छह मार्च, गेब्रियल गार्सिया मार्केज का जन्मदिन है। इस नोबेल पुरस्कार विजेता लेखक को मैंने पहली बार कॉलेज के दिनों में जाना। हुआ यूं कि मेरी एक बहुत अच्छी दोस्त थी, उनका और मार्केज का बर्थडे एक ही दिन पड़ता है। वह इसे लेकर बड़ा दिखावा करती थी, सबको बताती फिरती थी। आधे से ज्यादा दोस्तों को उन्होंने इस स्पेनिश लेखक के बारे में बताया होगा। कमाल की बात ये है कि उस दोस्त ने तो फ्रेंच में डिप्लोमा किया था, पर न जाने कहां से उन्हें उस वक्त स्पैनिश मार्केज के बारे में पता था।
मैं बिहार के सिवान जिले के बसंतपुर ब्लॉक से पुणे पढ़ने गई थी। मैंने तो तो सिर्फ प्रेमचंद, रेणु, हजारी प्रसाद द्विवेदी, सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, अमृता प्रीतम…इनके कुछ किताबें-कहानियां ही पढ़ी थीं। अंग्रेजी में भी बस रस्किन बॉन्ड की कुछ कहानियां पढ़ी थीं। उपन्यास? कोई नहीं पढ़ा था। ऐसे में मार्केज पढ़ते वक्त मैं ये सोचकर दंग रह गई कि भारत के अलावा भी दुनिया में ऐसी जगहें हैं जहां भूत-प्रेतों में यकीन करते हैं।
खैर, धीरज कम था और पात्रों के नाम याद रखने में दिक्कत होती थी, इसलिए किताब अधूरी रह गई और दोस्त को वापस कर दी। अमेरिका आने के बाद जब लाइब्रेरी में कुछ दिनों काम किया तब इस किताब को देखकर मन में फिर से पढ़ने की इच्छा जगी। किताब घर ले आई। लेकिन इस बार भी इतनी बोझिल -पेचीदा और पात्रों के नाम की मिलावट ने इसे पूरा नहीं होने दिया और किताब लौटने का दिन आ गया।
एक दिन प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी गई, तो वहां इस किताब पर चर्चा का बैनर लगा था नोटिस बोर्ड पर। फिर मन में उसी किताब का ख्याल आया। इस बार सोचा कि किताब ही खरीद लूं और आराम से, बिना किसी समय-सीमा के, पढ़ लूं।
पहली बार 'थ्रिफ्ट बुक्स' से किताब ली। ये सेकेंड हैंड किताबों की ऑनलाइन दुकान है। लाइब्रेरी में काम करने वाली एक लड़की ने इसके बारे में बताया था। अच्छा हुआ कि जहां और जगहों पर किताबों के स्टोर या अमेजन पर ये किताब 15-25 डॉलर की मिल रही थी, वहीं थ्रिफ्ट बुक्स पे महज 4.99 डॉलर में मिल गई।उन्होंने सबसे पुराना एडिशन भेजा था। किताब से एक अजीब सी खुशबू आ रही थी, पन्ने पीले-पीले पड़ गए थे। कवर का कोना ऐसा लग रहा था जैसे सात समुंदर पार करके आया हो। मुझे लगा जैसे ये जादू की दुनिया की कोई किताब है, सौ साल पुरानी तो नहीं, पर रिश्तों की उलझन की वजह से जरा खस्ताहाल जरूर लग रही थी। देखकर ही मन उदास हो रहा था।
कई बार ऐसा होता है ना, कुछ चीजें बहुत परखती हैं। इसी तरह, शुरू में थोड़ी दिक्कत हुई, पर फिर किताब पढ़ने में मजा आने लगा। आखिरकार, 383 पन्नों की ये जादुई किताब पूरी हो गई। 'वन हंड्रेड इयर्स ऑफ सॉलिट्यूड' नाम की ये किताब आपका सब्र परखती है। लेकिन एक बार अगर आप पढ़ना शुरू कर दें, तो इसके जादू में खो जाते हैं।
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