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दोहरी नागरिकता पर दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा- भारत की संसद ही ले सकती है इस पर फैसला

यह PIL प्रवासी लीगल सेल (PLC) द्वारा दायर की गई थी। कोर्ट ने कहा, 'यह अदालतों का विषय नहीं है। यह संसद के लिए है, हम कानून नहीं बना सकते। कृपया वहां जाइए। यह मुद्दा राष्ट्रीय सुरक्षा पर व्यापक प्रभाव डालता है, जो अदालतों द्वारा अनुमति से देने से परे है।'

दिल्ली हाई कोर्ट ने जनहित याचिका (PIL) पर विचार करने से इंकार कर दिया। / Unsplash

दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को भारतीय प्रवासियों के लिए दोहरी नागरिकता की अनुमति देने की एक जनहित याचिका (PIL) पर विचार करने से इंकार कर दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि इस पर निर्णय लेना संसद का काम है, न कि अदालतों का। कोर्ट ने कहा, 'यह अदालतों का विषय नहीं है। यह संसद के लिए है, हम कानून नहीं बना सकते। कृपया वहां जाइए।'

यह PIL प्रवासी लीगल सेल (PLC) द्वारा दायर की गई थी। यह एक गैर-सरकारी संगठन है जो प्रवासी समुदाय को कानून की शक्ति से सशक्त बनाने के लिए काम करता है। याचिका में तर्क दिया गया था कि वर्तमान भारतीय कानून के तहत, किसी व्यक्ति की भारतीय नागरिकता उस स्थिति में अपने आप समाप्त हो जाती है जब वह विदेशी पासपोर्ट प्राप्त करता है। याचिका में कहा गया था कि दोहरी नागरिकता के अधिकार प्रदान करके भारत अपने प्रवासी समुदाय की विशेषज्ञता और पूंजी का उपयोग इनोवेशन को बढ़ावा देने, रोजगार के अवसर पैदा करने और आर्थिक प्रगति को मजबूत करने के लिए कर सकता है।

अदालत ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 9 और नागरिकता अधिनियम की धारा 9 द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों पर रोशनी डाली, जो दोहरी नागरिकता को प्रतिबंधित करते हैं। उक्त प्रावधानों में कहा गया है कि कोई व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं रहेगा यदि वह स्वेच्छा से किसी अन्य देश की नागरिकता प्राप्त करता है।

दिल्ली उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायाधीश तुषार राव गेदेला की खंडपीठ ने इस बात पर जोर दिया कि इस तरह के अनुरोध को स्वीकार करना अदालत के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। हम इस पर फैसला लेने के लिए नहीं कह सकते। यह मुद्दा राष्ट्रीय सुरक्षा पर व्यापक प्रभाव डालता है, जो अदालतों द्वारा अनुमति से देने से परे है। पीठ ने इस बात पर जोर देते हुए कि इस मामले को संसद द्वारा संबोधित किया जाना चाहिए।

अदालत ने कहा कि अभी संसद सत्र चल रहा है। कोर्ट ने सुझाव दिया कि इस मुद्दे को संसद सदस्य के माध्यम से उठाया जा सकता है। नतीजतन, याचिका वापस ले ली गई। PLC के तर्क के अनुसार, यदि दोहरी नागरिकता प्रदान की जाती है तो भारतीय प्रवासी समुदाय निवेश, व्यापार, पर्यटन और धर्मार्थ प्रयासों के माध्यम से भारत की प्रगति में बहुत मदद कर सकता है। संगठन ने तर्क दिया कि दोहरी नागरिकता के अधिकारों से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत गारंटीकृत सांस्कृतिक अधिकारों में बाधा डालता है और प्रवासी समुदाय को भारत में निवेश करने या उद्यमशीलता के कार्यों में शामिल होने से रोकता है।

याचिका में यह भी बताया गया है कि लगभग 130 देश, जिनमें कई विकसित और विकासशील राष्ट्र शामिल हैं, दोहरी नागरिकता की अनुमति देते हैं। अदालत के फैसले से दोहरी नागरिकता को लेकर चल रही चर्चा पर असर पड़ता है। भारतीय प्रवासी समुदाय को इस मुद्दे को हल करने के लिए कानून निर्माताओं का इंतजार करना होगा।

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