(Peter Biswajit Aikat)
मेरे पिता छह भाई-बहनों (चार भाई और दो बहनों) में सबसे छोटे थे। वे सरकारी नौकरी करते थे। उन्होंने कई खेलों में भी हिस्सा लिया था। आमतौर पर वह एक खुशहाल इंसान थे। लेकिन एक दिन आया, जब वह बिल्कुल अकेले रह गए। उनके भाई-बहन एक-एक करके गुजर चुके थे। वह भी सरकारी नौकरी से रिटायर हो गए थे। अब वह वो खुश इंसान नहीं रह गए थे, जिसे बचपन में मैंने देखा था।
कुछ साल पहले तक, उनके अकेलेपन की गहराई को मैं समझ नहीं पाता था। फिर मैंने अपने कुछ साथियों को भी उसी चिंता में घिरे हुए देखा। सीनियर यानी वरिष्ठ बन जाने की विचित्र चिंता। एक पुरानी सूफी कविता है- लड़कपन खेल में बीता, जवानी नींद भर सोया, बुढ़ापा देखकर रोया...
कहते हैं कि Best Reveng is living well यानी अच्छी तरह जीना ही सबसे अच्छा बदला है। पश्चिमी बिजनेस जगत परेशानियों का एक और हल पेश करता है- खुद खाओ या उन्हें अपना केक खाने दो!
आपके सामने विकल्प कई हैं। फ्रीडम 55 जैसे ईवाई सेंटर का दौरा करें। दुनिया घूमें। कॉटेज खरीदें। मनपसंद गाड़ी में घूमें। समुद्र का सफर करें। सफारी पर जाएं या फिर "सत्य" की तलाश में तिब्बत निकल जाएं। करने के लिए तो बहुत कुछ है।
समय कभी नहीं रुकता। हमारी शारीरिक क्षमताएं भी समय के साथ कमजोर होती जाती हैं। चेहरे पर झुर्रियां आने लगती हैं। बाल सफेद होने लगते हैं। उम्र का असर सोशल स्टेटस पर भी दिखता है। वह भी सिकुड़ने लगता है।
मुझे लगता है कि जैसे-जैसे मैं वरिष्ठ होने की तरफ बढ़ रहा हूं, मुझे भी इस सच्चाई को सरलता के साथ स्वीकार कर लेना चाहिए और आगे होने वाले निजी नुकसानों पर ध्यान लगाना चाहिए।
आने वाले कल को लेकर एक भयावह दृश्य उस समय मेरी आंखों के सामने कौंध गया, जब 2024 में कॉप-19 समिट के तहत जैव विविधता सम्मेलन में WWF की लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2020 पेश की गई।
इस रिपोर्ट में भविष्य के कुछ बेहद खतरनाक संकेत थे। रिपोर्ट में बताया गया कि 1970 के बाद से दुनिया में स्तनपायी जीवों, पक्षियों, मछलियों, सरीसृपों और उभयचरों की आबादी में औसतन 68% की गिरावट आ चुकी है!
इसी अवधि में भारत की इंसानी आबादी 55 करोड़ से बढ़कर 143 करोड़ हो गई है। भारत की ही बात करें तो वहां बाघों की आबादी में विनाशकारी गिरावट देखी गई है। आजादी के समय 1947 में भारत में लगभग एक लाख बाघ थे, जो अब 2,500 से भी कम रह गए हैं।
यहां दो बातों पर गौर करना जरूरी है। पहली, अगर इसी दर से जीवों की संख्या घटती रही तो हमारे पोते-पोतियों को शेर, बाघ या मोर देखने तक को नहीं मिलेगा, न ही शहद बनाने के लिए कोई मधुमक्खियां बची होंगी। हम अपने पोते-पोतियों के लिए एक ऐसी बेजान-वीरान दुनिया छोड़कर जाएंगे, जहां कंक्रीट के जंगल होंगे, विमानों का कोलाहल होगा, गाड़ियों का शोरगुल होगा, लेकिन किसी पक्षी की चहचहाहट नहीं सुनाई देगी, न ही कोई तितली अपने पंख फड़फड़ाते नजर आएगी।
दूसरी बात और भी ज्यादा महत्वपूर्ण है- इस जबरदस्त नुकसान के लिए जिम्मेदार कौन है? मेरा मानना है कि इसका जवाब पाने के लिए मुझे खुद को आईने में देखना होगा। आज मैं आज एक वरिष्ठ हूं। 1970 के दशक में जब मैं वयस्क था, तब दुनिया में सबसे अधिक हरियाली वाले देश कनाडा को मैंने अपना घर बनाया था।
कनाडाई लोग अपने जीवन में जरूरत से कहीं ज्यादा संसाधनों का उपभोग करते हैं। वे अपने घरों को गर्म करते हैं ताकि सर्दियों के मौसम में टीशर्ट में घूम सकें, काम करने के लिए एसयूवी से आते-जाते हैं, रिश्तेदारों से मिलने के लिए विमान में बैठकर दुनिया के दूसरे छोर तक का सफर तय करते हैं।
वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर धरती का हर इंसान कनाडाई लोगों की तरह रहना शुरू कर दे तो पृथ्वी जैसे 9 ग्रहों के संसाधन भी कम पड़ जाएंगे। ये दुनिया के किसी भी अन्य देश के मुकाबले कहीं ज्यादा है।
तुलनात्मक रूप से देखें तो एक औसत भारतीय की जीवनशैली अपनाएं तो केवल 0.7 ग्रहों या एक पृथ्वी के संसाधन से पूरी मानवता का पोषण किया जा सकता है। इसकी एक प्रमुख वजह अधिकतर भारतीयों की शाकाहारी जीवनचर्या है। दुनिया में कृषि उत्सर्जन का 75 प्रतिशत हिस्सा पशुपालन की वजह से होता है क्योंकि मांस की मांग ही इतनी अधिक है।
अगर मैंने अपनी वयस्क जिंदगी में सोना, महोगनी, हाथीदांत, हीरा, समुद्री भोजन, मांस का उपभोग किया होगा, नया घर खरीदा होगा, एक भी पेड़ काटा होगा, छुट्टियां बिताने के लिए बाहर गया होगा, कार चलाई होगी, एसी आदि का इस्तेमाल किया होगा.. तो मेरे इन कार्यों ने जाने-अनजाने में हरियाली को खत्म करने और अन्य प्रजातियों को नुकसान पहुंचाने में ही योगदान दिया होगा।
मान लीजिए, मैंने बैरवेन में वुडरॉफ़ एवेन्यू को चार लेन की सड़क बनाने के लिए मतदान किया। तब सड़क को चौड़ा करने के लिए और अधिक डामर बिछाना होगा। तब वह सतह किसी भी जीव-जंतु, ऊदबिलाव, सांप आदि के लिए रहने लायक नहीं बचेगी।
पिछले कई दशकों में हमारी जिंदगी काफी आरामदेह हो गई है। नई सड़कें, हाइवे, जेट विमान, इंटरनेट, व्हाट्सएप कॉल और ज़ूम मीटिंग्स का इसमें बड़ा योगदान रहा है। लेकिन इसकी वजह से हमने अन्य प्रजातियों का जीवन नारकीय बना दिया है। उनके पास जाने को जगह नहीं बची है। हर गर्मियों में कैरिबियन से कनाडा आने वाले पक्षियों के लिए अब घोंसले बनाने लायक जगह नहीं बची है। उनकी जगह पर हमारे लिए नए घर बन गए है!
संभवतः वरिष्ठ होने के नाते हम पर्यावरणीय नुकसान को कम करने में योगदान देकर इस धरती पर अपनी बाकी जिंदगी को मायने दे सकते हैं। इससे ऐसी लुप्तप्राय प्रजातियों को बचाने में मदद मिल सकती है, जिन्होंने जिंदगी भर हमें दिया ही है। इससे हमारी इससे आने वाली पीढ़ियां इन प्रजातियों को भी संभवतः देख पाएंगी, जो शायद आने वाले समय में लुप्त हो जाएं।
इसकी शुरुआत हम अपने आसपास की वनस्पतियों और जीवों का पता लगाकर उनकी सुरक्षा के साथ कर सकते हैं। उदाहरण के लिए हम हर गर्मियों में मैक्सिको से कनाडा आने वाली मोनार्क तितली के प्रवास स्थलों की सुरक्षा कर सकते हैं। आप तितलियों और मधुमक्खियों के लिए अपने घर के पीछे गार्डन भी तैयार कर सकते हैं। यह हमारे लिए सीखने और कुछ नया करने का अवसर साबित हो सकता है। इससे हमें मानव केंद्रित रोजमर्रा की जिंदगी से कुछ अलग हटकर करने का मौका मिलेगा।
इससे भी महत्वपूर्ण ये कि हम अपने पोते-पोतियों का आने वाला तो संवारेंगे ही, उन हजारों-लाखों बेजुबान प्रजातियों का भविष्य भी बचा पाएंगे, जो शायद बोल पाते तो कहते कि - जियो और जीने दो... वसुधैव कुटुम्बकम्...
पुनश्चः वेदांगी कुलकर्णी 26 वर्षीय भारतीय हैं। वह अपनी बाइक से दूसरी बार दुनिया की यात्रा पूरी कर रही हैं। उनके नाम सबसे कम उम्र में बाइक से धरती की परिक्रमा करने का रिकॉर्ड दर्ज है। यह कारनामा उन्होंने 19 साल की उम्र में किया था। जरा सोचिए, बाइक चलाने वाली अकेली लड़की को सड़क पर कितना उत्पीड़न सहना पड़ा होगा, लेकिन वो कहते हैं न कि - जहां चाह, वहां राह...
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