तपस्या चौबे
यह वक़्त ऐसा है कि हम सही ग़लत का आकलन ठीक-ठीक कर ही नहीं पा रहें। हर दिन घबराहट, निराशा, और ज़्यादा पाने की महत्वाकांक्षा या यूं कह लें ना मिटने वाली भूख। क्रोध- ईर्ष्या पहले भी थी पर उसका स्वरूप अब देखती हूं तो कई बार कांप जाती हूं, रो पड़ती हूं। लोगों से बात होती है तो पाती हूं कि वे बोले जा रहें हैं, सुन नहीं रहें। मैं हूं, हां कहती हुई उन्हें बोलने देती फिर ख़ुद ही विचलित हो जाती हूँ।
बीते महीने एक दोस्त से बात हुई। शादी को क़रीब चार साल हो गए हैं। बच्चा चाहते है पर डर है कि सम्भालेगा कौन? मैं ख़ुद इस स्थिति से गुजर चुकी हूँ।
मेरे जानने वाले जानते हैं, दूसरे बच्चे का मालूम होते ही हमने भारत आने का तय किया। लगभग सारी तैयारी हो गई। घर का आधा सामान बेच दिया। कुछ दोस्तों को दे दिया। और फिर कोरोना महामारी अचानक फैल गई। हमारा जाना अचानक से ऑफ़िशियली कैंसिल हो गया। हम डरे तो थे कि कैसे करेंगे सब पर क्या कर सकतें थें? ख़ैर, इस बार बच्चा मेरा समय पर हुआ।
मुद्दे से नहीं भटकते हैं, तो बात यह है कि जो भी जीव आने वाला है इस दुनिया में उसकी अपनी क़िस्मत तय है। अलग बात है मेहनत से उसे वह और चमका सकता है। वरना हमने तो इलू के लिए भारतीय नागरिकता ही चुनी थी। सब तैयारी धरी की धरी रह गई। उसका जन्म यहाँ तय था।
दो दिनों से सुन रही हूँ कि यहां अप्रवासी लोगों में खलबली मची है। ख़ास कर जो पैरेंट्स बनने वाले हैं। वे जन्म डेट से पहले बच्चें की डिलीवरी करवाना चाह रहें हैं। यह सब हड़कंप ट्रंप के नए प्रस्तावित नियम की वजह से हो रहा है।
एक मां होने के नाते मैं समझ सकती हूं आपकी बेचैनी, बच्चें के भविष्य की चिंता लेकिन क्या यह आपके बच्चे की सेहत से ज़्यादा महत्वपूर्ण है? समय से पूर्व होने वाले बच्चें में कई कंप्लीकेशन होती है। हाँ, यह भी सच है की मेडिकल स्टाफ हर कोशिश करके लगभग आपके बच्चें को बचा भी ले पर क्या इतना बड़ा रिस्क लेना उचित है?
मैंने प्रीमैच्योर बच्चे का दर्द सहा है। जब आप देखते हैं एक आधी सी जान को सुइयों, पाइप की नलियों और मॉनिटरो पर उलझते-लड़ते उस पल आप रोज़ मर रहें होते हैं… तब आपको कुछ याद नहीं रहता… ना देश- ना दुनिया… आँखों की नाव और उसमे बसे समुंदर में आपका बच्चा डूब-तैर रहा होता है… मन हर पल धँस रहा होता है… भगवान से एक लंगर की उम्मीद गुहरा रहे होते हैं… मैं शायद शब्दों में इसे ठीक से समझा नहीं पाऊँ पर अब भी मेरी आँखें गीली हैं…
प्लीज़-प्लीज़-प्लीज़ आग्रह है आपसे, सात-आठ माह के बच्चे पर तो रहम करें। वह ठीक रहे तो सारी दुनिया उसकी है।
हमने कहां सोचा था की हम यहां होंगे ?
हे परमात्मा! इस दुनिया को इतना बदसूरत तो ना बनाओ। इतना ना किसी को दबाओ की वह मानवता, ममता भूल जाए।
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