कोएलिशन ऑफ हिंदूज ऑफ नॉर्थ अमेरिका (CoHNA) ने रटगर्स यूनिवर्सिटी के अपनी गैर-भेदभाव नीतियों में 'जाति' को संरक्षित श्रेणी के रूप में शामिल न करने के फैसले का स्वागत किया है। विश्वविद्यालय ने ऐसी मांग को ठुकराते हुए कहा है कि जातिगत भेदभाव संबंधी मामलों से निपटने के लिए नीतियों पहले से ही मौजूद हैं।
रटगर्स यूनिवर्सिटी के कुछ छात्र और फैकल्टी मेंबर्स जाति को संरक्षित श्रेणी में सूचीबद्ध करने का अभियान चला रहे थे। CoHNA का कहना है कि ऐसा किया गया तो हिंदुओं और अन्य भारतीय समुदायों के सदस्यों को बेवजह टारगेट किया जा सकता है।
रटगर्स यूनिवर्सिटी में एसोसिएट हिंदू पादरी हितेश त्रिवेदी ने कहा कि मुझे खुशी है कि रटगर्स यूनिवर्सिटी के लेबर रिलेशंस ऑफिस ने माना है कि जाति पहले से ही उनकी नीतियों में कवर्ड है और हिंदू छात्रों और फैकल्टी को अलग-थलग करने वाली टास्क फोर्स की रिपोर्ट को खारिज कर दिया है।
उन्होंने बताया कि रटगर्स यूनिवर्सिटी की सोशल परसेप्शन लैब ने एक हालिया अध्ययन में पुष्टि की थी कि अगर जाति को विश्वविद्यालय की नीति में अलग से जोड़ा गया तो हिंदू और भारतीय अमेरिकियों के प्रति संदेह और नफरत बढ़ सकती है।
रटगर्स में कोहना यूथ एक्शन नेटवर्क (CYAN) टीम ने भी पहले कहा था कि जाति को संरक्षित श्रेणी में शामिल करना जरूरी नहीं है क्योंकि इससे हिंदू और भारतीय छात्रों व शिक्षकों के खिलाफ भेदभाव में बढ़ोतरी हो सकता है।
CoHNA के अध्यक्ष निकुंज त्रिवेदी ने कहा कि रटगर्स का पूर्व छात्र और समुदाय का सदस्य होने के नाते मैं खुश हूं कि विश्वविद्यालय ने कुछ लोगों की भावनाओं के बजाय तर्क और तथ्यों के आधार पर फैसला लिया है। अब हम चाहते हैं कि डीईआई की टीम इस मुद्दे पर संवेदनशील बने।
बता दें कि रटगर्स और रटगर्स एएयूपी-एएफटी यूनियन ने एक समझौते के तहत टास्क फोर्स गठित की थी। उसे यह जांचने का जिम्मा सौंपा गया था कि क्या जाति को भेदभाव और उत्पीड़न पर विश्वविद्यालय की नीतियों में स्पष्ट रूप से शामिल किया जाना चाहिए या नहीं।
अगस्त 2024 में टास्क फोर्स ने अपनी रिपोर्ट ने माना कि रटगर्स में कई लोगों के साथ जाति आधारित भेदभाव होता है और यह उनकी क्षमता व अवसरों को सीमित करता है। उसका कहना था कि जाति आधारित भेदभाव से निपटने के लिए स्पष्ट नीतियों और शैक्षिक पहल की जरूरत है।
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