राष्ट्रपति ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल से दुनियाभर में हलचल है। उनके कार्यकारी आदेशों से जहां एक ओर देश के अंदर असंतोष और विरोध की लहर है वहीं दूसरी ओर तमाम छोटे-बड़े मुल्क राष्ट्रपति के ताबड़तोड़ फैसलों की तपिश महसूस कर रहे हैं। दुनिया के सभी बड़े बाजारों में उठापटक और गिरने-संभलने का आलम है। अमेरिका में ही बाजार गिरावट के गोते लगा रहा है। बात केवल पारस्परिक टैरिफ से उठी हलचल तक सीमित नहीं है, अन्य नीतियां भी धीरे-धीरे जोर के झटके दे रही हैं। इन हालात में अमेरिका की ओर से चली गर्म हवाओं से भारत भी अछूता नहीं है। भारत पर लगाया गया 'रियायती' पारस्परिक टैरिफ यकीनन अपनी गति से अच्छे-बुरे रंग दिखाएगा लेकिन इस बीच अमेरिका में पढ़ाई कर रहे अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर 'कहर' टूट पड़ा है। इस 'कहर' का शिकार भारतीय छात्र भी हो रहे हैं। हार्वर्ड, ड्यूक और स्टेनफोर्ड जैसे ख्यातिलब्ध विश्वविद्यालयों ने अब बताना शुरू कर दिया है कि उनके छात्रों के वीजा रद्द हो रहे हैं। लेकिन यह 'भूकंप' क्यों आया है इसका भरोसेमंद और तार्किक उत्तर किसी विश्वविद्यालय के पास नहीं है। बस वीजा रद्द हो रहे हैं।
इस प्रकरण में एक गौर करने वाली बात यह है कि जिन विश्वविद्यालयों को भी वीजा रद्द होने का जो कारण पता चला है वह अजीब है लिहाजा समझ से भी परे है। किसी छात्र का वीजा केवल इसलिए रद्द हो गया क्योंकि उसने कई बरस पहले ट्रैफिक नियम का उल्लंघन किया था। मामला वैधानिक रूप से निस्तारित हो गया फिर भी वीजा रद्द हो गया। अब इस दलील को आप क्या कहेंगे? किसी का वीजा इसलिए खत्म कर दिया गया कि वह छात्र 'अमेरिका परस्त' नहीं था। कुछ छात्रों के वीजा आपराधिक रिकॉर्ड के चलते अंत को प्राप्त हुए। कई छात्रों के वीजा बगैर नोटिस रद्द कर दिये गये। वैसे अधिकांश विश्वविद्यालयों को यह मालूम नहीं है कि उनके छात्रों के वीजा क्यों रद्द हो रहे हैं। स्वाभाविक रूप से ये असंतोष, निराशा और अराजकता की स्थितियां हैं। इस बीच शिक्षा सचिव लिंडा मैकमोहन ने बीते मंगलवार को वॉल स्ट्रीट जर्नल को दिए इंटरव्यू में कहा कि विश्वविद्यालयों को परिसर में प्रवेश से पहले छात्रों की अधिक जांच करनी चाहिए कि कहीं उनका कोई आतंकवादी झुकाव तो नहीं है या 'वे अनिवार्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका समर्थन नहीं हैं।'
बहरहाल, सत्ता में आने से पहले ट्रम्प ने अमेरिका को महान बनाने का जो नारा दिया था उसके मूल में स्थानीयों को प्राथमिकता और वरीयता थी। इसका दूसरा अर्थ हुआ अन्य देशों से अमेरिका आने वालों की संख्या को सीमित करना। इस बिना पर कि दूसरे देशों के लोग अमेरिका के मूल लोगों के साधन-संसाधन, नौकरियां और सब कुछ हासिल कर उनके हितों पर भारी पड़ रहे हैं। इस आधार पर वीजा नीति प्रभावित होनी ही थी। लेकिन सत्ता में वापसी के कुछ ही समय बाद वाया इलॉन मस्क कहा गया और वह बात राष्ट्रपति ट्रम्प ने भी दोहराई कि अमेरिका में प्रतिभाशालियों के लिए कोई दिक्कत नहीं होगी। उनके लिए दरवाजे खुले थे और खुले रहेंगे। लेकिन सवाल यह है कि प्रतिभा का निर्धारण कौन करेगा। इसका कोई ठोस या पारदर्शी पैमाना क्या हो सकता है। हर छात्र या डिग्री हासिल कर चुके युवक/युवती को मस्क व्यक्तिगत रूप से प्रतिभासंपन्न अथवा देश के लिए संपदा का प्रमाण-पत्र तो नहीं दे सकते।
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