हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के करीब दो दर्जन फैकल्टी मेंबर, एफिलिएट्स और जलवायु परोपकारियों के एक दल ने हाल ही में अहमदाबाद जाकर भारतीय समुदायों द्वारा भीषण गर्मी से निपटने के तौर-तरीकों का अध्ययन किया।
यह दो दिवसीय यात्रा मित्तल इंस्टीट्यूट की तरफ से नई दिल्ली में इंडिया 2047: बिल्डिंग ए क्लाइमेट रेजिलिएंट फ्यूचर सम्मेलन से पहले आयोजित की गई। इस यात्रा का उद्देश्य यह जानकारी हासिल करना था कि भारतीय लोग किस तरह से चरम गर्मी का मुकाबला करते हैं।
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यात्रा की शुरुआत सूर्योदय के समय ऐतिहासिक दादा हरी बावड़ी भ्रमण से हुई। इसकी अगुआई फोटोग्राफर व लेखक क्लाउडियो कैम्बन ने की जिन्होंने भारत की बावड़ियों पर व्यापक दस्तावेज तैयार किए हैं। बावड़ी ने जलवायु लचीलेपन में पारंपरिक वास्तुकला का महत्व समझाया।
इसके बाद प्रतिनिधिमंडल ने अखिल भारतीय आपदा न्यूनीकरण संस्थान के एक कार्यक्रम में अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों जैसे कि झाड़ू निर्माताओं, मोचियों और सड़क पर सामान बेचने वालों से बातचीत की। यह चर्चा भीषण गर्मी के शारीरिक, मानसिक और आर्थिक प्रभावों पर केंद्रित रही।
दल ने सीईपीटी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर दिलीप मावलंकर से अहमदाबाद के अग्रणी 2013 हीट एक्शन प्लान के बारे में जाना। प्रोफेसर राजन रावल के साथ सेंटर फॉर एडवांस्ड रिसर्च इन बिल्डिंग साइंस एंड एनर्जी (कार्ब्स) की हीट लैब का भी दौरा किया।
यात्रा के दूसरे दिन प्रतिनिधिमंडल ने स्वरोजगार महिला संघ (सेवा) का दौरा करके अनौपचारिक कामगार महिलाओं पर गर्मी के प्रभाव का अध्ययन किया। हार्वर्ड के प्रोफेसर सच्चित बलसरी और कैरोलिन बकी ने कम्युनिटी एचएटीएस को लेकर अपना विजन शेयर किया।
कम्युनिटी एचएटीएस विभिन्न कार्य वातावरणों में गर्मी का सामना करना वाली महिलाओं पर केंद्रित है। आखिर में यात्रा महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम में समाप्त हुई जहां सार्वजनिक सेवा एवं सामाजिक लचीलेपन पर महत्वपूर्ण परिप्रेक्ष्य प्राप्त हुआ।
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