यून समूह के प्रधान संपादक थे।
डॉ. मनमोहन सिंह के श्री एच.के. सहित द ट्रिब्यून के सभी संपादकों और उनके पूर्ववर्ती श्री हरि जयसिंह के साथ सबसे अच्छे संबंध थे। रैली को कवर करने के बाद जब मैं चंडीगढ़ लौटा तो सबसे पहले श्री दुआ ने मुझसे पूछा कि क्या मैं उनसे मिल सका?
मैंने कहा- जी सर, मैंने उनका एक छोटा इंटरव्यू लिया है क्योंकि उन्हें कुछ अन्य चुनावी रैलियों में जाना था। फिर मैं उस इंटरव्यू को फाइल करने में जुट गया। मुझे पता था कि डॉ. सिंह अगली सुबह द ट्रिब्यून और उसके साथ मेरे उस इंटरव्यू की तलाश करेंगे।
डॉ. मनमोहन सिंह को अक्सर यह कहते हुए उद्धृत किया जाता था कि वह सुबह की चाय के साथ सबसे पहली चीज ट्रिब्यून का अंक देखना चाहते थे। द ट्रिब्यून के अलावा उन्हें चंडीगढ़ से प्यार था जहां उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में काम किया। पंजाब विश्वविद्यालय परिसर के करीब ही उनका एक घर था।
पंजाब विश्वविद्यालय के अलावा उन्हें ग्रामीण विकास से संबंधित विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए CRRID में रहना पसंद था। वह CRRID के तत्कालीन निदेशक डॉ रच्छपाल मल्होत्रा के करीबी थे, जिन्होंने पहले पंजाब विश्वविद्यालय में भी काम किया था।
तब डॉ. सिंह ने चंडीगढ़ में सेक्टर 19 स्थित सेंटर फॉर रिसर्च इन रूरल एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट (CRRID) का दौरा किया। मुझे हमेशा उनके कार्यक्रमों को कवर करने और उनका इंटरव्यू लेने का दायित्व दिया जाता था।
वर्ष 2004 में डॉ. सिंह भारत के प्रधानमंत्री बने। हमारी बातचीत जारी रही। बेशक, वह राजनेताओं की खांटी शैली वाले शख्स नहीं थे। वह एक शिक्षाविद्, एक विश्व स्तरीय अर्थशास्त्री थे, जिन्होंने 10 वर्षों तक या लगातार दो कार्यकालों तक देश का नेतृत्व किया। उन्होंने गठबंधन सरकार का नेतृत्व करके अपने राजनीतिक कौशल का प्रदर्शन किया और ऐतिहासिक श्री फतेहगढ़ साहिब से असंतुष्ट अकाली सांसद एसएस लिबरा की बदौलत अविश्वास प्रस्ताव से बच गए।
उनके प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद मेरा मिलना-जुलना काफी कम हो गया था। जलालाबाद के अलावा मुझे उनसे बातचीत करने का एक और मौका तब मिला जब वह हिमाचल प्रदेश के पांवटा साहिब आये। वह चुनाव प्रचार अभियान पर थे।
हालांकि डॉ. मनमोहन सिंह कभी भी भारतीय संसद के निचले सदन यानी लोकसभा के सदस्य नहीं बन सके लेकिन उन्होंने तीन दशक से अधिक समय के कार्यकाल के बाद इस साल अप्रैल में सांसद के रूप में सेवानिवृत्त होने तक ऊपरी सदन राज्यसभा का प्रतिनिधित्व किया।
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