याद कीजिए फिल्म दीवार...। क्या आप इसमें विजय के रूप में देव आनंद और रवि के रूप में राजेश खन्ना की कल्पना कर सकते हैं? बॉलीवुड की कहानियों के अनुसार देव आनंद और राजेश खन्ना दीवार में वर्मा भाइयों के लिए निर्देशक यश चोपड़ा की पहली पसंद थे, जो अपने जीवन के निर्णयों से अलग होकर कानून के विपरीत पक्षों में चले जाते हैं। लेकिन गाइड के राजू को विजय के साथ अंडरवर्ल्ड में जाने में कोई दिलचस्पी नहीं थी लिहाजा उन्होंने प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। तब राजेश खन्ना को तस्कर की भूमिका निभाने के लिए कहा गया क्योंकि वह पहले से ही निर्माता गुलशन राय के साथ एक फिल्म के लिए साइन किए हुए थे, और नवीन निश्चल पुलिस वाले भाई की भूमिका में आ गए। तभी फिल्म के पटकथा लेखक सलीम खान और जावेद अख्तर ने अमिताभ बच्चन के पक्ष में जिद करते हुए एक स्टैंड लिया। तब तक प्रकाश मेहरा की जंजीर, जिसकी पटकथा उन्होंने लिखी थी, पूरी होने वाली थी और उन्होंने जोर दिया कि इसके गुस्सैल युवा इंस्पेक्टर विजय श्रीवास्तव को दीवार में भी विजय वर्मा की भूमिका निभानी चाहिए।
साल 1990 में मूवी मैगजीन को दिए गए एक इंटरव्यू में राजेश खन्ना ने पुष्टि भी की कि सलीम-जावेद ने यश चोपड़ा को दीवार की स्क्रिप्ट देने से मना कर दिया था, जब तक कि वे अमिताभ बच्चन को इसके लिए नहीं चुन लेते। हालांकि, लोगों के दिलों पर लंबे समय तक राज करने वाले सुपरस्टार (राजेश खन्ना) ने यह भी स्वीकार किया कि फिल्म की सिर्फ दो रील देखने के बाद ही उन्हें समझ में आ गया था कि लेखक इस भूमिका के लिए आनंद के उनके बाबूमोशाय और नमक हराम के उनके दोस्त (अमिताभ) को लेने के लिए क्यों इतना ज़ोर दे रहे थे।
राजेश खन्ना के बाहर होने के बाद नवीन निश्चल ने भी इस प्रोजेक्ट से किनारा कर लिया। चर्चा है कि वे अमिताभ बच्चन के साथ सहायक भूमिका नहीं निभाना चाहते थे, जो उनकी फिल्म परवाना में खलनायक थे। आखिरकार, शालीन शशि कपूर ने दीवार में सब-इंस्पेक्टर रवि की भूमिका निभाई, जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। इसके बाद वे बच्चन के लगातार सहयोगी बन गए। उन्होंने उनके साथ 14 फिल्मों में काम किया, जिसमें उनकी पहली निर्देशित फिल्म अजूबा भी शामिल है।
बिग बी, जैसा कि उन्हें बाद में बुलाया जाने लगा, ने फिल्म के लेखकों द्वारा उन पर रखे गए भरोसे को पूरा किया। फोर्ब्स इंडिया के एक सर्वेक्षण के अनुसार, अमिताभ बच्चन की विजय की भूमिका भारतीय सिनेमा में 25 सबसे बेहतरीन अभिनय प्रदर्शनों में से एक है। वास्तव में, 1975 दीवार और शोले के साथ अभिनेता के लिए एक ऐतिहासिक वर्ष साबित हुआ, जिसने उन्हें 'एंग्री यंग मैन' की कहावत दी, जबकि उनके गुरु, ऋषिकेश मुखर्जी ने सुनिश्चित किया कि उनके करियर की शुरुआत में उन्हें टाइपकास्ट न किया जाए। लिहाजा उन्होंने उन्हें अपनी सदाबहार कॉमेडी चुपके चुपके में एक बेवकूफ प्रोफेसर और मिली में एक चिंतित प्रेमी के रूप में कास्ट किया। दोनों ही फिल्में एक ही साल में रिलीज़ हुईं। अमिताभ स्वीकार भी करते हैं कि 1975 उनके करियर का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। वे दीवार में अपने प्रदर्शन का पूरा श्रेय सलीम-जावेद की 'परफेक्ट स्क्रिप्ट' और भारतीय सिनेमा में 'अब तक की सबसे अच्छी पटकथा' को देते हैं। लेखकों ने सर्वश्रेष्ठ कहानी, सर्वश्रेष्ठ पटकथा और सर्वश्रेष्ठ संवाद के लिए फिल्मफेयर जीता।
लेखकों ने खुद स्वीकार किया कि फिल्म के लिए उनकी प्रेरणा दिलीप कुमार की 1961 की गंगा जमुना थी, जिसमें अभिनेता ने एक डाकू की भूमिका निभाई थी और उनके अपने छोटे भाई नासिर खान ने एक पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाई थी जो फिल्म को दोनों के बीच एक नाटकीय टकराव की ओर ले जाता है। बाद के वर्षों में अब्बास-मस्तान की बाजीगर का क्लाईमैक्स दीवार से काफी प्रभावित था जिसमें शाहरुख खान बुरी तरह घायल और लहूलुहान हालत में अपनी मां (राखी) की बाहों में गिर जाते हैं, और उनसे कहते हैं कि वह थक गए हैं और सोना चाहते हैं।
यश चोपड़ा की दीवार के लिए एक और प्रेरणा महबूब खान की मदर इंडिया और नरगिस का प्रतिष्ठित चरित्र राधा थी। लिहाजा दीवार में मां की भूमिका भाइयों के बीच संघर्ष का केंद्र है। फिल्म में कुछ अविस्मरणीय संवाद हैं, लेकिन सबसे अच्छी लाइन निस्संदेह विजय के सवाल- आज मेरे पास बिल्डिंग है, प्रॉपर्टी है, बैंक बैलेंस है, बंगला है, गाड़ी है... क्या है तुम्हारे पास? इस पर रवि का शांत जवाब था- मेरे पास मां है। यह संवाद उनके बीच वैचारिक मतभेदों को रेखांकित करता है जो एक ऐसी दीवार बनाता है जिसे केवल मृत्यु ही तोड़ सकती है।
वर्ष 1973 के अंत में सुमित्रा देवी की भूमिका के लिए सबसे पहले वहीदा रहमान से संपर्क किया गया था। उन्होंने तुरंत प्रस्ताव ठुकरा दिया। यह समझ में आता है क्योंकि शशि कपूर उनकी ही उम्र के थे और अमिताभ बच्चन सिर्फ चार साल छोटे थे। यश चोपड़ा ने जोर नहीं दिया क्योंकि उन्होंने उन्हें पहले ही कभी-कभी में बच्चन के साथ कास्ट कर लिया था और जानते थे कि अगर वह दीवार में उनकी मां की भूमिका निभाती हैं तो दर्शकों को उन्हें उनकी पत्नी के रूप में स्वीकार करना मुश्किल हो सकता है। इसके बजाय उन्होंने वैजयंतीमाला बाली को ब्रेक से बाहर आने के लिए मनाने की कोशिश की, लेकिन असफल रहे। अंत में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निरूपा रॉय को मिली जिन्होंने दीवार की सफलता के बाद कई अन्य फिल्मों में बच्चन की मां की भूमिका निभाई।
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