भारतीय एग्री-टेक कंपनी ग्रो इंडिगो (Grow Indigo) को ब्रिटिश इंटरनेशनल इन्वेस्टमेंट (BII) से निवेश के तौर पर 1 करोड़ डॉलर मिले हैं। ये पैसा कार्बन फार्मिंग के काम को बढ़ाने में लगाया जाएगा। इससे भारत में खेती को टिकाऊ बनाया जाएगा और किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी।
कृषि भारत के ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का 14 प्रतिशत योगदान करती है। ग्रो इंडिगो मिट्टी में कार्बन कैप्चर करने और उत्सर्जन को कम करने के लिए कार्बन फार्मिंग को बढ़ावा देता है। ये लोग 'रीजेनरेटिव' तरीके से खेती करने को प्रमोट कर रहे हैं। जैसे कि प्रत्यक्ष बीज लगाए गए चावल और बिना जुताई की कृषि मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करती हैं। पानी की बचत करती हैं। श्रम को कम करती हैं। इससे महिला किसानों को लाभ होता है।
BII ने LinkedIn पर अपनी साझेदारी के बारे में लिखा है, 'दुनियाभर में खेती, कार्बन के उत्सर्जन का एक बड़ा कारण है। भारत में तो यह 14% है, यानी हर साल 400 मिलियन टन CO₂ उत्सर्जन। यह जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में से एक है।' उन्होंने आगे लिखा, 'इसीलिए हमने ग्रो इंडिगो में 1 करोड़ डॉलर का निवेश किया है। ये छोटे किसानों के लिए टिकाऊ खेती के काम में सबसे आगे है। हम मिलकर भारत के किसानों के लिए एक बेहतर और समृद्ध भविष्य बना रहे हैं।'
ग्रो इंडिगो कार्बन उत्सर्जन कम करके कार्बन क्रेडिट बनाती है और उन्हें कॉरपोरेशनों को बेचती है, जो अपनी 'सस्टेनेबिलिटी' (पर्यावरण संरक्षण) की योजनाओं को पूरा करना चाहती हैं। अधिकतर पैसा सीधे किसानों को मिलता है। मॉनिटरिंग और वेरिफिकेशन से सब पारदर्शी रहता है।
कंपनी का लक्ष्य है कि 2030 तक कार्बन फार्मिंग भारत का एक बड़ा कृषि निर्यात बन जाए, जिससे छोटे किसानों को फायदा मिल सकें। फिलहाल कंपनी चार कार्बन प्रोजेक्ट्स चला रही है और जल्द ही पहला कार्बन क्रेडिट मिलने की उम्मीद है। उनका प्लान है कि लाखों किसानों को इससे जोड़ा जाए।
Mahyco और Indigo Ag ने मिलकर ग्रो इंडिगो बनाई है। ये 16 राज्यों में 2000 से अधिक पार्टनर्स और 600 से अधिक फील्ड स्टाफ के साथ काम करती है। ये किसानों को कार्बन मार्केट से जोड़ने का काम करती है। कार्बन क्रेडिट प्रदूषण को कम करने का एक तरीका है। हर कार्बन क्रेडिट, एक टन कार्बन डाइऑक्साइड (या दूसरे ग्रीनहाउस गैसों के बराबर) के उत्सर्जन को कम करने या रोकने का प्रतिनिधित्व करता है।
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