भारत में हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के रहने वाले रॉबिन हांडा और खुशप्रीत सिंह उन 104 भारतीयों में शामिल हैं, जिन्हें अमेरिका ने हाल ही में डिपोर्ट किया है। उनके परिजन भले ही उनके सुरक्षित लौटने से राहत महसूस कर रहे हैं, लेकिन उन्हें डंकी रूट से अमेरिका पहुंचाने में लाखों रुपये बर्बाद होने को लेकर परेशान भी हैं।
इस्माइलाबाद के रहने वाले रॉबिन हांडा ने कंप्यूटर इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। उन्होंने बताया कि वे लगभग सात महीने पहले अमेरिका जाने के लिए निकले थे। लोकल इमीग्रेशन एजेंट वरिंदर सिंह उर्फ गोनी ने वादा किया था कि वह एक महीने में अमेरिका पहुंचा देगा, लेकिन सात महीने लग गए। इस दौरान कई जगह रोका गया, बिना खाए-पीए रहना पड़ा। समुद्र में नाव से और सड़कों पर पैदल यात्रा करनी पड़ी। पुलिस ने हमारे पैसे छीन लिए। माफिया ने भी परेशान किया।
रॉबिन ने बताया कि अमेरिका पहुंचने पर उन्होंने यूएस बॉर्डर पेट्रोल (USBP) के सामने सरेंडर कर दिया। उन्हें डिटेंशन कैंप में रखा गया, जहां उनके साथ अपराधियों जैसा बर्ताव किया गया। रॉबिन के अनुसार, उनके माता-पिता ने उन्हें अमेरिका भेजने के लिए लगभग 43 लाख रुपये खर्च किए, जो जमीन बेचकर जुटाए थे। मुझे लगता था कि अमेरिका जाकर अच्छी कमाई होगी लेकिन अब लगता है कि मेरा फैसला गलत था।
रॉबिन ने बताया कि उन्हें यह पता भी नहीं था कि उन्हें डिपोर्ट किया जा रहा है। रात के समय हमें कैंप से निकाला गया। कहा गया कि दूसरे कैंप में भेजा जा रहा है लेकिन असल में हमारे हाथ-पैरों में हथकड़ी बेड़ियां डालकर सैन्य विमान में बिठाकर भारत भेज दिया गया।
रॉबिन के पिता रविंदर सिंह ने कहा कि हमने लगभग 45 लाख रुपये खर्च किए थे लेकिन मेरे बेटे को सात महीने परेशानी झेलनी पड़ी। एजेंट वरिंदर सिंह और उसके साथी मुझसे और पैसे मांग रहे थे। धमकी दे रहे थे कि अगर पैसे नहीं दिए तो मेरे बेटे को परेशान करेंगे। हम सरकार से मांग करते हैं कि इन एजेंटों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
इसी तरह खुशप्रीत सिंह कुरुक्षेत्र 8 अगस्त 2024 को अमेरिका के लिए निकले थे और 22 जनवरी 2025 को मेक्सिको के रास्ते अमेरिका पहुंचे। कुरुक्षेत्र जिले के चमू कलां गांव के रहने वाले खुशप्रीत ने बताया कि मैंने मुंबई से गुयाना के लिए फ्लाइट ली और फिर डंकी रूट के जरिए मेक्सिको पहुंचा। एजेंट ने कहा था कि हवाई मार्ग से जाएंगे, लेकिन हमें कई कठिन रास्तों से गुजरना पड़ा। पनामा का जंगल और समुद्र पार करना पड़ा। कई दिन बिना कुछ खाए-पीए गुजारा।
आठवीं तक पढ़े खुशप्रीत जैसे तैसे अमेरिका पहुंचे लेकिन 12 दिन बाद ही डिपोर्ट कर दिए गए। उन्होंने कहा कि मुझे भेजने के लिए माता-पिता ने 45 लाख रुपये उधार लेकर खर्च किए थे। अगर ये पैसे वापस मिल जाएं तो हम यहां पर भैंस खरीदकर दूध बेचने का काम शुरू करेंगे। उन्होंने कहा कि मैं किसी को भी इस रास्ते से अमेरिका जाने की सलाह नहीं दूंगा। बेहतर यही होगा कि यहीं काम करें।
खुशप्रीत के पिता जसवंत सिंह ने कहा कि हमने खुशी-खुशी अपने बेटे को भेजा था लेकिन वह डिपोर्ट होकर लौट आया। हमने रिश्तेदारों से और उधारी के पैसों से 45 लाख रुपये जुटाए थे लेकिन एजेंटों ने हमें धोखा दिया। रॉबिन और खुशप्रीत के परिजनों ने सरकार से मांग की है कि ऐसे धोखेबाज इमीग्रेशन एजेंटों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए और उनका पैसा वापस दिलाया जाए।
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