चर्चित आध्यात्मिक साधक एवं लेखक राजेश सेंगामेडु की नई किताब Desi Dharma aur Dilemma (देसी धर्म और दुविधा) रिलीज हो चुकी है। इस किताब का मकसद हिंदू प्रवासियों के सामने आने वाले आंतरिक संघर्षों और दुविधाओं का समाधान करना है।
राजेश सेंगामेडु अद्वैत वेदांत की अर्ष विद्या परंपरा के अनुयायी हैं। वह अपनी किताबों के माध्यम से लोगों को जीवन की परेशानियों और चुनौतियों के बावजूद संतुष्ट जीवन जीने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। उन्होंने तीन किताबें लिखी हैं। इनमें एक उपन्यास है जो सनातन धर्म की कालातीत परंपराओं पर आधारित है।
सेंगामेडु इसके अलावा अर्ष विद्या बाला गुरुकुलम के माध्यम से मिडिल स्कूल के छात्रों को सनातन धर्म और हिंदू संस्कृति के बारे में पढ़ाते हैं। वह 2019 से भगवद गीता अध्ययन समूह का नेतृत्व भी कर रहे हैं।
Desi Dharma aur Dilemma 40 लघु कथाओं का संग्रह है जो लोगों को जीवन की विभिन्न दुविधाओं और चुनौतियों से पार पाने के तरीकों की खोज करता है। इसका फोकस ऐसे लोगों पर है जो अपनी नौकरी या प्रवास की वजह से परिवार और पारंपरिक सहायता सिस्टम से दूर हो चुके हैं। पुस्तक संघर्षों के समाधान पर व्यावहारिक अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।
सेंगामेडु ने एक हालिया इंटरव्यू में अपनी आध्यात्मिक यात्रा के बारे में बताया था, जो भारत के एक छोटे से रेलवे टाउन में शुरू हुई थी। उनके माता-पिता ने स्वामी गुरु परानंद की भक्ति से प्रभावित होकर सेंगामेडु को वेदांत की शिक्षा के लिए प्रेरित किया और भगवद गीता पढ़ाई। इसने उनके अंदर एक गहन खोज को जन्म दिया।
सेंगामेडु कहते हैं कि जीवन की चुनौतियों ने मुझे ये गूढ़ प्रश्न पूछने के लिए प्रेरित किया कि कुछ घटनाएं आखिर होती क्यों हैं और हम उनसे कैसे पार पा सकते हैं। इस जिज्ञासा ने उन्हें विपश्यना, ध्यान, योग और अपने गुरु स्वामी गुरु परानंद से शिक्षा ग्रहण के लिए प्रेरित किया।
किताब के बारे में बताते हुए सेंगामेडु ने कहा कि Desi Dharma aur Dilemma विदेश में रहने वाले भारत के देसी लोगों के बारे में है जिन्हें कई तरह की दुविधाओं का सामना करना पड़ता है और उन्हें ये नहीं पता होता कि क्या करना सही रहेगा और क्या नहीं। यह किताब वार्तालाप के प्रारूप में है। इसमें दोस्तों, माता-पिता, बच्चों और सहकर्मियों जैसे पात्रों के बीच संवादों के माध्यम से दुविधाओं और उनका समाधान बताया गया है।
विदेश में बसने के बात भारतीयों के जीवन में आने वाले सांस्कृतिक बदलाव पर उन्होंने कहा कि जब लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं तो सांस्कृतिक मूल्यों का क्षरण अनुभव करते हैं। उदाहरण के लिए मैंने अपनी मूल भाषा कन्नड़ से संपर्क कम कर दिया और तेलुगु में अधिक धाराप्रवाह हो गया।
उन्होंने कहा कि किसी भी संस्कृति के मूल तत्व संगीत, भोजन और त्योहार आदि होते हैं लेकिन यह सनातन धर्म का सार नहीं है। लोग जब विदेश में जाते हैं तो अपनी संस्कृति से संपर्क बनाए रखने में परेशानी अनुभव करते हैं। इन्हीं उलझनों का समाधान इस पुस्तक में बताया गया है।
इस पुस्तक की प्रेरणा कहां से मिली, इस सवाल पर सेंगामेडु ने कहा कि जब मैंने अपनी पहली किताब हैप्पीनेस बियॉन्ड माइंड लिखी थी, तो मुझे एहसास हुआ कि अगर मुझे अपने सर्कल से आगे ज्यादा से ज्यादा दर्शकों तक पहुंचना है तो मुझे एक अलग प्रारूप खोजना होगा। इसीलिए मैंने लघु कथाओं को अपना माध्यम बनाया।
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