बांग्लादेशी-अमेरिकन हिंदू, बौद्ध और ईसाई लोगों के एक ग्रुप ने अमेरिका के नए चुने गए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से अपील की है। इन लोगों ने बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों की बात कही है। ये लोग, जिनमें कई कम्युनिटी लीडर्स और ऑर्गेनाइजेशंस शामिल हैं। ये अल्पसंख्यक समुदायों, खासकर हिंदुओं के खिलाफ हो रही हिंसा और भेदभाव को लेकर चिंतित हैं। इनका कहना है कि कट्टरवादी जिहादी ताकतों की वजह से हिंदुओं के सामने अस्तित्व का खतरा है।
इन्होंने ट्रम्प को इस संबंध में एक लेटर लिखा है। ये लेटर द्विजेन भट्टाचार्य (कोलंबिया यूनिवर्सिटी में बंगाली भाषा के टीचर), यूनाइटेड स्टेट्स यूनिटी काउंसिल के महासचिव विष्णु गोपा और सलाहकार दिलीप नाथ ने मिलकर साइन किए हैं। इसके अलावा, हिंदू बंगाली सोसाइटी ऑफ फ्लोरिडा के महासचिव लितन मजूमदार, प्रेसिडेंट संजय के. साहा, यूनाइटेड हिंदूज ऑफ द यूएसए के प्रेसिडेंट भजन सरकार, महासचिव रामदास घरामी, जगन्नाथ हॉल एलुमनी एसोसिएशन यूएसए के प्रेसिडेंट परेश शर्मा और महासचिव सुशील सिन्हा ने भी इस अपील को सपोर्ट किया है।
5 अगस्त को शेख हसीना सरकार के गिरने के बाद से अल्पसंख्यकों खासकर हिंदुओं के खिलाफ हिंसा में बहुत इजाफा हुआ है। इसकी वजह से बड़े पैमाने पर लोग विस्थापित हुए हैं और लाखों लोग देश छोड़कर भाग गए हैं। इस ग्रुप के खत में घरों और दुकानों में आग लगाने, मंदिरों को तोड़ने-फोड़ने, जमीनें छीनने, यातनाएं देने, सामूहिक बलात्कार, जबरन इस्लाम कबूल करवाने और बेरहमी से हत्या करने जैसे अत्याचारों का जिक्र है।
ट्रम्प से की गई इस अपील में इस हालात की गंभीरता को दिखाया गया है और तुरंत मदद और लंबे समय तक इस अत्याचार को रोकने के उपायों की मांग की गई है। इनकी तत्काल मांगों में से एक है हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास की रिहाई, जिन्हें देशद्रोह के झूठे आरोप फंसाकर जेल में बंद किया गया है। ये ग्रुप बांग्लादेश के संविधान में बदलाव के दौरान देश के धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बचाए रखने की भी मांग कर रहे हैं। इनका मानना है कि अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए ये बहुत जरूरी है।
बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के समर्थन में एकजुटता का प्रदर्शन। / Courtesy Photoइस ग्रुप ने सुझाव दिया है कि बांग्लादेश की UN के शांति मिशनों में हिस्सेदारी को धार्मिक सफाया रोकने में उसकी प्रगति से जोड़ा जाए। साथ ही, उन्होंने 2011 की जज शाहबुद्दीन कमीशन रिपोर्ट में नाम आए उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की है जिन्होंने अल्पसंख्यकों के साथ अपराध किए हैं। जिहादी प्रभाव को कम करने के लिए, वे चाहते हैं कि आने वाले चुनावों में अल्पसंख्यकों और उदार मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने वाली प्रगतिशील राजनीतिक पार्टियों को हिस्सा लेने दिया जाए।
लंबे समय के समाधान के लिए, ये ग्रुप एक व्यापक अल्पसंख्यक संरक्षण अधिनियम बनाने का सुझाव दे रहा है। इस अधिनियम में अल्पसंख्यकों और आदिवासी समूहों को आधिकारिक मान्यता मिलेगी, सुरक्षित क्षेत्र बनाए जाएंगे, अल्पसंख्यकों के लिए अलग मतदाता क्षेत्र बनाए जाएंगे और नफरत फैलाने वाले अपराधों और भाषणों के खिलाफ कानून बनाए जाएंगे। न्यायिक सुधारों के तौर पर सुप्रीम कोर्ट में एक नागरिक अधिकार विभाग बनाने और धार्मिक संपत्तियों की सुरक्षा के लिए कानून बनाने का भी सुझाव दिया गया है।
इसके अलावा, ग्रुप ने एक राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग। एक अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय। हिंदुओं, बौद्धों और ईसाइयों के लिए समुदाय-विशिष्ट फाउंडेशन बनाने का आह्वान किया है जिससे उनके विकास का समर्थन किया जा सके। उनकी सांस्कृतिक विरासत की रक्षा की जा सके। उन्होंने जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ कानूनी संरक्षण और पारंपरिक धार्मिक अधिकारों, जिसमें उत्तराधिकार कानून भी शामिल हैं, के सम्मान की आवश्यकता पर जोर दिया है।
ग्रुप ने चेताया है कि अगर अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप नहीं हुआ, तो बांग्लादेश और ज्यादा कट्टरपंथी बन सकता है, जिसके इस क्षेत्र के लिए बहुत बुरे परिणाम हो सकते हैं।
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