कनाडा में 1984 के सिख विरोधी दंगों को 'नरसंहार' घोषित कराने की कोशिश नाकाम रही। इस प्रस्ताव का विरोध सत्ताधारी लिबरल और विपक्षी कंजर्वेटिव दोनों ही पार्टियों के सांसदों ने किया। हालांकि इससे कनाडा की सत्ताधारी लिबरल पार्टी में भी फ़ूट पड़ गई है। NDP के नेता जगमीत सिंह ने घोषणा की थी कि वे हाउस ऑफ कॉमन्स में प्रस्ताव लाएंगे। शुक्रवार को सुरे-न्यूटन से लिबरल सांसद सुख धालीवाल ने ये प्रस्ताव पेश किया था।
प्रस्ताव पेश करते समय कई सांसदों ने, लिबरल पार्टी के चंद्र आर्य समेत 'नहीं' कहा। आर्य ओंटारियो के नीपियन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। आर्य ने बाद में अपने ही पार्टी के साथी सुख धालीवाल पर संसद भवन से बाहर आते वक्त उन्हें धमकाने का आरोप लगाया। जगमीत सिंह चाहते थे कि इस मामले में संसद दुनियाभर की सरकारों से आगे बढ़कर इस दंगे को नरसंहार घोषित करे। इस मकसद से उन्होंने एक हस्ताक्षर अभियान भी चलाया था और संसद में याचिका भी दायर की थी।
प्रस्ताव के विरोध पर प्रतिक्रिया देते हुए, सिंह ने कहा कि लिबरल और कंजर्वेटिव पार्टियों ने सिख समुदाय का साथ छोड़ दिया और मिलकर इस प्रस्ताव को रोकने की कोशिश की। उन्होंने कहा, 'ये बेहद निराशाजनक है, लेकिन ये आखिर नहीं है।' उन्होंने कहा कि वे इस असफलता से सीधे निपटेंगे और आगे बढ़ने के लिए अपनी कोशिशें दोगुनी कर देंगे।
चंद्र आर्य ने 'पॉइंट ऑफ ऑर्डर' उठाया और धालीवाल के साथ ही एक और अज्ञात सांसद पर लॉबी में उन्हें घेरने का आरोप लगाया। आर्य ने यूट्यूब पर भी अपनी बात रखते हुए कहा, 'एक सांसद के तौर पर मुझे सदन में अपनी राय और विचार खुलकर रखने का अधिकार है और मुझे अपने साथी सदस्यों के किसी भी शब्द या हरकत से धमकी महसूस नहीं करनी चाहिए।'
धालीवाल ने बाद में X (पहले Twitter) पर अपने प्रस्ताव के बारे में लिखा, 'दुख की बात है कि कुछ कंजर्वेटिव सांसदों और एक लिबरल सांसद ने इसका विरोध किया।' सुख धालीवाल और चंद्र आर्य दोनों ही कनाडा में भारतीय समुदाय के मुद्दों को उठाते रहे हैं। आर्य ने ही कनाडा में हर साल हिंदू महीने के जश्न को मंजूरी दिलाने का श्रेय लिया था। आर्य ने कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को भी याद दिलाया था कि 'हिंदुओं के पवित्र स्वास्तिक चिह्न' और हिटलर के नफरत के प्रतीक 'हॅकेनक्रुज' में बहुत बड़ा अंतर है।
2022 में ओटावा में हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान जस्टिन ट्रूडो ने ट्रांसपोर्ट प्रदर्शनकारियों द्वारा लिए गए हुक वाले क्रॉस को स्वास्तिक कहकर संदर्भित किया था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, आर्य हिंदू समुदाय के मुखर समर्थक रहे हैं। वे लगातार 'खालिस्तानी उग्रवादियों' के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं।
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